गुजरात में कांग्रेस के लिए प्रचार कर सकती हैं प्रियंका

गुजरात कांग्रेस नेतृत्व ने हाल ही में सौराष्ट्र में पटेल समुदाय को प्रभावित करने हेतु रथ यात्रा निकाली। ‘चलो कांग्रेस के साथ, मां के द्वार’ का नारा लगाते हुए राज्य इकाई के प्रमुख जगदीश ठाकोर तथा शक्ति सिंह गोहिल के नेतृत्व में हज़ारों पार्टी वर्करों ने मां उमिया तथा मां खोदियार के मंदिरों में पूजा-अर्चना की, जोकि लेओवा तथा कदवा पटेल की देवी हैं।
 रथ यात्रा निकाली गई तथा पाटीदार समुदाय की सत्ता की धार्मिक सीट खोडलधाम का दौरा भी किया गया, जहां सबसे प्रभावशाली नेता नरेश पटेल ने इस यात्रा में शामिल नेताओं का स्वागत किया। क्योंकि विधानसभा चुनाव दिसम्बर में होने की आशा है, इसलिए गुजरात नेतृत्व अब प्रियंका गांधी वाड्रा को आगामी दो माह के लिए व्यापक प्रचार अभियान का नेतृत्व करने के लिए मनाने का प्रयास कर रहा है। राहुल गांधी, जिन्होंने 2017 में गुजरात अभियान का नेतृत्व किया था तथा एक बड़ा प्रभाव डाला था, के इस बार केवल अतिथि के रूप में शामिल होने की सम्भावना है।
पिछड़े वर्ग की ओर ध्यान
2024 में आम चुनावों से पूर्व समाजवादी पार्टी कुर्मी तथा अन्य ओ.बी.सी. वोटों पर ध्यान केन्द्रित कर रही है। हाल ही में उत्तर प्रदेश राजकीय सम्मेलन में नरेश उत्तम पटेल को लगातार दूसरी बार समाजवादी पार्टी के राज्य अध्यक्ष के रूप में चुना गया। सपा के इस कदम को पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को पार्टी के समर्थन में एकजुट करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। पटेल ओ.बी.सी. कुरमी जाति से हैं, जिनकी एक बड़ी उपस्थिति है। राज्य के मध्य तथा पूर्वी पट्टी में वे प्रतापगढ़, प्रयागराज, सोनभद्र तथा मिज़र्ापुर क्षेत्रों के चुनावों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। कुरमी उत्तर प्रदेश की जनसंख्या का लगभग 7-8 प्रतिशत हिस्सा है। दूसरी तरफ स्वामी प्रसाद मोर्या ने जिस तरह से सम्मेलन को महत्त्व दिया है, उससे प्रतीत होता है कि अखिलेश यादव अन्य ओ.बी.सी. वर्गों को अपनी पार्टी के साथ जुड़ने का संदेश देना चाहते हैं।
‘मुख्यमंत्री तेजस्वी’
बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने गलती से अपने उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव को एक समारोह में मुख्यमंत्री  के रूप में सम्बोधित किया, जिस ने उन्हें भगवा पार्टी के निशाने पर ला दिया है। भाजपा ने कहा कि वह आश्रम जाना चाहते हैं, जबकि सत्ताधारी भागीदार राजद ने कहा कि यह सिर्फ दोनों के मध्य बढ़ते रिश्ते को दर्शाता है। यह घटना तब घटित हुई जब नितीश पशु पालन तथा मछली पालन विभाग के एक समारोह में वैटरनरी तथा ज़िला मछली पालन अधिकारी के रूप में नियुक्त किये गये व्यक्तियों के नामों की घोषणा कर रहे थे। उन्होंने अपने उप-मुख्यमंत्री को माननीय मुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव कह कर बुलाया।आश्चर्यजनक बात यह है कि उन्होंने पूरे भाषण में अपनी गलती को ठीक नहीं किया।
वसुंधरा राजे के तेवर
पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भाजपा के लिए स्वयं को मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में पेश करने हेतु लड़ाई लड़ रही हैं, चाहे पार्टी की उच्च नेतृत्व की सोच कुछ और हो। ‘कहो दिल से, वसुंधरा फिर से’ के नारे ने राजस्थान में हलचल पैदा कर दी है। राजे भाजपा के राज्य अध्यक्ष सतीश पूनिया के साथ सत्ता के लिए टकराव में उलझी हुई हैं, परन्तु एक जन नेता के रूप में उनके कद के बावजूद, चर्चा यह है कि भाजपा हाईकमान राजे को आगामी वर्ष विधानसभा चुनाव लड़ने हेतु मनाना चाहती है तथा उनकी कुर्बानी के बदले पार्टी उन्हें लोकसभा चुनाव लड़ने की इजाज़त दे सकती है तथा 2024 की सरकार में मंत्री बना सकती है, परन्तु राजे चुप हैं तथा फैसला लेने के लिए उचित समय की प्रतीक्षा कर रही हैं कि वह भाजपा में ही रहे या कोई अपनी राजनीतिक पार्टी बनाये? 
राज ठाकरे के साथ गठबंधन के प्रयत्न
भाजपा ने बी.एम.सी. चुनावों में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एम.एन.एस.) के साथ सीधा गठबंधन न करने का फैसला किया है। सूत्रों के अनुसार वह उत्तर भारतीयों के वोट गंवाने का जोखिम नहीं उठा सकती, जिनके खिलाफ एम.एन.एस. प्रमुख राज ठाकरे ने सार्वजनिक अभियान चलाया था, हालांकि भाजपा तथा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे अपने पक्ष में कम से कम एक ठाकरे के समर्थन की तलाश कर रहे हैं। इसलिए योजना शिंदे के नेतृत्व वाले खेमे का एम.एन.एस. के साथ समझौता करवाने की है, एकनाथ शिंदे ने राज ठाकरे के  साथ बात भी की है, कि वह एम.एन.एस. के साथ गठबंधन करने की इच्छा रखते हैं। परन्तु राज ठाकरे ने बी.एम.सी. चुनावों में गठबंधन को कोई संकेत नहीं दिया। 
भाजपा तथा शिंदे खेमे द्वारा उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिव सेना को हराने के संयुक्त उद्देश्य के साथ उन्हें एक मंच पर लाने की कोशिश की जा रही है, जो कि शिंदे द्वारा शुरू की गई बगावत के बाद 40 विधायकों के दल-बदल से अभी तक उभर नहीं सकी है।  
आज़ाद द्वारा नई पार्टी
गुलाम नबी आज़ाद ने डेमोक्रेटिक आज़ाद पार्टी नामक अपनी नई पार्टी का गठन किया है। आज़ाद ने कहा है कि पार्टी चरित्र तथा कार्रवाई में धर्म निरपेक्ष होगी तथा वह लोगों में धर्म तथा सम्प्रदायों के नाम पर भेदभाव नहीं करेगी। यह क्षेत्रीय पार्टी होगी, राष्ट्रीय पार्टी नहीं। 
राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार इससे जम्मू-कश्मीर के अधिकतर क्षेत्रीय दलों के वोट बैंक के पक्ष से कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ सकता, क्योंकि नैशनल कांफ्रैंस तथा पी.डी.पी. का कश्मीर में प्रभाव है, जबकि जम्मू में भाजपा तथा कांग्रेस का। परन्तु यह इस बात पर निर्भर करेगा कि गुलाम नबी आज़ाद कितने आक्रामक ढंग से कांग्रेस के वोट अपनी ओर एकजुट करने हेतु यत्न करते हैं और विधानसभा चुनावों को प्रभावित करते हैं। इस मध्य कांग्रेसी नेताओं ने अपनी यह चिंता अवश्य व्यक्त की है कि पार्टी के कई प्रमुख नेता जम्मू-कश्मीर में आज़ाद के साथ शामिल हो गए हैं। हालांकि नैशनल कांफ्रैंस, भाजपा तथा पी.डी.पी. चुप हैं तथा उन्होंने आज़ाद बारे कोई राय नहीं दी और चुपचाप उनकी गतिविधियों पर नज़र रख रहे हैं।