कर्मों का फल

सिरसा के डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को एक बार फिर उम्र भर जेल में रहने की सज़ा सुनाई गई है। इससे पूर्व भी उसे दो अन्य मामलों में कड़ी सज़ा सुनाई जा चुकी है। कभी अत्यधिक चर्चा में रहे इस डेरे का जो हश्र हुआ है, वह अविस्मरणीय है। यह भी सभी को पूरी तरह से स्मरण है कि इस डेरे के साथ कितनी बड़ी संख्या में लोग जुड़े हुये थे। समय-समय पर इस संबंध में बहुत-सी बातें भी बाहर आती रही हैं। जिस प्रकार इसने धन-सम्पत्ति जुटाई, वह भी अत्यधिक  आश्चर्यचकित कर देने वाली बात है। चाहे अभी भी काफी लोग इसके साथ भावनात्मक धरातल पर जुड़े हुए हैं परन्तु निरन्तर ऐसा घटनाक्रम सामने आते रहने से डेरे के साथ जुड़े लोगों के विश्वास को भारी आघात पहुंचा है। यह भी हैरान करने वाली बात रही है कि सभी प्रकार के राजनीतिज्ञों की कतारें यहां लगती रही हैं।
आज की राजनीति सभी प्रकार के हथकंडे प्रयुक्त करके मत हासिल करने की राजनीति है। जिसने भ्रमित करके अधिक लोगों को अपने साथ जोड़ लिया, राजनीतिज्ञ भी उसी तरफ चलते हुये दिखाई देते हैं। ये राजनीतिज्ञ किसी एक पार्टी के साथ संबंधित नहीं हैं, न ही ऐसे लोग सिद्धांतों को मानने वाले होते हैं। उन्हें तो वोट खींच कर ऐसे डेरों के दर पर ला खड़ा करते हैं। जिस प्रकार इन डेरों एवं विभिन्न रंग-रूप वाले राजनीतिज्ञों ने एक-दूसरे को प्रयुक्त करने का यत्न किया है, वह कहानी ऐसे पड़ाव पर पहुंच चुकी है कि उसके साथ हमारी आज की राजनीति की पोल खुल कर बाहर आ गई है। एक-दो पार्टियों को छोड़ कर कौन-सा छोटा-बड़ा राजनीतिज्ञ है जो डेरों के द्वार पर खड़ा दिखाई नहीं देता रहा। सिख समाज के साथ जिस प्रकार डेरे का टकराव हुआ, जिस सीमा तक यह घटनाक्रम पहुंचा, वह आज भी अतीव ़खतरनाक प्रतीत होता है। आज भी समाज में उस समय शुरू हुये मामले को लेकर भारी विवाद बना हुआ है परन्तु इस सब कुछ के साथ हमारी राजनीति में पड़ा बिखराव एवं उत्पन्न हुआ गंदलापन भी सभी के समक्ष आ गया है। अपने इर्द-गिर्द निरन्तर आकार खड़े करके भारी भ्रम पाल लेना अक्सर मनुष्य की प्रवृत्ति बना रहा है। ऐसी प्रवृत्ति ने ही गुरमीत राम रहीम को इस स्थिति में ला खड़ा किया है। यह एक ऐसा उदाहरण है जो समूचे समाज के लिए एक बड़ा सबक सिद्ध हो सकता है। ऐसा उदाहरण ही मनुष्य के मन को एक दिशा दे सकता है तथा उसकी फैले हुए इस अंधकार में से बाहर निकलने में सहायता कर सकता है। 
आज हमारा समाज अंध-विश्वास, भ्रमों एवं झूठी मान्यताओं में घिरा हुआ दिखाई देता है। सम्भवत: ऐसे सबक उसे कोई ज्ञानपूर्ण प्रकाशमय पथ दिखा सकें। जिस प्रकार यह डेरेदार निरन्तर एक के बाद दूसरे चक्कर में फंसता रहा है, वह भी एक शिक्षादायक दिलचस्प कहानी से कम नहीं है। जिस प्रकार वह विचरण करता रहा है तथा जिस प्रकार उसने बड़ी संख्या में जन-मानस को भ्रमित किया, वह उसकी जादूगरी थी। आज भी मनुष्य समाज को ऐसे जादूगरों द्वारा फैलाये गये मक्कड़जाल से बाहर निकलने के लिए ज्ञान का तप तेज़ करके भारी संघर्ष करने पड़ सकते हैं। नि:सन्देह मनुष्य जिस प्रकार का कर्म करता है, उस प्रकार के ही फल का वह अधिकारी बनता है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द