कांग्रेस की राजनीति में कितनी जान डालेगी पदयात्रा !

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी अब तक की राजनीति में कई बार पदयात्राएं कर चुके हैं, लेकिन ये पदयात्राएं एक दो किलोमीटर से लेकर अधिकतम छह किलोमीटर तक की ही रही हैं। अब तक की उनकी सबसे लम्बी पदयात्रा साल 2016 में मुंबई में की गई थी, जो कि बांद्रा से धारावी तक लगभग 6 किलोमीटर की थी। लेकिन 7 सितम्बर, 2022 से शुरू हो रही कांग्रेस की जिस ‘भारत जोड़ो’ यात्रा का राहुल गांधी नेतृत्व करेंगे, वह कन्याकुमारी से कश्मीर तक की लगभग 3500 किलोमीटर की होगी। भारत के इतिहास में यह अब तक की सबसे बड़ी राजनीतिक यात्रा होगी। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और उनके बाद के सालों में चंद्रशेखर तथा जयप्रकाश नारायण ने भी जो राजनीतिक पदयात्राएं की हैं, यह उन सबसे बड़ी है। इसका फैसला इसी साल मई में कांग्रेस के उदयपुर नवसंकल्प चिंतन शिविर में हुआ था। 
पहले यह यात्रा 2 अक्तूबर यानी महात्मा गांधी और लालबहादुर शास्त्री जैसे दिग्गज कांग्रेसी पूर्वजों के जन्मदिन से शुरू होनी थी लेकिन अब यह अपने प्रस्तावित कार्यक्रम से लगभग एक महीने पहले शुरू हो रही है, तो जाहिर है, कांग्रेस इसकी जबरदस्त ज़रूरत महसूस कर रही है। अगर राहुल गांधी ने इस पदयात्रा के दौरान लोगों से सही मायने में कनेक्ट कर लिया तो यह उनकी राजनीतिक परिपक्वता पर चार चांद लगायेगी। कांग्रेस को जनता से जिस जुड़ाव और संवाद की हाल के सालों में जबरदस्त ज़रूरत महसूस हुई है, वह संवाद और जुड़ाव दोनों ही चीजें यह यात्रा देगी। 
महात्मा गांधी कहा करते थे, भारत को भारतीयों के बीच रहकर ही समझा जा सकता है और जब राहुल गांधी करीब 150 दिन यानी पांच महीनों तक आम लोगों के बीच रहेंगे तो निश्चित रूप से उन्हें अपने देश भारत की जबरदस्त समझ तो बनेगी ही। वह यह भी जान पाएंगे कि जनता से जुड़े रहने के लिए किस चीज की ज़रूरत होती है। अगर इस यात्रा को राहुल गांधी और उनके कांग्रेसी साथी सचमुच भारत को जानने और उससे कनेक्ट होने के लिए ही केन्द्रित रख सके, तो यह यात्रा न सिर्फ  कांग्रेस को उबारेगी बल्कि दिनोंदिन मूल्यविहीन होती जा रही राजनीति को भी कुछ मूल्य देगी। अगर इस यात्रा में जो कि पूरी तरह से पैदल होनी है राहुल गांधी और दूसरे कांग्रेस जनों ने आम लोगों की समस्याओं को समझने, उनसे संवाद कायम करने और फिर उनकी आशा और आकांक्षाओं के मुताबिक अपनी राजनीति को शेप या आकार देने के लिए कोई सार्थक यत्न किया तो इससे उन्हें और देश दोनों को अद्भुत फायदे होंगे। 
लेकिन हमें इस भुलावे में भी नहीं रहना चाहिए कि आज के हिंदुस्तान में किसी राजनीतिक पदयात्रा का वैसा ही असर होगा जैसा ब्रिटिश भारत में विशेषकर महात्मा गांधी की पदयात्राओं का हुआ करता था। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आजादी के पहले तक ऐसे तमाम पहलुओं और गतिविधियों में भारत बनाम विदेशी की साइकोलॉजी हावी रहती थी और ऐसे तमाम छोटे छोटे कार्यक्रमों का आम भारतीयों द्वारा जबरदस्त समर्थन होता था क्योंकि हम पर शासन कर रहे विदेशी हमें दोयम दर्जे का नागरिक मानते थे। इसलिए उन दिनों भारत के ताकतवर राजनेताओं द्वारा की जाने वाली पदयात्राएं आम लोगों को गर्व से भर देती थीं और उन्हें ताकतवर ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध एकजुट करती थीं लेकिन आज ऐसा नहीं है। आज देश में देश के लोगों का ही शासन है। इसलिए अगर कांग्रेस के वरिष्ठ और चिंतक राजनेता जयराम रमेश और पॉलिटिक्स में माहिर दिग्विजय सिंह ने इस पदयात्रा के अनंत सपनीले फायदों की कल्पना कर रखी है तो उन्हें व्यवहारिक होना पड़ेगा और शुरू से ही अपने साथी कार्यकर्ताओं को यह समझा कर रखना होगा कि इस यात्रा का मकसद राजनीतिक वोट इकट्ठे करना नहीं है। 
राहुल गांधी की कितनी भी आलोचना की जाए, लेकिन हमें यह बात नहीं भूलना चाहिए कि पिछले कुछ सालों में राहुल गांधी ने आम भारतीयों के बीच अपनी जगह बनायी है। खुद को लोगों से कनेक्ट किया है और किसी हद तक अपनी विश्वसनीयता भी बनायी है। हालांकि राहुल गांधी पिछले कुछ महीनों से सरकार के विरुद्ध अपनी तीखी आलोचनाओं के लिए जाने गये हैं लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि उनकी तमाम तीखी आलोचनाएं व्यवहारिकता के धरातल से जुड़ी रही हैं। इसलिए उनके विरोधी उनका कितना ही मज़ाक उड़ाएं, उनकी राजनीतिक समझ को लेकर भ्रम फैलाएं, लेकिन हकीकत यही है कि राहुल गांधी ने हाल के सालों में लगातार खुद को राजनीतिक सोच और विचार के मामले में समृद्ध किया है। उनमें जरूरी परिपक्वता आयी है और अब वह पहले से कहीं ज्यादा आत्मविश्वास से भरे हुए हैं। आम तौर पर हमारे यहां कोई भी बड़ा काम किसी खास दिन से शुरू किया जाता है लेकिन 7 सितम्बर भारत के इतिहास में कोई खास दिन होने की दस्तक नहीं देता। न तो इस दिन किसी बड़े राजनेता का जन्म हुआ है और न ही कोई ऐसी बड़ी घटना हुई है जिसे हर हाल में हर भारतीय याद रखता हो। इसके बाद भी अगर इस दिन को खास तौर पर कांग्रेस और राहुल गांधी ने भारत यात्रा के लिए चुना है, तो ज़ाहिर है, इसकी कांग्रेस के पास एक बहुचिंतित रूपरेखा होगी जिसके लक्ष्य में कांग्रेस को आम लोगों के बीच विश्वसनीयता के साथ पुनर्स्थापना करनी होगी। यह महज पदयात्राओं जैसे भावुक अपील या प्रतीक से ही संभव नहीं है। अगर कांग्रेस देश के राजनीतिक परिदृश्य में अपना बड़ा हिस्सा चाहती है तो उसे कुछ बड़ा ही करना होगा। 
कांग्रेस अगर सचमुच चाहती है कि वह भारतीय राजनीति की उस परम्परा में ताकत हासिल करे तो उन्हें न सिर्फ  ज़रूरी संसाधनों के प्रति संवेदनशील रहना होगा बल्कि कुछ धारणाओं से ऊपर उठकर अपने और अपने समर्थकों के लिए सपने पैदा करने होंगे। हालांकि यह कहना तो अभी जल्दबाजी होगा कि इस पदयात्रा का राहुल गांधी को आगामी लोकसभा चुनाव में कितना फायदा मिलेगा? लेकिन अगर कांग्रेस इस यात्रा के जरिये लोगों के दिलोदिमाग में यह बात बैठाने में कामयाब रही कि वह लोगों को फिर से एक मज़बूत सरकार देगी, तो उनके पक्ष में माहौल भले अभी से न बने, लेकिन जब लोग कांग्रेस के बारे में सोचेंगे, तब यह संदर्भ उन्हें सकारात्मक बनायेगा। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सैंटर