चंडीगढ़ व एसवाईएल को लेकर पंजाब व हरियाणा में तनातनी

हरियाणा और पंजाब के बीच चंडीगढ़ और एसवाईएल को लेकर इन दिनों काफी तनातनी बनी हुई है। पिछले महीने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अपने चंडीगढ़ दौरे के दौरान यह ऐलान किया था कि पहली अप्रैल से चंडीगढ़ में केंद्र सरकार के कर्मचारियों वाले सेवा नियम लागू होंगे।  इस बारे में केंद्र की अधिसूचना जारी होते ही पंजाब की भगवंत मान के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी की सरकार ने इसका तीखा विरोध किया और पंजाब विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर एक प्रस्ताव पारित करते हुए अन्य मुद्दों के साथ-साथ चंडीगढ़ पर भी अपना अधिकार जताते हुए इस मामले को केंद्र सरकार के समक्ष उठाने का निर्णय लिया। पंजाब सरकार ने यह भी कहा कि पंजाब के गांवों को उजाड़कर चंडीगढ़ को पंजाब की राजधानी के तौर पर बसाया गया था इसलिए चंडीगढ़ पंजाब के हवाले किया जाए। उसका यह भी कहना था कि राजधानी हमेशा उसी राज्य के पास रहती है जो मूल राज्य होता है। 
बीबीएमबी बारे केंद्र के निर्णय का विरोध
पंजाब सरकार ने भाखड़ा-ब्यास मैनेजमैंट बोर्ड में पंजाब व हरियाणा से लगाए जाने वाले सदस्यों को हटाकर केंद्र के प्रतिनिधि नियुक्त किए जाने का भी विरोध किया। बीबीएमबी में पहले हरियाणा व पंजाब से सदस्य बिजली एवं सिंचाई नियुक्त किए जाते थे। इस फैसले को कुछ दिन पहले केंद्र ने बदल दिया। दोनों राज्यों में केंद्र के इस निर्णय पर काफी तीखी प्रतिक्रिया हुई। पंजाब के राजनीतिक दलों ने इस निर्णय पर केंद्र सरकार को आड़े हाथों लिया। हरियाणा में भाजपा की सरकार होने के कारण सत्तारूढ़ दल तीखी प्रतिक्रिया तो नहीं जता पाया लेकिन विपक्षी दलों ने केंद्र व प्रदेश सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ा। पंजाब-हरियाणा के बंटवारे के समय जब चंडीगढ़ को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था, उस समय चंडीगढ़ में सभी प्रमुख अधिकारी व ज्यादातर कर्मचारी 60-40 प्रतिशत के अनुसार नियुक्त किए गए थे। धीरे-धीरे चंडीगढ़ में केंद्र शासित प्रदेश के कर्मचारियों की नियुक्ति होती रही और पंजाब व हरियाणा के कर्मचारियों और अधिकारियों का 60-40 वाला प्रतिशत निरंतर घटता गया। पंजाब ने विधानसभा के बुलाए गए विशेष सत्र में चंडीगढ़ के अलावा बीबीएमबी और चंडीगढ़ में 60-40 प्रतिशत कर्मचारियों की नियुक्ति का मामला भी उठाया। पंजाब सरकार द्वारा चंडीगढ़ पंजाब को सौंपे जाने का प्रस्ताव विधानसभा में पारित होते ही हरियाणा में भी राजनीति गरमा गई।
हरियाणा को भी बुलाना पड़ा विशेष सत्र
पहली अप्रैल को जब पंजाब ने विशेष सत्र बुलाया तो इसी की प्रतिक्रिया के स्वरूप हरियाणा ने भी 5 अप्रैल को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर न सिर्फ चंडीगढ़ पर हरियाणा का दावा पेश किया, बल्कि चंडीगढ़ को लेकर गठित किए गए शाह आयोग की सिफारिश का हवाला देते हुए यह भी कहा कि शाह आयोग के अनुसार चंडीगढ़ सहित पूरी खरड़ तहसील हरियाणा को दिए जाने का सुझाव था  इसलिए चंडीगढ़ हरियाणा को सौंपा जाए। हरियाणा ने चंडीगढ़ के साथ-साथ एसवाईएल के अधूरे निर्माण को सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार पूरा करवाए जाने और पंजाब के हिन्दी भाषीय क्षेत्रों को भी हरियाणा को सौंपे जाने का मामला उठाते हुए विधानसभा से एक प्रस्ताव पारित कर दिया। इससे दोनों राज्यों के बीच न सिर्फ यह मामला सुर्खियां बन गया बल्कि दोनों प्रदेशों के राजनेताओं की इस मुद्दे पर तीखी ब्यानबाजी भी होने लगी। वैसे तो पिछले काफी सालों से चंडीगढ़ और एसवाईएल का मामला चुनावों के मौके सुर्खियां बनता रहा है, लेकिन पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनते ही इस मामले ने ज्यादा जोर पकड़ लिया है। इतना ही नहीं, हरियाणा सरकार ने आम आदमी पार्टी को घेरते हुए यह भी कह दिया कि जब हरियाणा को पंजाब से पानी मिलेगा तभी हरियाणा आगे दिल्ली को पानी दे पाएगा। 
तेज हुईं ‘आप’ की गतिविधियां
हरियाणा में आम आदमी पार्टी की राजनीतिक गतिविधियां इन दिनों काफी तेज हो गई हैं। कई पूर्व विधायक व पूर्व मंत्री अपने-अपने दलों को छोड़कर आम आदमी पार्टी में निरंतर शामिल हो रहे हैं। हरियाणा में आम आदमी पार्टी ने राज्यसभा सांसद डॉ. सुशील गुप्ता को प्रदेश प्रभारी बनाया है। पूर्व मंत्री निर्मल सिंह, पूर्व मुख्य संसदीय सचिव राज कुमार बाल्मीकि, पूर्व मंत्री बलबीर सैनी व पूर्व विधायक उमेश अग्रवाल सहित अनेक प्रमुख नेता व बड़ी संख्या में कार्यकर्त्ता आम आदमी पार्टी में शामिल हो चुके हैं। इससे न सिर्फ हरियाणा प्रभारी डॉ. सुशील गुप्ता बल्कि पार्टी के स्थानीय स्तर के नेता भी काफी उत्साहित हैं। पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद हरियाणा में आप नेताओं व पदाधिकारियों को तवज्जो मिलनी शुरू हो गई है। पहले जो लोग आम आदमी पार्टी के नेताओं के धरने-प्रदर्शन व बैठकों को कवर करने नहीं जाते थे, अब वे भी आप के कार्यक्रमों में नजर आने लगे हैं। वैसे भी दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने का सीधा प्रभाव हरियाणा पर पड़ रहा है। 
पूर्व मंत्री निर्मल सिंह की चुनौती
आम आदमी पार्टी में शामिल हुए पूर्व राजस्व मंत्री निर्मल सिंह ने राजनेताओं के समक्ष एक गहरी चुनौती खड़ी कर दी है। विधायकों व पूर्व मंत्रियों के लिए उनकी हर टर्म की पैंशन जोड़कर उन्हें काफी लंबी-चौड़ी पैंशन मिला करती थी। पंजाब सरकार ने विधायकों के लिए सिर्फ एक बार की पैंशन दिए जाने का ऐलान करके अन्य राज्यों के विधायकों व पूर्व विधायकों के समक्ष एक चुनौती खड़ी कर दी थी। अब आप नेता व पूर्व मंत्री निर्मल सिंह ने यह ऐलान करके बाकी लोगों को दुविधा में डाल दिया है। निर्मल सिंह ने सरकार को उनकी हर बार की पैंशन बंद करके सिर्फ एक बार की पैंशन दिए जाने का अनुरोध किया है। इस फैसले की आम लोगों में काफी सकारात्मक प्रतिक्रिया देखने को मिली है और अब अन्य विधायकाें और पूर्व विधायकों पर भी इसी फैसले का अनुसरण करने के लिए दबाव बनने लगा है। 
‘आप’ ने खराब की राजनेताओं की नींद
‘आप’ की गतिविधियों ने जहां सरकार में बैठे कुछ लोगों की नींद खराब कर दी है, वहीं विपक्ष में बैठे नेता भी इसी उधेड़बुन में लगे हुए हैं कि आने वाले दिनों में हरियाणा में आम आदमी पार्टी कितना असर डालेगी और इसका सबसे ज्यादा प्रभाव किस पर पड़ेगा। अब हरियाणा के नेताओं की निगाहें सिर्फ तीन बातों पर टिकी हुई हैं। उनकी नजर इसी साल होने जा रहे हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजों और पंजाब में आम आदमी पार्टी द्वारा की गई घोषणाओं के लागू किए जाने पर टिकी हुई है। विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं का कहना है कि अगर हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन प्रभावशाली रहा तो हरियाणा में भी आम आदमी  पार्टी को अपना प्रभाव दिखाने का निश्चित तौर पर मौका मिलेगा। उनका यह भी कहना है कि आम आदमी पार्टी ने अगर पंजाब में लोगों को 300 यूनिट तक हर महीने बिजली फ्री देने व महिलाओं को 1 हजार रुपए महीना पैंशन देने का अपना वायदा पूरा कर दिया तो हिमाचल और हरियाणा में इस बात का व्यापक असर देखने को मिलेगा। फिलहाल सभी की नजरें पंजाब में आम आदमी पार्टी सरकार की कार्यप्रणाली और पंजाब की वित्तीय स्थिति पर टिकी हुई हैं। 
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