भारत की आन, बान और शान का प्रतीक है

विश्वा के लगभग हर देश का अपना अलग राष्ट्रीय गीत है, अपना संविधान (लिखित अथवा अलिखित) है, अपना राष्ट्रीय चिन्ह, राष्ट्रीय पशु, राष्ट्रीय पक्षी, राष्ट्रीय फूल, राष्ट्रीय खेल इत्यादि और भी बहुत कुछ अपना होता है। इन सबका संबंध उस देश की अस्मिता और राष्ट्रीय गौरव से जुड़ा होता है, जो उस राष्ट्र की अमूल्य धरोहर मानी जाती है। इसी प्रकार हर देश का अपना एक राष्ट्रीय ध्वज भी होता है, जो सही मायने में उस देश की आन,बान और शान का प्रतीक होता है। हर देश की यही ख्वाहिश रहती है कि उसका राष्ट्रीय ध्वज विश्व भर में विजय पताका के रूप में लहराए।  हमारा राष्ट्र ध्वज तिरंगा अपने में अनेक विशेषताएं समेटे और विशेष गरिमा धारण किए हुए है क्योंकि यह समूचे विश्व को त्याग एवं शांति का संदेश देता है। देश के गुलामी काल में  तिरंगे झंडे ने ही देशवासियों को एकता और भाईचारे का संदेश देकर उन्हें एक सूत्र में पिरोते हुए अंग्रेज़ों से लोहा लेने के लिए प्रेरित किया। इस दौरान क्रांतिकारी तिरंगे का सम्मान अपने प्राणों से भी बढ़कर किया करते थे। इसका अनुमान उस समय प्रचलित  नारों से ही बड़ी आसानी से लगाया जा सकता है— ‘सिर कटे तो कोई गम नहीं, मगर हम तिरंगे को नहीं झुकने देंगे।’ हमारा इतिहास ऐसे गौरवशाली प्रसंगों से भरा पड़ा है जब क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों से भी बढ़कर राष्ट्र ध्वज का सम्मान किया और सीने पर लाठियां और गोलियां खाते हुए भी इसे अंग्रेज़ी हुकूमत के सामने झुकने नहीं दिया। हमारे राष्ट्रीय ध्वज को वर्तमान स्वरूप तक पहुंचने में करीब सौ से अधिक साल लगे। पहला राष्ट्रीय ध्वज 7 अगस्त, 1906 को कलकत्ता के पारसी बागान स्क्वायर में फहराया गया था, जिसमें हरे, पीले और लाल रंग की तीन पट्टियां थीं। झंडे के बीच की पट्टी पर वंदेमातरम लिखा था जबकि नीचे की पट्टी पर सूर्य और चांद का सांकेतिक चिन्ह बना था। देश का दूसरा झंडा 1907 में मैडम कामा और निर्वासित क्रांतिकारियों के संगठन ने पेरिस में फहराया था, जो पहले झंडे से ज्यादा अलग नहीं था। उसमें हरे, पीले और नारंगी रंग की तीन पट्टियां थीं, और बीच की पट्टी पर वंदेमातरम लिखा था जबकि नीचे की पट्टी पर सूर्य और चांद का सांकेतिक चिन्ह बना था। तीसरा झंडा डा. एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने होम रूल मूवमेंट 1917 के दौरान फहराया था, जिसमें ऊपर की तरफ  यूनियन जैक था तथा सप्तर्षि नक्षत्र और अर्धचंद्र व सितारा भी था। चौथे झंडे का डिज़ाइन 1916 में लेखक और भूभौतिकीविद् पिंगाली वेंकैया ने महात्मा गांधी की अनुमति से देश की एकजुटता के लिए तैयार किया था, जिसमें भारत का आर्थिक उत्थान दर्शाते हुए चरखा शामिल किया गया था। इस झंडे को गांधी जी ने 1921 में फहराया था, जिसमें सबसे ऊपर सफेद, बीच में हरी और सबसे नीचे लाल रंग की पट्टियां थीं। 1931 में राष्ट्रीय ध्वज में ऐतिहासिक बदलाव करते हुए पांचवां झंडा तैयार किया गया, जिसे कांग्रेस कमेटी की बैठक में स्वीकृति प्रदान की गई थी। इस झंडे में ऊपर केसरिया रंग, बीच में सफेद और सबसे नीचे हरे रंग की पट्टी थी। सफेद रंग की पट्टी पर नीले रंग का चरखा बना था, जिसका स्थान बाद में चक्र ने ले लिया। भारत की आज़ादी के कुछ ही दिन पूर्व 22 जुलाई, 1947 को संविधान सभा की बैठक में झंडे के छठे स्वरूप को सर्वसम्मति से राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार किया गयाए जिसे 14 अगस्त, 1947 को संविधान सभा द्वारा राष्ट्र को समर्पित किया गया। यही झंडा 1947 से अभी तक हमारा राष्ट्रीय ध्वज है। तिरंगे के तीन रंग न केवल देश का गौरव हैं बल्कि ये जीवन के दर्शन से भी गहराई से जुड़े हैं। तिरंगे के इन तीन रंगों का दार्शनिक महत्व भी है। तीन रंगों की पट्टियों वाले इस ध्वज में सबसे ऊपर की पट्टी का रंग केसरिया है जो त्याग, साहस, बलिदान, बल और पौरुष का प्रतीक है। यह रंग अध्यात्म और ऊर्जा का प्रतीक है तथा राष्ट्र के प्रति हिम्मत एवं निस्वार्थ भावनाओं को भी दर्शाता है। बीच की पट्टी का रंग सफेद है जो शांति, सत्य और पवित्रता का प्रतीक है। नीचे की पट्टी का रंग हरा है जो हरियाली, खुशहाली, समृद्धि, उर्वरता और सम्पन्नता का प्रतीक है। हरा रंग समस्त भारतवर्ष में हरियाली को दर्शाता है और इसे उत्सव के माहौल से भी जोड़कर देखा जाता है। सफेद पट्टी में बीचों-बीच 24 तीलियों वाले अशोक चक्र को स्थान दिया गया है, जो राष्ट्र के कानून, देश की प्रगति और धर्म के पहिये का प्रतीक है। सफेद पट्टी पर बने इस चक्र को ‘धर्म चक्र’ भी कहा जाता है और इसे विधि का चक्र भी कहते हैं जो तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए सारनाथ की लाट से लिया गया है। इस चक्र में 24 तीलियों का अर्थ है कि दिन-रात्रि के 24 घंटे हमारा जीवन गतिशील है। 26 जनवरी 2002 को भारतीय ध्वज संहिता में संशोधन किया गया और स्वतंत्रता के करीब 54 सालों बाद भारत के नागरिकों को अपने घरों, कार्यालयों या अन्य संस्थानों में न केवल राष्ट्रीय दिवसों पर बल्कि किसी भी दिन बगैर किसी रुकावट के राष्ट्र ध्वज फहराने की अनुमति मिल गई। अब भारतीय नागरिक राष्ट्रीय ध्वज को कहीं भी और किसी भी समय फहरा सकते हैं, बशर्ते भारतीय ध्वज संहिता का कड़ाई से पालन किया जाये और तिरंगे के सम्मान में कोई कमी न आने दी जाए।

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योगेश कुमार गोयल