नौकरी के लिए तरस रही दर्जनों पदक विजेता उकरदीप कौर

जब उकरदीप कौर जैसी अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय महिला खिलाड़ी बेरोज़गारी की चक्की में पिसते हुए सरकारी नौकरी के लिए दर-दर की ठोकरें खाएं तो मन उदास ही नहीं होता बल्कि सरकारों के दुर्व्यवहार से दिमाग में कई तरह के प्रश्न उठते हैं कि हमारे प्रदेश में इन खिलाड़ियों की दयनीय हालत के लिए कौन ज़िम्मेदार है। आज बात कर रहा हूं पंजाब की उकरदीप कौर जिसने कैकिंग कनोइंग यानि किश्ती दौड़ में देश के लिए खेलते हुए कई पदक जीत कर देश और पंजाब का नाम रोशन किया है। आज यह खिलाड़ी अपना अधिकार समझती हुई अपने जीवन को चलाने हेतु नौकरी की तलाश में ठोकरें खा रही है। उकरदीप कौर का जन्म जिला फिरोज़पुर के एक छोटे से गांव शेरपुर तख्तूवाला में एक साधारण किसान पिता सुरजीत सिंह और माता बलविन्द्र कौर के घर 22 जुलाई, 1992 को हुआ। उकरदीप कौर ने प्राथमिक शिक्षा गांव के स्कूल से प्राप्त करने के बाद जालन्धर के एच.एम.वी. कालेज से फैशन डिज़ाइनिंग में एम.एस.सी. पास की। इसके साथ ही उसे खेलों का भी शौक था और उसने सन् 2010 में कैकिंग कनोइंग खेलनी आरंभ की। इस खेल की तैयारी के लिए उसका पहला कैंप पौंग डैम में लगा जहां उसने किश्ती में बैठ कर पहला चप्पू चलाया। इसके बाद उसने पीछे मुड़ कर नहीं देखा और वह पदक पर पदक जीतती गई। उकरदीप कौर का अपने खेल में सुनहरी दौर तब शुरू हुआ जब उसका चयन नैशनल एवं इंटरयूनिवर्सिटी के लिए हुआ। उकरदीप कौर ने अपना अभ्यास उत्तराखंड के शहर रुड़की में बहती गंगा में चप्पू चला कर अपने कोच पियूष शर्मा के नेतृत्व में किया। यदि उसकी उपलब्धियों की बात करें तो सूची बड़ी लम्बी हो जाएगी। उकरदीप कौर अब तक आल इंडिया इंटरयूनिवर्सिटी में 26 पदक अपने नाम कर चुकी है जिनमें 12 रजत और 14 कांस्य पदक हैं। नैशनल चैम्पियनशिप में उसके एक स्वर्ण, 4 रजत और 6 कांस्य पदक हैं। सन् 2019 में उसने चीन में भारत का प्रतिनिधित्व किया और 17वीं वर्ल्ड चैम्पियनशिप में विश्व के 38 देशों में 26 किलोमीटर की किश्ती मैराथन दौड़ में समुद्र में 26 किलोमीटर किश्ती चलाने वाली यह पहली युवा खिलाड़ी थी जिसने 17वां स्थान प्राप्त करने का गौरव हासिल किया। बता दें कि इस इवैंट में वह भारत की एकमात्र खिलाड़ी है। यदि पंजाब की बात करें तो समूचे प्रदेश में भी उकरदीप कौर पहली खिलाड़ी है जिसने सिंगल इवैंट खेलते हुए पदक प्राप्त किये हैं। उकरदीप कौर जब अपने जीते पदकों को देखती है तो वह उदास हो जाती है। उसने कहा कि अब तो उसके चेहरे की तरह उसके पदक भी उदास हो गए हैं। यदि सरकार उसकी इस उपलब्धि का सम्मान करती है तो उसे नौकरी देने के साथ उसकी आर्थिक सहायता भी करे ताकि वह देश की झोली स्वर्ण पदकों से भर देगी।

-मो. 98551-14484