चीन के विरुद्ध मोर्चा

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का दो दिवसीय जापान दौरा कई पक्षों से अत्याधिक महत्त्वपूर्ण रहा है। जहां तक जापान का संबंध है, यह भारत के कुछ निकटवर्ती एवं सहयोगी देशों में से एक है। जापान का क्षेत्रफल पौने 4 लाख किलोमीटर है। आनुपातिक रूप में यह एक छोटा देश है पर इसकी उपलब्धियां बड़ी मानी जाती रही हैं। दूसरे विश्व युद्ध के समय भी जापान एक बड़ी शक्ति के रूप में उभरा था। जर्मनी, जापान एवं इटली ने यूरोप के बहुत-से देशों एवं फिर अमरीका को बड़ी  टक्कर दी थी। हिरोशिमा एवं नागासाकी पर अमरीका की ओर से परमाणु बम गिराये जाने के बाद ही इसने पराजय स्वीकार की थी। परन्तु इस युद्ध के विनाश के बाद जिस तेज़ी के साथ जापान ने प्रत्येक क्षेत्र में उन्नति की है, वह आश्चर्यजनक है। आज जापान प्रत्येक पक्ष से विश्व के कुछ एक बड़े देशों में शामिल है। भारत के साथ इसके संबंध लम्बी अवधि से सुखद बने रहे हैं। भारत में उपजा बौद्ध धर्म चीन के माध्यम से जापान में गया था। आज यह धर्म वहां का सबसे बड़ा धर्म है। 
जापान ने सदैव आधारभूत सुविधाओं एवं ज़रूरतों के क्षेत्र में भारत की बड़ी सहायता की है तथा प्रत्येक कठिन घड़ी के समय वह भारत के साथ खड़ा रहा है। मौजूदा समय में चीन एक महा-शक्ति के रूप में उभर रहा है तथा उसने दक्षिणी चीन सागर एवं पूर्वी चीन सागर पर अपना पूर्ण अधिकार जमाना शुरू कर दिया है, परन्तु जापान सहित उसके पड़ोसी देश इन सागरों पर अन्तर्राष्ट्रीय समुद्र कानूनों के अनुसार अपना-अपना अधिकार समझते हैं। इनमें ताइवान, फिलिपीन्स, ब्रूनेई, मलेशिया एवं वियतनाम आदि शामिल हैं। अब जापान में अमरीका की पहलकदमी से ‘इंडो-पैसीफिक इकनामिक फ्रेम वर्क’ की स्थापना की घोषणा से इस क्षेत्र का महत्त्व और भी बढ़ गया है। इस संगठन में 12 देश ऐसे हैं जो प्रत्येक पक्ष से आपसी सहयोग के साथ भविष्य में इकट्ठा होकर चलने के लिए तैयार हैं। इनमें आस्ट्रेलिया, ब्रूनेई, भारत, इंडोनेशिया, जापान, दक्षिण कोरिया, मलेशिया, न्यूज़ीलैंड, फिलिपीन्स, थाइलैंड, सिंगापुर एवं वियतनाम आदि शामिल हैं। इसके अतिरिक्त जापान में क्वाड समूह में शामिल देशों के प्रतिनिधियों ने भी बैठक की है जिनमें अमरीका, आस्ट्रेलिया, जापान एवं भारत शामिल हैं। 
हिन्द-प्रशांत क्षेत्र जिसे इंडो-पैसीफिक क्षेत्र भी कहा जाता है, के दायरे में हिन्द-महासागर एवं प्रशांत महासागर से सटा पूरा क्षेत्र शामिल है जिसे हिन्द-प्रशांत क्षेत्र ही कहा जाता है। क्वाड देशों की इस बैठक में चाहे अन्य एजेंडे भी शामिल हैं परन्तु इसका मुख्य उद्देश्य चीन के इस क्षेत्र में बढ़ते हुये हस्तक्षेप को रोकना है। चीन ने जहां इस क्षेत्र के एक बड़े समुद्री भाग पर अपना हक जताना शुरू कर दिया है, वहीं यह सभी पड़ोसी देशों के लिए एक बड़ा ़खतरा बना दिखाई देता है क्योंकि इसने दक्षिण चीन सागर में कुछ ऐसे द्वीप स्वयं तैयार कर लिये हैं जिन पर इसने अपने सैनिक पहरे बिठा दिये हैं। चार सदस्यीय क्वाड देशों के संगठन ने इस बात की तीव्र आलोचना की है कि चीन अपने तौर पर इस क्षेत्र पर अपना अधिकार जता रहा है तथा दूसरे देशों के लिए कठिनाइयां उत्पन्न करने के साथ-साथ समुद्र के माध्यम से अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में भी बाधाएं डाल रहा है। इसीलिए भारत सहित दर्जनों देश आज इसके विरुद्ध उठ खड़े हुये हैं। यदि चीन अपने इरादों से नहीं टलता तो क्वाड देशों के साथ मिलकर चीन के अन्य दर्जनों पड़ोसी देश संयुक्त रूप में उसे चुनौती दे सकते हैं तथा चीन की विस्तारवादी नीतियों को रोकने के लिए प्रभावशाली पग उठा सकते हैं।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द