क्या फरवरी में संभव हो पायेंगे पांच राज्यों में चुनाव ?

अब सभी विशेषज्ञ कहने लगे हैं कि भारत में कोरोना की तीसरी लहर शुरू हो चुकी है। प्रति दिन कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ने लगे हैं। यदि संक्रमितों की संख्या को देखा जाये, तो यह अभी भी कम है, लेकिन संख्या कितनी तेजी से बढ़ती है, यह हम समाप्त हो रहे साल के अप्रैल और मई महीनों में देख चुके हैं। वह कोरोना का डेल्टा वैरिएंट था। तीसरी लहर ओमिक्रॉन वैरिएंट पर सवार है, जो डेल्टा से कई गुना अधिक संक्रामक है। जो सबसे ज्यादा आशावादी हैं, उनके अनुसार डेल्टा की अपेक्षा ओमिक्रॉन तीन गुना ज्यादा तेजी से फैलता है। इससे भी खराब बात यह है कि यह इस बात की परवाह नहीं करता कि आपने टीका ले रखा है या नहीं, अथवा आपको पहले कोरोना संक्रमण हो चुका है या नहीं। इसका मतलब है कि देश की शत प्रतिशत आबादी कोरोना की इस किस्म के निशाने पर है। मतलब जब संक्रमण होगा, तो बहुत तेजी से होगा।
इससे जुड़ी संतोष की बात यह है कि यह डेल्टा जैसा घातक नहीं। डेल्टा लहर के दौर में हम देख चुके हैं कि किस तरह ऑक्सीजन की कमी हो गई थी और अस्पतालों में भर्ती होने के लिए लोग एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल की ओर दौड़ लगा रहे थे। उसके बावजूद अनेकों को बैड नहीं मिले लेकिन ओमिक्रॉन उतना घातक नहीं है। पहली बात तो यह है कि जिन्हें इसका संक्रमण होता है, उनमें 10 में से 9 को तो कोई लक्षण ही नहीं उभरते यानी यदि टैस्ट नहीं करवाया, तो उन्हें पता ही नहीं चलेगा कि कब उन्हें संक्रमण हुआ और कब वे ठीक हो गए लेकिन इससे जुड़ा डर यह है कि वे संक्रमित लोग और बहुत लोगों को संक्रमित करेंगे और इसके कारण संक्रमण की रफ्तार डेल्टा की अपेक्षा सिर्फ  तीन गुना ज्यादा नहीं, बल्कि कई गुना ज्यादा होगी।
संतोष की दूसरी बात यह है कि जिसको संक्रमण के लक्षण उभरेंगे, वे बहुत गंभीर नहीं होंगे। उनमें से अधिकांश को तो अस्पताल जाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी और वे घर पर ही साधारण इलाज से ठीक हो सकते हैं। पर संक्रमण इतना ज्यादा होने की आशंका है कि तब भी अस्पताल की कमी लोगों को महसूस हो सकती है। सबसे खराब तथ्य यह है कि जो पहले से ही किसी बीमारी से ग्रस्त हैं या वरिष्ठ नागरिक होने के कारण उम्र की समस्या से ग्रस्त हैं, उन पर खतरा बहुत ज्यादा रहेगा। चूंकि संक्रमण बहुत तेज गति से फैलेगा, इसलिए परिवार में किसी एक सदस्य के संक्रमित होने से सबके संक्रमित होने का खतरा बढ़ जाएगा। इसलिए घर के बाहर जो डिस्टेंसिंग हम कर रहे थे, उसी डिस्टेंसिंग का पालन घर के अंदर भी करना पड़ सकता है। लेकिन यह कितना संभव है? ज़ाहिर है, ओमिक्रॉन की समस्या बेहद गंभीर समस्या है और महज इस कारण से हमें लापरवाह नहीं होना चाहिए कि यह कम घातक है।
दूसरी लहर के दो बड़े कारणों में से एक कुम्भ का आयोजन और दूसरा पश्चिम बंगाल सहित कुछ अन्य राज्यों में चुनाव करवाना था। उन दोनों के कारण डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ीं और करोड़ों की संख्या में लोग संक्रमित हुए। कुम्भ ने अप्रैल और मई महीने में कहर ढाया, तो चुनावों के कारण अभी भी कुछ राज्यों में कोरोना लहर बनी हुई है। 
आने वाले फरवरी और मार्च महीने में भी पांच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव होने वाले हैं। चुनाव करवाए जाएं या नहीं, इस पर सवाल उठाए जा रहे हैं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भारत के निर्वाचन आयोग को सलाह दी है कि वह उत्तर प्रदेश में चुनाव को कम से कम दो महीने के लिए स्थगित कर दे। प्रधानमंत्री से भी कहा गया है कि वह इस दिशा में कदम उठाएं। उत्तर प्रदेश में चुनावी सभाएं और रैलियां अभी से होने लगी हैं। उन पर प्रतिबंध लगाने की सलाह भी हाई कोर्ट ने दी है।
अभी कोर्ट ने सिर्फ  सलाह ही दी है। उसका आदेश नहीं आया है। निर्वाचन आयोग और केन्द्र व राज्य सरकारों को कोर्ट की सलाह को गंभीरता से लेना चाहिए। उन्हें पुरानी गलती नहीं दुहरानी चाहिए। जब कुम्भ मेले के आयोजन का विरोध हुआ था, तो कहा गया था कि सब कुछ नियंत्रण में होगा और टैस्ट वगैरह का पुख्ता इंतजाम होगा लेकिन वे सारे दावे खोखले साबित हुए। सरकारी या गैर सरकारी मशीनरी हमारे देश में इतनी दुरुस्त नहीं है कि वह करोड़ों लोगों को नियंत्रित कर सके। चुनावों के पहले बड़ी बड़ी सभाएं होती हैं। हजारों क्या, लाखों लोग उसमें शामिल होते हैं। सभा के समय और वहां आते और वह फिर वहां से वापस अपने घरों को जाने के क्रम में लोगों द्वारा डिस्टेंसिंग का पालन किया ही नहीं जा सकता। यह असंभव बात है। 
और चूंकि ओमिक्रॉन बहुत तेजी से फैलता है, तो ये सभाएं और रैलियां कोरोना को बहुत तेजी से फैलाएंगी। उत्तर प्रदेश में डेल्टा लहर का तांडव हम देख चुके हैं। बिना इलाज के कितने लोग वहां मरे, उसका सही आंकड़ा, सरकार के पास नहीं है। गंगा नदी में बहती लाशें और गंगा के किनारे की रेतीली जमीन पर उथले गढ़े शव भयानक मंज़र की गवाही दे रहे थे। वैसी स्थिति से यदि उत्तर प्रदेश व देश के अन्य इलाकों को बचाना है, तो पांचों राज्यों के चुनाव कुछ समय के लिए स्थगित कर देने में ही समझदारी है।
कोरोना के बारे में एक बात सभी विशेषज्ञ कह रहे हैं कि यह लहर आएगी तो बहुत तेजी से लेकिन ज्यादा समय तक टिक नहीं पाएगी, क्योंकि लहर अधिकतम लोगों को कम समय में संक्रमित कर देगी। इसलिए चुनाव को लम्बे समय तक टालने की ज़रूरत भी नहीं पड़ेगी। कानपुर आईआईटी के वैज्ञानिकों की एक टीम का आकलन है कि कोरोना फरवरी के पहले सप्ताह में अपने चरमोत्कर्ष पर होगा। यदि हम माल लें कि लहर की शुरुआत हो चुकी है, तो इसके चरम पर पहुंचने में 40 दिन लगेंगे। उम्मीद की जा सकती है कि चरमोत्कर्ष पाने के बाद यह अगले 4 दिनों में उतर भी जाएगी। इसलिए चुनाव को दो या तीन महीने टाल देना ही ठीक रहेगा। तब तक हर्ड इम्यूनिटी भी आ जाएगी। 
उम्मीद करनी चाहिए कि निर्वाचन आयोग पुरानी गलतियों से सबक लेगा और चुनाव समय पर ही हो, इसकी जिद नहीं करेगा। हमारा संविधान बहुत लचीला है। समय पर चुनाव नहीं होने से कोई सांवैधानिक संकट भी नहीं आएगा। विधानसभा मौजूद नहीं रहने की स्थिति में राष्ट्रपति शासन भी एक संभावना होती है। वैसे कुछ महीने तक विधानसभा की कार्यावधि समाप्त होने के बावजूद मौजूदा प्रदेश सरकार बनी रह सकती है। (संवाद)