विधायकों की पैन्शनों एवं आयकर का विवाद

पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद से,  पूर्व में प्रदेश की पारम्परिक राजनीतिक दलों की सरकारों के समय विधायकों की एकाधिक पैन्शनों को लेकर उभरे विवाद के बाद, अब उनकी आमदन पर बनने वाले आयकर का भुगतान भी सरकार द्वारा किये जाने संबंधी अनियमितता सामने आई है। इससे पूर्व पंजाब में पूर्व मुख्यमंत्रियों, पूर्व मंत्रियों एवं पूर्व विधायकों द्वारा एकाधिक बार के अपने चयन के आधार पर एक से अधिक पैन्शनें लिये जाने का रहस्योद्घाटन होने से प्रदेश और यहां तक कि पूरे देश में काफी वावेला मचा था।  जन-हित याचिका के ज़रिये यह रहस्योद्घाटन काफी चर्चित रहा कि कई विधायक पांच-पांच, छह-छह बार की पैन्शन लेते रहे हैं। इस प्रकार विधायकों के वेतन एवं पैन्शनों का करोड़ों रुपये का अतिरिक्त भार प्रदेश के राजस्व-कोष पर पड़ता रहा। अब विधायकों एवं पूर्व विधायकों, मंत्रियों, संसदीय सचिवों की आमदन पर लगने वाले आयकर की अदायगी भी सरकार द्वारा किये जाने की जन-हित जानकारी ने प्रदेश का हित-चिन्तन करने वाले लोगों को चकित किया है।
लोकतांत्रिक शासन प्रणालियों में प्राय: सरकारें और प्रशासनिक तंत्र आम लोगों को देश और प्रदेश के विकास एवं उन्नति हेतु ईमानदारी से करों खासकर आयकर की अदायगी हेतु प्रेरित करते रहते हैं। इसके प्रचार-प्रसार एवं जागरूकता हेतु सरकारें लाखों-करोड़ों रुपया भी खर्च करती हैं, और अदायगी न करने वालों को दंडित किये जाने की भी कानून में व्यवस्था है। किन्तु घोर आश्चर्य की बात है कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के एक समृद्ध माने जाते प्रांत पंजाब में विधायक, मंत्री, मुख्यमंत्री  पद पर आसीन रहे भद्र-जन न केवल भारी-भरकम वेतन, भत्ते और पैन्शनें ग्रहण करते हैं, अपितु इस राशि पर आयद होने वाला आयकर तक अदा नहीं करते। पंजाब में विगत 20 फरवरी को सम्पन्न हुए विधानसभा चुनावों के बाद गठित हुई आम आदमी सरकार ने इस मामले की गम्भीरता को समझते हुए और तमाम तरह की अटकलबाज़ियों का निराकण करते हुए विगत 26 मार्च को एक विधायक, एक पैन्शन का फैसला लागू करने की घोषणा कर दी थी। इस फैसले के बाद प्रदेश के राजस्व को पांच वर्ष में 80 करोड़ रुपये से अधिक की बचत होगी। इसके अतिरिक्त इस आय पर आयकर की सरकार द्वारा अदायगी की प्रथा को रोके जाने से भी प्रदेश को करोड़ों रुपये की आय हो सकेगी। अब तक अपनाई जाती आ रही कवायद के अन्तर्गत ऐसे पूर्व विधायकों की संख्या चार सौ से अधिक है, और कि प्रत्येक  पांच वर्ष बाद ऐसे पूर्व भ्रद जनों की संख्या और बढ़ जाती है। फरवरी, 2022 में सम्पन्न हुए चुनावों के बाद, इस रण में पराजित होने वाले 80 ऐसे नये दिग्गज जुड़ गये हैं जो इस पैन्शन और आयकर न देने के लाभों के अधिकारी बन जाएंगे। गुजरात देश का ऐसा वाहद राज्य है जहां पूर्व विधायकों को पैन्शन जैसी सुविधा हासिल नहीं है हालांकि पंजाब में पूर्व विधायकों, मंत्रियों एवं मुख्यमंत्रियों को अनेक ऐसे लाभ भी मिलते हैं जिनसे सरकारी कोष पर लाखों-करोड़ों रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ता है। यहां यह भी एक त्रासद सन्दर्भ है कि कोई राजनीतिक दल यदि अपने  किसी नेता को टिकट नहीं भी देता, अथवा उसे पार्टी से निकाल भी दिया जाता है, तो भी वह पैन्शन का अधिकारी अवश्य हो जाता है।
हम समझते हैं कि लगभग साढ़े तीन लाख करोड़ रुपये से अधिक के कज़र्दार प्रदेश के सांसदों, विधायकों, मंत्रियों एवं  मुख्यमंत्रियों के लिए ऐसी शाहाना मानसिकता किसी भी सूरत उचित नहीं कही जा सकती। प्रदेश की वित्तीय स्थिति संकटपूर्ण दौर से गुज़र रही है। आम लोगों की आर्थिकता पर भी संकट के घने बादल हैं। महंगाई के निरन्तर बढ़ते जाने से आम आदमी भीषण आर्थिक संकट में फंसा हुआ है। ऐसे में लोगों की सेवा करने के नाम पर विधायकों अथवा मंत्रियों द्वारा प्रशासनिक कर्मचारियों की भांति वेतन, भत्ते, पैन्शन आदि लेने और फिर आय कर भी अदा न करने जैसे कृत्य को कदापि तर्क-संगत, न्यायपूर्ण और यहां तक कि नैतिकता के धरातल पर औचित्यपूर्ण नहीं कहा जा सकता।
संविधान और कानून के अन्तर्गत सेवा-नियमों के अनुसार वेतन/पैन्शन के पात्र किसी सरकार के वे कर्मचारी होते हैं जिन्होंने एक निश्चित समय-सीमा तक प्रदेश के लोगों के लिए सेवा कार्य किया हो।  यह अवधि न्यूनतम दस वर्ष होती है, किन्तु पैन्शन उन्हें एक ही मिलती है। इसके विपरीत राजनीतिज्ञों ने अपने लिए कई-कई पैन्शनों की व्यवस्था कर रखी है। दूसरी ओर पंजाब की समय-समय की सरकारें आम कर्मचारियों की पैन्शनों और यहां तक कि उनके वेतन-भत्तों पर भी अंकुश लगाने जा रही हैं, तब विधायकों द्वारा अपने वेतन-भत्ते अथवा पैन्शनें स्वयं बढ़ाते जाना  कदापि उचित और मान्य नहीं हो सकता। अपने कर्मचारियों की आय पर स्रोत से करों की कटौती कर लेने वाली सरकार अपने विधायकों का आय कर स्वयं अदा करे, यह न तो सरकारों के लिए उचित है, और न विधायकों के लिए ही इसे नैतिक धरातल पर सही करार दिया जा सकता है। नैतिकता का यह भी तकाज़ा है कि मंत्री और विधायक अपना आयकर स्वयं अदा करें एवं एक विधायक , एक पैन्शन के सिद्धांत का पालन करने के लिए भी अपनी सहमति दें। आवश्यकता होती है तो इस संबंध में नियमों में आवश्यक संशोधन करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए।