भारतीय बैडमिंटन के नए युग की शुरुआत

15  मई को थाईलैंड की राजधानी बैंकांक में खेले गए बैडमिंटन के सबसे प्रतिष्ठित टूर्नामेंट के फाइनल मुकाबले में भारत ने ऐतिहासिक जीत दर्ज क र विश्व पटल पर भारत का गौरव बढ़ाया है। भारतीय खिलाड़ियों ने ऐसी टीम को पटखनी देते हुए थॉमस कप भारत के नाम किया, जो विश्व की अपराजेय टीम मानी जाती रही है। हालांकि भारत को ग्रुप स्टेज में चीनी ताइपे ने हरा दिया था, जिसके बाद तमाम खेल विश्लेषक मान बैठे थे कि भारत क्वार्टर फाइनल से आगे नहीं बढ़ पाएगा लेकिन टीम इंडिया ने मलेशिया, डेनमार्क तथा इंडोनेशिया को मात देकर स्वर्णिम सफलता हासिल की। हालांकि चैम्पियन इंडोनेशियाई टीम को ही जीत का दावेदार माना जा रहा था लेकिन भारतीय खिलाड़ियों ने इंडोनेशिया को 3-0 से मात देते हुए सारे अनुमानों को गलत साबित कर दिया। 


बैडमिंटन में प्रकाश पादुकोण, पी. गोपीचंद, पीवी सिंधु, साइना नेहवाल, ज्वाला गुट्टा, किदांबी श्रीकांत जैसे कई खिलाड़ी ओलम्पिक, एशियाई खेलों, राष्ट्रमंडल खेलों, विश्व चैम्पियनशिप इत्यादि विभिन्न टूर्नामेंटों में शानदार प्रदर्शन करते हुए कई उपलब्धियां हासिल कर चुके हैं लेकिन थॉमस कप में भारतीय प्रतिभाएं लगातार विफल होती रही। थॉमस कप टूर्नामेंट में भारत की जीत ऐतिहासिक और यादगार इसलिए भी है क्योंकि 2014, 2016 और 2018 की स्पर्धाओं में जो भारतीय टीम नॉकआऊट तक भी नहीं पहुंच सकी थी और 2020 में भारत क्वार्टर फाइनल में हारकर बाहर हो गई थी, उसके लिए इस बार भी मलेशिया तथा डेनमार्क जैसी टीमों को शिकस्त देकर 

फाइनल तक पहुंचना और फाइनल में इंडोनेशिया जैसी बेहद सशक्त टीम को हराना इतना आसान नहीं था। भारत ने 1952 तथा 1955 की स्पर्धाओं में अंतिम राऊंड तक का सफर तय किया था और उसके बाद बेहतरीन प्रदर्शन 1979 में रहा था, जब प्रकाश पादुकोण की अगुवाई में टीम सैमीफाइनल तक पहुंचने में सफल रही थी। उसके बाद से भारतीय टीम कभी भी सैमीफाइनल से आगे नहीं बढ़ सकी और सैमीफाइनल से फाइनल तक का सफर तय करने में भारत को 43 साल लग गए। 
थॉमस कप टूर्नामेंट वर्ष 1949 से नियमित खेला जा रहा है, जिसके आयोजन का विचार सबसे पहले बेहतरीन खिलाड़ी माने जाने वाले सर जॉर्ज एलन थॉमस के दिमाग में आया था। वह चाहते थे कि फुटबॉल विश्व कप तथा टैनिस के डेविड विश्व कप की ही भांति बैडमिंटन का भी टूर्नामेंट होना चाहिए। शुरूआत में यह टूर्नामेंट हर तीन साल के अंतराल पर आयोजित किया जाता था लेकिन 1982 के बाद इसका आयोजन दो वर्षों में एक बार किया जाने लगा। 1949 से अभी तक यह टूर्नामेंट अब तक कुल 32 बार आयोजित किया जा चुका है। 

दुनिया के इस प्रतिष्ठित टूर्नामेंट में बैडमिंटन वर्ल्ड फैडरेशन के कुल 16 सदस्य देश भाग लेते हैं। इस टूर्नामेंट में इंडोनेशिया, चीन, डेनमार्क, मलेशिया तथा जापान जैसी टीमों का ही दबदबा रहा था और भारत अब इस दबदबे को खत्म करते हुए यह टूर्नामेंट जीतने वाला छठा देश बन गया है। 
हालांकि थॉमस कप टूर्नामेंट में इंडोनेशिया, मलेशिया, डेनमार्क जैसी टीमों में शीर्ष रैंकिंग के खिलाड़ी थे लेकिन दबाव में आए बिना भारतीय खिलाड़ियों सात्विक-चिराग, लक्ष्य सेन, किदांबी श्रीकांत, एचएस प्रणय ने जीत का ऐसा इतिहास 

रच दिया, जिसकी किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। फाइनल में लक्ष्य सेन ने पहले और सात्विक-चिराग की जोड़ी ने दूसरे मैच में भारत को जीत दिलाई। उसके बाद किदांबी श्रीकांत ने तीसरा मैच जीतकर भारतीय टीम को पहली बार थॉमस कप का चैंपियन बनाया। भारत की इस गौरवमयी उपलब्धि से पूरे देश का उत्साहित होना स्वाभाविक है। थॉमस कप टूर्नामेंट में भारत की जीत ने यह प्रमाणित कर दिया है कि भारत अब बैडमिंटन में भी एक बड़ी शक्ति के रूप में उभर रहा है।  उम्मीद की जानी चाहिए कि थॉमस कप टूर्नामेंट में भारत की स्वर्णिम जीत बैडमिंटन के लिए नए युग का सृजन करते हुए निर्विवाद रूप से भारत को बैडमिंटन में और आगे ले जाएगी तथा उभरते खिलाड़ियों को प्रेरित करते हुए उनके लिए मील का पत्थर साबित होगी।
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