आओ, अपने अन्दर के रावण को  जलाएं

हम प्रतिवर्ष चारों वेदों के ज्ञाता और सभी छ: शास्त्रों पर विजय पा लेने वाले लंकापति राजा रावण जलाने की परंपरा निभाते चले आ रहे हैं। लेकिन जिस रावण को जलाना चाहिए, वह तो कभी जलता ही नही है अलबत्ता उसके पुतले को जलाकर हम थोड़े समय के लिए खुश हो लेते हैं। सच यही है कि रावण कभी जलता नहीं है। तभी तो वह हर साल जलने के लिए फिर से सामने आ जाता है। जितने रावण हम हर साल जलाते हैं, उससे ज्यादा रावण पैदा हो जाते हैं क्योंकि आज के समय में रावण केवल लंकाधिपति राजा रावण ही नहीं, बल्कि हमारे अन्दर का वह रावण वृत्तियां हैं जो हमारी राक्षसी प्रवृति के कारण हमें इन्सान से शैतान बना देती हैं। जिसको हम कभी जलाने या फिर समाप्त करने का प्रयास नहीं करते।
दशहरा का अर्थ है दश सिरों का अन्त यानि दश सिर वाले राक्षस राजा रावण का भगवान श्री राम द्वारा किया गया अन्त। भगवान राम के वनवास के दौरान अहंकारी राक्षस राजा रावण द्वारा साधु वेष में सीता माता के हरण के बाद उन्हें मुक्त कराने के लिए हुए राम-रावण युद्ध में पहले एक के बाद एक राक्षस राज के महाबलियों के संहार के बाद विभिषण के सहयोग से लंकाधिपति रावण का भगवान राम ने वध कर दिया था। इसे रावण रूपी बुराई के अन्त पर अच्छाई रूपी राम की जीत के रूप में देखा गया। रावण पर भगवान राम की विजय की खुशी राम भक्तों को इतनी अधिक हुई कि तब से आज तक इस ऐतिहासिक घटना की स्मृति में प्रतिवर्ष विजय दशमी पर्व यानि दशहरा मनाया जाने लगा और बुराई के प्रतीक रूप में रावण को जलाया जाने लगा। 
लंकाधिपति राजा रावण ने अपनी बहन सूर्पनखा के  उकसाने पर भगवान राम की अर्धांगिनी सीता माता का अपहरण किया, लेकिन उनकी पवित्रता को उसने आंच नहीं आने दी और उन्हें अशोक वाटिका में ससम्मान रखा। यह उसका चारित्रिक गुण था परन्तु आज के रावणों का कोई चरित्र नहीं रह गया है। इसलिए आज के रावणों का अन्त होना सबसे बड़ी चुनौती है। रामलीला मंचन के बाद दशहरे पर भले ही हम हर साल रावण जलाकर बुराई का अन्त करने की पहल करते हों परन्तु यथार्थ में रावण का अन्त पुतलों को जलाने से नहीं होता। असली रावण तो हम सबके अंदर विकारों के रूप में विराजमान है। काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार रूपी विकारों को जलाकर हम पावन बन जाएं तो भगवान राम की पूजा सार्थक हो जाएगी और रावण रूपी विकारों का भी अन्त हो जाएगा। इतना ही नहीं रावण रूप में जो देश के गद्दार हैं, रावण रूप में जो देश की शान्ति का हरण करने वाले आतंकी हैं, रावण रूप में जो व्याभिचारी हैं, रावण रूप में जो भ्रष्टाचारी हैं, रावण रूपी जो हिंसावादी हैं, रावण रूप में जो घोटालेबाज़ है, रावण रूप में जो साम्प्रदायिकता का जहर समाज में घोल रहे हैं, रावण रूप में जो विकास के दुश्मन हैं, उनका अन्त करने से ही रामराज्य की परिकल्पना साकार हो सकती है। 
रामायण और राम चरित मानस में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का चरित्र एक आदर्श पुरुष का चरित्र दर्शाया गया है ताकि समाज के लोग राम जैसा चरित्र अपना सकें। राम के चरित्र और रामायण के अन्य पात्रों से शिक्षा ले सकें, इसीलिए नवरात्रों में जगह-जगह रामलीलाओं का मंचन किया जाता है। राजा दशरथ को एक आदर्श पिता के रूप में, भगवान राम को मर्यादा पुरुषोतम व रघुकुल रीत रूपी वचनों का पालन करने वाले के रूप में, भाई लक्ष्मण को बड़े भाई की भक्ति के रूप में, भाई भरत को बड़े भाई के प्रति समर्पण के रूप में, उर्मिला को पति विरह के रूप में, कौशल्या को आदर्श मां के रूप में, जहां हमेशा याद किया जाता है, वहीं हनुमान की राम भक्ति, विभीषण की सन्मार्ग शक्ति,जटायु की पराक्रम सेवा और सुग्रीव की राम सहायता हमेशा अमर रहेगी। सच पूछिए तो रामायण एक आदर्श जीवन जीने का सन्मार्ग सिखाती है। तभी तो हम बार बार रामायण पढ़ते हैं और दशहरे से पहले रामलीला का मंचन कर राम काल से प्रेरणा लेकर राम राज्य की कल्पना को साकार करने की कोशिश करते हैं।  भगवान राम किसी एक के नहीं बल्कि उन सभी के हैं, जो भगवान राम को अपना आदर्श मानकर उनके आदर्शों पर चलते हैं। जबकि भगवान राम अयोध्या के एक ऐसे महान राजा हुए हैं जिनके राज्य में कोई भी दु:खी नहीं था। चाहे वह किसी भी जाति या धर्म का क्यों न हो, उनके राज्य में सभी सुखी एवं प्रसन्न थे। तभी तो रामराज को अब तक का सबसे अच्छा राज्य कहा जाता है। राम राज्य की परिकल्पना साकार करने के लिए हम सबको अपने-अपने विकारों को जलाना होगा, ठीक उसी रावण की तरह जिसे बुराई रूप में हम वर्षों से जलाते आ रहे हैं।