देश की राजनीति का अवसान

देश के राजनीतिक मंच पर पिछले कुछ दिनों से घटित हो रहीं कुछ घटनाओं ने सभी का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी सप्ताह भर से कांग्रेस द्वारा कन्याकुमारी से कश्मीर तक निकाली जा रही ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का नेतृत्व कर रहे हैं। इस पद यात्रा ने जहां लोगों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया है, वहीं कई पक्षों से कुछ विपक्षी पार्टियों द्वारा इसकी आलोचना भी की जा रही है। परन्तु यह बात अधिक केन्द्र बिन्दू बनी दिखाई देती है कि प्रशासन चला रही भारतीय जनता पार्टी अपनी सोच के अनुसार कुछ कार्रवाइयों के साथ अलग-अलग समुदायों में दूरिया बढ़ाने का काम कर रही है, जबकि राहुल गांधी के अनुसार ‘भारत जोड़ो यात्रा’ सभी वर्गों को भावुक तौर पर एकजुट होकर रहने का सन्देश दे रही है। एक तरफ यह यात्रा जारी है, दूसरी तरफ यह बड़ा समाचार आया है कि गोवा में कांग्रेस के 11 विधायकों में से 8 विधायक वहां की सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा में शामिल हो गये हैं।
विगत लम्बी अवधि से गोवा का इतिहास इसी तरह का ही बना रहा है। वहां की भाजपा की नई सरकार को तो बने लगभग 6 महीने ही हुए हैं परन्तु इससे 3 वर्ष पूर्व की कांग्रेस के 15 विधायकों में से 10 विधायक भाजपा के साथ जा मिले थे। आजकल राजनीतिक व़फादारी तथा नैतिकता की स्थिति यह है कि पिछले चुनावों में जब ये विधायक कांग्रेस के उम्मीदवार बने थे तो उन्होंने मंदिर, चर्च तथा दरगाह में जाकर यह शपथ ली थी कि वह पार्टी के साथ धोखा नहीं करेंगे। उन्होंने संविधान की शपथ ली थी तथा लिखित रूप में भी यह वायदा किया था कि वह हमेशा कांग्रेस के साथ रहेंगे। 6 महीने के समय में भी  ऐसा कुछ घटित होना हमारी आज की राजनीति को शर्मसार करने वाला ज़रूर कहा जा सकता है। देश में कांग्रेस की पूर्ण बहुमत वाली सरकार अब सिकुड़ कर 2 राज्यों राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ में ही रह गई है, जबकि बिहार तथा झारखंड में वह गठबंधन की सरकार में शामिल है परन्तु गत दिवस झारखंड में भी इसी दिशा में घटित घटनाक्रम ने कांग्रेस के लिए गहरी चिन्ता पैदा कर दी थी। कांग्रेस के इस प्रदेश से संबंधित तीन विधायक पश्चिम बंगाल में 50 लाख की राशि के साथ पकड़े गये थे। दोष है उन्होंने भाजपा में शामिल होने के लिए यह राशि वसूल की थी। इसी वर्ष गुजरात तथा हिमाचल प्रदेश में चुनाव होने जा रहे हैं। ऐसे घटनाक्रम तथा हवा के रुख को देख कर कांग्रेस की स्थिति ओर भी कमज़ोर होती दिखाई देती है।
चाहे हम पिछले समय में घटित महाराष्ट्र के घटनाक्रम को तो इसके साथ नहीं जोड़ सकते परन्तु वहां जिस तरह भाजपा ने शिवसेना में दरार डाल कर उद्धव ठाकरे की सरकार को कुर्सी से उतारा था, उससे भी उसकी नीयत तथा नीति का पता चलता है। ऐसा कुछ ही विगत समय में मध्य प्रदेश तथा कर्नाटक में भी देखने को मिला था। चाहे भाजपा के नेता इसे पार्टी का उभार मान रहे हैं, परन्तु हम समझते हैं कि ऐसा करके यह पार्टी देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था तथा संस्थाओं को आघात पहुंचाने का यत्न कर रही है। किसी भी व्यक्ति व किसी पार्टी या संगठन द्वारा चुनाव जीतने के बाद इस तरह रंग बदल लेने से उसके व्यक्तित्व पर तो प्रभाव पड़ता ही है परन्तु जो पार्टी ऐसे कार्य के लिए उसे उत्साहित करती है, उसकी भी लोकतांत्रिक छवि को नुकसान पहुंचता है। यहीं बस नहीं, केन्द्र सरकार के इशारों पर उसकी एजेन्सियों द्वारा जिस तरह विपक्षी पार्टियों तथा नेताओं को लगातार निशाने पर लिया जा रहा है, उससे मोदी सरकार का प्रभाव कम भी होता है तथा अधिक विवादपूर्ण भी बन जाता है, क्योंकि इन केन्द्रीय एजेन्सियों के निशाने पर सिर्फ विपक्षी पार्टियों के नेता ही होते हैं। भाजपा के साथी या उनके साथ जुड़े राजनीतिज्ञ हर तरह से पाक-स़ाफ बने रहते हैं। परन्तु दूसरी तरफ यदि भाजपा इस समय राजनीतिक तौर पर हमलावर साबित हो रही है तो अन्य बड़ी विपक्षी पार्टियों को भी अपने भीतर झांकने की ज़रूरत होगी। 
आज कांग्रेस के भीतर नेतृत्व को लेकर जिस तरह का राजनीतिक घटनाक्रम चल रहा है, उसने इस पार्टी को बेहद कमज़ोर कर दिया है तथा भविष्य में भी इसके शीघ्र कहीं उभरने की सम्भावना दिखाई नहीं देती। कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी पार्टियां भी बुरी तरह बिखरीं तथा दिशाहीन हुईं दिखाई देती हैं। ऐसे हालात में भाजपा जैसी पार्टी का उभार स्वाभाविक है। घटित हो रहे इस घटनाक्रम का वर्ष 2024 में आ रहे चुनावों पर भी बड़ा प्रभाव पड़ने की सम्भावना बनती दिखाई दे रही है, जिसके लिए अन्य पार्टियों को अधिक सचेत तथा एकजुट होने की ज़रूरत होगी।


-बरजिन्दर सिंह हमदर्द