सभी दल करें दागियों से मुक्ति का ऐलान

भले ही बहुजन समाज पार्टी ने देर से ही यह फैसला लिया हो लेकिन फैसला समय के साथ देश, समाज और स्वच्छ राजनीति के हित में है। अगर इस तरह के फैसले हर राजनीतिक दल लेने का साहस जुटा पाया तो निश्चित तौर पर अगले दस वर्षों में देश के राजनीतिक दलों को दागियों से मुक्ति मिल जाएगी। हालांकि इस दु:साहसिक प्रयास में कौन दल कितना सफल होता है, यह तो वक्त ही बतायेगा लेकिन इतना तय है कि बसपा की घोषणा के बाद एक उम्मीद का उदय हुआ है। जब देश की लोकसभा में करीब 43 प्रतिशत सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले घोषित रूप से दर्ज हों, तब किसी भी पार्टी की ओर से आगे बढ़कर यह कहना स्वागतयोग्य है कि हम किसी माफिया या बाहुबली को चुनाव में नहीं उतारेंगे। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने गत दिवस कहा कि उनकी पार्टी अगले साल होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बाहुबलियों या माफिया उम्मीदवारों को मैदान में नहीं उतारेगी। मायावती की इस घोषणा को जेल में बंद गैंगस्टर से नेता बने मुख्तार अंसारी और उनके भाई से जोड़कर अगर देखा जा रहा है, तो भी यह घोषणा अपने आप में उम्मीद जगाती है। ऐसे ही एक-एक दागी या अपराधी का टिकट कटना चाहिए। इस बात पर भी गौर किया जाना चाहिए कि कहीं दुनिया को दिखाने के लिए तो बाहुबलियों का विरोध किया जाए परन्तु पिछले दरवाजे से उनको तरजीह मिलती रहे। 
भाजपा ने 2014 के आम चुनावों के लिए जो घोषणा पत्र जारी किया था, इसमें वादा किया गया था भाजपा चुनाव सुधार करने के लिए कटिबद्ध है, जिससे अपराधियों को राजनीति से बाहर किया जा सके लेकिन 2014 के ही आम चुनाव में भाजपा के 426 में से 33 प्रतिशत यानी 140 उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज थे। इन 140 में से 98 यानी 70 प्रतिशत जीतकर भी आए। इसके बाद 2019 के आम चुनावों में भी भाजपा के 433 में से 175 यानी 40 प्रतिशत उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज थे, जिनमें से 116 यानी 39 प्रतिशत जीतकर भी आए थे। इतना ही नहीं, 2014 के आम चुनाव के बाद से अब तक सभी 30 राज्यों में विधानसभा चुनाव भी हो चुके हैं। इन विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 3 हजार 436 उम्मीदवार उतारे, जिनमें से 1 हजार से अधिक दागी थे। 
वैसे तो मोदी अकेले ऐसे नेता नहीं है जो चुनाव सुधार की बातें करते हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी राजनीति से अपराधियों को दूर रखने की बात अक्सर कहते रहते हैं। 2018 में ही कर्नाटक चुनाव के दौरान राहुल ने दागियों को टिकट देने पर मोदी पर सवाल उठाए थे, लेकिन, आंकड़े बताते हैं कि कांग्रेस ने भी 2014 के चुनाव में 128 तो 2019 में 164 दागी उतारे थे। भाजपा-कांग्रेस ही नहीं बल्कि कई अन्य पार्टियां भी चुनावों में दागियों को टिकट देती हैं और जीतने के बाद राजनीति के अपराधीकरण को रोकने की बातें करती हैं।  अभी हाल ही में 21 या 22 अगस्त को जो आंकड़ा सामने आया था, वह काफी चौकाने वाला था। उसके मुताबिक हमारे देश के 363 सांसद और विधायक किसी न किसी गंभीर आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं। यदि इन मामलों में उनका दोष साबित हो जाता है तो जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत वे अयोग्य घोषित किए जा सकते हैं। इनमें केंद्र के 33 मंत्री शामिल हैं और कुछ राज्यों के मंत्री भी हैं। 
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और नेशनल इलेक्शन वॉच ने 2019 से 2021 तक 542 लोकसभा सदस्यों और 1,953 विधायकों के हलफनामों का विश्लेषण करके यह निष्कर्ष निकाला है। ऐसे दागी जनप्रतिनिधियों की संख्या सबसे ज्यादा 83 भारतीय जनता पार्टी में है। उसके बाद कांग्रेस के 47 और टीएमसी के 25 जनप्रतिनिधि दागी हैं। एडीआर की रिपोर्ट में कहा गया था कि 2,495 सांसदों और विधायकों में से 363 यानि लगभग 15 प्रतिशत ने हलफनामे में यह घोषणा की है कि अधिनियम में सूचीबद्ध अपराधों में उनके खिलाफ  अदालतों ने आरोप तय किए हैं। ऐसे 296 विधायक और 67 सांसद हैं। मौजूदा  24 लोकसभा सदस्यों पर कुल 43 आपराधिक मामले लम्बित हैं। वहीं 111 मौजूदा विधायकों पर कुल 315 आपराधिक मामले 10 साल या उससे अधिक समय से लंबित हैं। बिहार में ऐसे 54 विधायक हैं जिन पर गंभीर आपराधिक मामले चल रहे हैं। इसके बाद केरल के 42 विधायकों पर भी ऐसे ही जघन्य अपराध के मामले चल रहे हैं। 
इस सम्बंध में कानून की बात करें तो कानून में ऐसी प्रवृत्ति के जनप्रतिनिधियों पर सीधे कार्रवाई का प्राविधान है। जन प्रतिनिधित्व अधिनियम अधिनियम की धारा आठ की उप-धाराओं (1), (2) और (3) में कहा गया है कि  कि यदि जनप्रतिनिधि को किसी अपराध के लिए किसी भी उपधारा में दोषी ठहराया जाता है, तो दोषी ठहराए जाने की तिथि से उसकी सदस्यता अयोग्य मानी जाएगी। रिहाई के बाद भी वे छह साल चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। धारा 8 (1), (2) और (3) के तहत सूचीबद्ध अपराध प्रकृति में गंभीर और जघन्य मामलों में हत्या, हत्या के प्रयास, डकैती आदि समेत गंभीर आपराधिक मामले शामिल हैं।