ईश्वर चला रहा है देश को !

किसी समय एक चुटकुला सुना गया था। रूस से एक पर्यटक भारत आया। वह
ईश्वर को नहीं मानता था लेकिन यहां आकर उसका ईश्वर पर विश्वास हो गया।
लोगों ने पूछा-ऐसा आपने क्या देखा कि ईश्वर पर आप को भरोसा करना पड़ा?
उसने कहा-इतना विशाल देश, विशाल जनतंत्र, विशाल जनसंख्या और इतना भारी
भ्रष्टाचार। फिर भी देश चल रहा है। विकास कर रहा है तो जरूर कोई चला रहा
होगा।
विचार कीजिए इस प्रश्न पर। वास्तव में हमारा देश अब एक नहीं है। दिखता एक
है पर हैं वास्तव में दो। एक है दीन हीन, परिश्रमी भारत। इसमें गरीबी रेखा से
नीचे जीने वालों से लेकर निम्न मध्यम वर्ग के लोग हैं जिनकी गरीबी बढ़ती जाती
है, जो कठोर श्रम कर किसी तरह जीवन यापन करते हैं। ये भारतीय बोलियां
बोलते हैं। भारतीय संस्कृति और परंपराओं का पालन करते हैं और भारत के
नागरिक हैं। इनके बच्चे सरकारी स्कूलों में मातृभाषा में पढ़ाई करते हैं। ये बीमार
होते हैं तो सरकारी अस्पताल की भीड़ में धक्के खाते हैं और भारतीय रेल में
सामान्य कोच में भीड़ भरी स्थिति में यात्रा करते हैं जैसे महात्मा गांधी करते थे।
ये हिंदी, मालवी, मराठी, तेलुगू, तमिल, गुजराती जैसी अपने देश की भाषा बोलते
हैं।
हमारा दूसरा देश है इंडिया। यह तरक्की कर रहा है, यह अंग्रेजी बोलता है, यह एसी
मकानों, भवनों में रहता है, लग्जरी कारों में यात्रा करता है। यह श्रम का कोई काम
नहीं करता। इसके कपड़े धोने, प्रेस करने, खाना पकाने, घर की सफाई करने,
इसकी कार चलाने आदि के सभी कार्य भारत के गरीब नागरिक करते हैं। यह कुछ
नहीं करता, मात्र बड़ी-बड़ी पार्टियां, सभा, सोसायटी और नाच गाने का आनंद लेता
है। साहित्य, कला, नृत्य और संस्कृति का यह आनंद लेता है। यह बौद्धिक वर्ग है।
इसकी हार्दिक इच्छा होती है कि भारत का जीवन स्तर ऊंचा हो। भारत भी इंडिया
बने और इसलिए इंडिया वाले गरीबी हटाने के लिए तरह तरह की योजना बनाते हैं
और उन्हें इस तरह लागू करते हैं ताकि भारत तो भारत बना रहे और इंडिया
अमेरिका की तरह संपन्न बन जाए। इस इंडिया के नागरिक हैं हमारे मंत्री, सांसद,
विधायक, सिनेमा के कलाकार, नायक-नायिका व क्रि केट खेलने वाले।
ये लोग हिंदी बिना स्वार्थ के नहीं बोलते। अंग्रेजी में गिटपिट करते हैं। वोट मांगने
या धन प्राप्त करने की मजबूरी में ही ये हिंदी बोलते हैं। ये रेल की सामान्य श्रेणी
में यात्रा नहीं करते। सरकारी अस्पताल नहीं जाते। इनके बच्चे सरकारी स्कूल में
नहीं पढ़ते। ये इंडिया हैं, भारत के भाग्य विधाता। सारे भ्रष्टाचार घोटाले,
भाई-भतीजावाद, गबन, रिश्वत के खेल यहां से प्रारंभ होकर गांव की चौपाल तक
पहुंचते हैं। इन्हें देख रूसी पर्यटक को विश्वास हो जाता है कि ईश्वर है।
आइए, मैं आपको भारत के दर्शन कराऊं। क्या आप अपने पोस्टमैन को जानते हैं?
क्या नाम है उसका? नहीं न। वास्तव में पोस्टमैन बिना किसी लोभ लालच के
प्रतिदिन हर मौसम में आपकी सेवा में लगा रहता है। मेरे पुराने पते की डाक भी
वह मुझ तक पहुंचाता है। मेरे अखबार का हाकर बिला नागा अखबार सुबह 6.3०
बजे कैसा ही मौसम हो, मेरे निवास पर पहुंचा देता है। हमारे माली उद्यान के
पौधों पुष्पों को बिना किसी लोभ लालच के कर्तव्य भावना से संभालते है। 
सम्मान हम इंडिया के लोगों के लिए सुरक्षित रखते हैं। करोड़ों रुपए अर्जन करने
वाले खिलाड़ी और सिनेमा के कलाकार  सम्मान के लिए उठ खड़े होते हैं। राजनेता
कितने ही भ्रष्ट हों, वे भी सम्मान पा जाते हैं। जो साहित्यकार, संगीतकार सत्ता
के निकट होते हैं, वे सम्मान के हकदार बन कर सामने आ जाते हैं।
हम भारत को सम्मान नहीं दे पा रहे। भारत का गरीब वर्ग अपने श्रम से भारत के
निर्माण में ईमानदारी से लगा है। इसीलिए विकास का रथ राजपथ पर तेजी से दौड़
रहा है। वहां भ्रष्टाचार है ही नहीं। याद रखिए जहां श्रम होगा, वहां प्रेम होगा।
पसीना बिना प्रेम और श्रद्धा के बहाया ही नहीं जा सकता। इसीलिए इंडिया
भ्रष्टाचार, अपराध, धार्मिक कट्टरता और हिंसा का केंद्र है। अब आप समझ गए
होंगे, रूसी पर्यटक को ईश्वर पर विश्वास क्यों हुआ। यह भारत का रहस्य है।
(युवराज)