अनेक रोगों के नाशक हैं विभिन्न प्रकार के नमक

नमक भोजन में रूचि उत्पन्न करने वाला होता है। सामान्यत: सभी नमक भोजन को पकाने में सहायता करते हैं और इनमें विद्यमान क्षार, तेज, गर्म, पचने में हल्का, रूखा, शरीर में पसीना उत्पन्न करता है। नमक भोजन को पचाने वाला, दाह करने वाला, जमे हुए कफ को दूर करने वाला, वातनाशक और अग्नि के गुणों के समान गुण वाला होता है।
उद्धिज नमक : उद्धिज नमक को रेड भी कहा जाता है। यह कटु रस, क्षार युक्त, तिक्त तथा शरीर में पसीना लाने वाला होता है।
काला नमक : काला नमक रूचिकारक व पाचक होता है। इसका सेवन करने से कफ, वात तथा पित्त को शांत करने वाला होता है, पेट की वायु को शुद्ध करता है। इसके टुकड़े को मुंह में रखकर रस लेने से खांसी के रोग को दूर करने वाला होता है। काले नमक को पीसकर पुटली बनाकर सेंकने से सभी तरह की सूजन व दर्द को ठीक कर देता है।
यवक्षार नमक : यवक्षार नमक का सेवन पाण्डु, ग्रहणी, प्लीहा, आनाहा, गलग्रह, कफजन्य, कास, बवासीर और हृदय आदि रोगों के लिए हितकारी होता है।
समुद्री नमक : समुद्री नमक खाने में कडुवा होता है। विपाक में मधुर, गुरू और कफ व पित्त को उत्पन्न करने वाला होता है और शूलनाशक होता है।
सेंधा नमक : सैन्धव नमक को सेंधा और लाहौरी भी कहा जाता है। यह शीतल होता है और भोजन में रूचि उत्पन्न करता है। इसका सेवन वात, पित्त व कफ को नष्ट करने वाला होता है। आंखों के लिए हितकारी होता है। हाथ की हड्डी टूट जाने पर या शरीर के खून की गति बंद हो गई हो तो उस स्थान पर बराबर सेंधा नमक का ढेला रखना चाहिए या हाथ की हथेली में इसके नमक का एक ढेला बराबर लेकर मुट्ठी बंद करके लेने से भी इससे टूटी हुई हड्डी जुड़ जाती है। यदि पैर की हड्डी टूट गई हो तो गुनगुने पानी में इनके नमक का चूर्ण बनाकर किसी बर्तन में पानी डालकर इसमें पैरों को भिगो देने से आराम मिलता है। खून की गति को भी यह ठीक कर देता है। सेंधा नमक समस्त नमकों में सर्वश्रेष्ठ होता है। 
सौवर्चल नमक : सौवर्चल नमक सुगंधित होता है। सुगंधित होने से भोजन में रूचि उत्पन्न करता है, हृदय के लिये प्रिय होता है। पचने में हल्का, गर्म प्रभाव उत्पन्न करने वाला, कब्जियत, मल मूत्र आदि रोगाें को नष्ट करने वाला होता है।

 (स्वास्थ्य दर्पण)