केजरीवाल की राष्ट्रीय राजनीति का निराला है अंदाज़

राजनेताओं की जमात में अरविंद केजरीवाल सबसे अलग हैं। वह खुद आधे-अधूरे राज्य के मुख्यमंत्री हैं लेकिन पंजाब में अपनी पार्टी की सरकार बनने के बाद उनकी अखिल भारतीय महत्वाकांक्षाएं ज़ोर मारने लगी हैं। उनकी पार्टी भी अपने नेता को पीएम मेटीरियल बता रही है। इसलिए अब वह अपने तरीके से दिल्ली में बैठ कर बयानों के जरिए या चिट्ठी आदि लिख कर राष्ट्रीय राजनीति कर रहे हैं। दिल्ली में चूंकि देश के हर राज्य के लोग रहते हैं तो इससे भी उनको लगता है कि वह दिल्ली में देश भर की राजनीति कर रहे हैं। जैसे उन्होंने गुरुवार को ओनम के मौके पर अखबारों में एक पेज का विज्ञापन छपवाया और साथ ही मलयालम भाषा में ट्वीट करके भी बधाई दी। इस तरह उन्होंने केरल की राजनीति कर ली। इस तरह के विज्ञापनों के जरिए वे दूसरे राज्यों की राजनीति भी करते रहते हैं। इसी तरह उन्होंने प्रधानमंत्री को एक चिट्ठी लिखी, जिसमें कहा कि देश के 80 फीसदी स्कूल कबाड़खाना बन गए हैं। अब सवाल है कि इसमें प्रधानमंत्री क्या करें? शिक्षा तो राज्य सरकार का विषय है इसलिए केजरीवाल के पास अगर कबाड़ बन गए स्कूलों का कोई सर्वे या डाटा है तो उस आधार पर उनको राज्यों के मुख्यमंत्रियों या शिक्षा मंत्रियों को चिट्ठी लिख कर सुझाव देने चाहिए थे, लेकिन उससे राष्ट्रीय राजनीति नहीं होती इसलिए उन्होंने सीधे प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी। वह पिछले कुछ समय से सीधे प्रधानमंत्री को निशाना बनाने लगे हैं ताकि उनकी पार्टी कह सके कि केजरीवाल का मुकाबला मोदी से ही है।
बिहार का बदला मणिपुर में 
बिहार में नितीश कुमार ने भाजपा से अपनी पार्टी का गठबंधन खत्म करके राष्ट्रीय जनता दल के साथ सरकार बनाई तो भाजपा ने फौरन जवाबी कार्रवाई करते हुए मणिपुर में उनकी पार्टी तोड़ दी। इस साल हुए विधानसभा चुनाव में जनता दल (यू) ने मणिपुर की 60 सदस्यों वाली विधानसभा में 6 सीटें जीती थीं। भाजपा ने 32 सीटें जीत कर अपने दम पर बहुमत हासिल किया था। हालांकि नेशनलिस्ट पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के सात और जद (यू) के 6 विधायक भी सरकार के साथ थे। यह दूसरी बार है, जब पूर्वोत्तर में भाजपा ने जद (यू) के विधायक तोड़े हैं। जब दोनों पार्टियां साथ थीं, तब एक साल पहले अरुणाचल प्रदेश में जद (यू) के सभी 6 विधायक भाजपा में चले गए थे। बहरहाल, भाजपा ने जद (यू) को आमने-सामने की लड़ाई का संदेश दिया है लेकिन मणिपुर का पूरा घटनाक्त्रम इतना भर नहीं है। इसके जरिए भाजपा ने मेघालय में अपनी सहयोगी एनपीपी को भी संदेश दिया है। मेघालय में एनपीपी की सरकार है। मुख्यमंत्री कोनरेड संगमा ने तेवर दिखाते हुए पिछले दिनों कहा कि अगले साल होने वाले चुनाव में उनकी पार्टी भाजपा के साथ तालमेल नहीं करेगी। मणिपुर में जद (यू) को तोड़ कर भाजपा ने एनपीपी को भी संदेश दिया है कि उसे एनपीपी की ज़रूरत नहीं है यानि आने वाले दिनों में एनपीपी भी भाजपा के ऑपरेशन लोटस का शिकार हो सकती है। 
खेल संगठनों में भी भाजपा का ‘ऑपरेशन लोटस’ 
ऐसा नहीं है कि भाजपा सिर्फ  विपक्ष शासित राज्य सरकारों को गिराने या राज्यों में अपनी ताकत बढ़ाने के लिए ही ऑपरेशन लोटस यानी विपक्षी दलों में तोड़-फोड़ या खरीद-फरोख्त के खेल में जुटी है। उसका यह खेल राजनीति से इतर खेल संगठनों में भी चल रहा है। वह एक-एक करके कई खेल संगठनों पर कब्जा कर चुकी है। उसने नया कब्जा ऑल इंडिया फुटबॉल फैडरेशन (एआईएफएफ ) पर किया है। भाजपा के पश्चिम बंगाल के नेता कल्याण चौबे फुटबॉल फैडरेशन के अध्यक्ष चुने गए हैं। केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई। रिजिजू उस होटल में गए, जहां सारे वोटर रुके थे। उन्होंने मतदाताओं को प्रभावित किया जिससे बाईचुंग भूटिया का पैनल हार गया। भूटिया भारतीय फुटबॉल टीम के कप्तान रहे हैं। 
गौरतलब है कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड यानी बीसीसीआई के सचिव केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह हैं। बोर्ड के अध्यक्ष भले ही सौरव गांगुली हैं लेकिन क्रिकेट बोर्ड एक तरह से जय शाह ही चला रहे हैं। इसी तरह लॉन टेनिस एसोसिएशन ऑफ  इंडिया के अध्यक्ष भाजपा सांसद अनिल जैन हैं। बैडमिंटन एसोसिएशन के अध्यक्ष असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा हैं। कुश्ती संघ के अध्यक्ष उत्तर प्रदेश से भाजपा सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह हैं। भाजपा नेता सुधांशु मित्तल खो-खो फैडरेशन ऑफ  इंडिया के अध्यक्ष हैं। कई राज्यों में भी खेल संघों पर भाजपा नेताओं का कब्जा हो चुका है। 
कम्युनिस्ट सरकार का फरमान
देश में केरल एकमात्र राज्य है जहां कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार है, वह भी लगातार दूसरी बार बनी है। इससे पहले पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में भी कम्युनिस्ट सरकार हुआ करती थी। बहरहाल, केरल की एकमात्र कम्युनिस्ट सरकार ने फरमान जारी किया है कि कर्मचारियों को हर दिन 12 घंटे काम करना होगा। सीपीएम नेता पिनराई विजयन राज्य के मुख्यमंत्री हैं लेकिन उनकी सरकार ने सीपीएम व सीपीआई दोनों के मज़दूर संगठनों के विरोध को दरकिनार कर आदेश जारी किया है कि एक अक्तूबर से 12 घंटे की शिफ्ट होगी। केरल स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन के कर्मचारियों के लिए यह आदेश जारी हुआ है। यह कॉरपोरेशन कथित तौर पर बहुत घाटे में चल रहा है इसलिए कर्मचारियों को ज्यादा काम करने को कहा गया है। इतना ही नहीं कर्मचारियों का दो-दो महीने का वेतन बकाया है। 8 सितम्बर को ओनम का त्योहार था और उससे ठीक पहले राज्य सरकार ने शर्त रखी कि बकाया वेतन तभी मिलेगा, जब कर्मचारी 12 घंटे की शिफ्ट में काम करने के लिए राजी होंगे। हैरानी की बात है कि यह उस कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार का फरमान था, जिस पार्टी का सूत्र वाक्य है कि मज़दूर का पसीना सूखने से पहले उसे मजदूरी मिल जानी चाहिए! केंद्र सरकार ने श्रम कानूनों में संशोधन करके नए कानून बनाए हैं, जिनमें काम के घंटे बढ़ाने का प्रस्ताव किया गया है। कम्युनिस्ट पार्टियों ने देश भर में इसका विरोध किया लेकिन खुद उनकी राज्य सरकार ने कानून बनाया है कि कर्मचारी हफ्ते में 6 दिन और हर दिन 12 घंटे काम करेंगे।