नहीं बदलेगा चीन का रवैया

वैसे तो चीन के साथ सीमांत मामलों पर भारत का टकराव तभी से शुरू हो गया था जब 1959 में उसने भारतीय सीमांत इलाकों पर अपना अधिकार जताना शुरू कर दिया था। उस समय पंडित जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री थे। चीन के नेताओं माओ त्से तुंग एवं चाऊ एन लाई के साथ उनके अच्छे संबंध थे। दोनों देशों ने पंचशील नामक दस्तावेज़ पर भी हस्ताक्षर किये थे परन्तु 1962 में चीन की ओर से किये गये हमले से तथा भारत की सीमाओं के भीतर दाखिल होकर बड़े इलाकों पर किये गये उसके कब्ज़े के कारण दोनों देशों के बीच तनाव उत्पन्न हो गया था। पंडित नेहरू जो भारत में बहुत लोकप्रिय थे, जिनकी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी बड़ी छवि बन चुकी थी, को चीन के इस रवैये से बड़ा आघात पहुंचा था तथा 1964 में वह स्वर्गवास हो गये थे। 
चीन के आक्रामक होने एवं भारतीय क्षेत्रों पर अपना कब्ज़ा जारी रखने के बावजूद भारत ने निरन्तर यह यत्न किया कि उसके अपने इस पड़ोसी देश के साथ अच्छे संबंध बने रहें। व्यापारिक धरातल पर भी भारत ने चीन के साथ जोड़-तोड़ बनाये रखने की योजना बनाई थी। इसी कड़ी में आज भी दोनों देशों का व्यापार चल रहा है। इसी काल के दौरान चीन अनेक कारणों के दृष्टिगत विश्व की एक बड़ी शक्ति बन कर उभरा। उसने अमरीका जैसी महा-शक्ति के साथ भी व्यापार एवं अन्य मामलों पर टक्कर लेने से कोई हिचकिचाहट नहीं व्यक्त की। वह अपने पड़ोसी ताइवान जो आज एक स्वतंत्र देश के रूप में उभर कर प्रत्येक क्षेत्र में बड़ा विकास कर रहा है, को भी धमकियां देता आ रहा है। ताइवान में समय के साथ लोकतांत्रिक प्रक्रिया सुदृढ़ हुई है। वहां के लोग किसी भी प्रकार तानाशाह चीन के साथ स्वयं को जोड़ना नहीं चाहते। विगत सात दशकों में इस द्वीपनुमा देश ने अपनी एक भिन्न हस्ती कायम कर ली है, परन्तु अब चीन ने उसे भी आंखें दिखाना शुरू कर दिया है। चीनी राष्ट्रपति शी भी ऐसे बयान दे रहे हैं कि वह ताइवान को चीन का अंग बना कर ही रहेंगे। इसके अतिरिक्त दक्षिणी चीन सागर के क्षेत्र में दर्जन भर अन्य देश भी चीन की इस दादागिरी से बुरी तरह से परेशान हैं। वे अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार अपने अधिकार क्षेत्र के समुद्री जल को चीन की धमकियों के दृष्टिगत छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। चीन ने कई स्थानों पर समुद्र में अपने द्वीप बना कर वहां अपनी सेनाएं भी उतारना शुरू कर दी हैं। समुद्र में अधिकार क्षेत्र के मामले पर जापान के साथ भी चीन की भारी कशमकश चलती रही है जो आज भी जारी है। व्यापार को लेकर ही अमरीका एवं आस्ट्रेलिया इसके विरुद्ध आ खड़े हुये हैं। वे समुद्र मार्गों को अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों की मान्यता के अनुसार चलाने की नीति पर चल रहे हैं जबकि चीन समुद्र के एक बड़े भाग पर अपनी सरदारी समझने लगा है। 
आज चीन के ऐसे रवैये के दृष्टिगत दर्जनों छोटे-बड़े कमज़ोर एवं शक्तिशाली देश उसके सामने आ खड़े हुये हैं। चीन की दादागिरी के कारण ही भारत ने क्वाड नामक संगठन, जिसमें अमरीका, आस्ट्रेलिया एवं जापान शामिल हैं, के साथ स्वयं को जोड़ लिया है। परन्तु अब विगत डेढ़ वर्ष से सीमाओं के मामले पर दोनों देशों की निरन्तर बातचीत के दौरान चीन ने जो रवैया धारण किया है, उससे इतनी समझ अवश्य आती है कि वह अपने ऐसे रवैये को नहीं बदलेगा जिसका सामना करने के लिए भारत को प्रत्येक स्थिति में तैयार रहना पड़ेगा, क्योंकि आगामी समय में भी इस मामले पर चीन से कोई आशा नहीं रखी जा सकती। इसी कारण निरन्तर दोनों देशों की आपसी बातचीत भी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पा रही।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द