आज भी प्रासंगिक है महर्षि वाल्मीकि का जीवन दर्शन

हिन्दू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण धर्मग्रंथ माने जाने वाले ‘रामायण’ के रचयिता महर्षि वाल्मीकि के प्रादुर्भाव को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं। माना जाता है कि उनका जन्म त्रेता युग में हुआ था और भृगु ऋषि इनके बड़े भाई थे। महर्षि वाल्मीकि के जन्म के बारे में कोई स्पष्ट प्रमाण तो नहीं मिलता किन्तु अधिकांश पौराणिक मान्यताओं के अनुसार उनका प्रकाश आश्विन मास की पूर्णिमा के दिन हुआ माना जाता है। इसीलिए उनके अनुपम संदेशों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए प्रतिवर्ष इसी दिन महर्षि वाल्मीकि जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष वाल्मीकि जयंती 9 अक्तूबर को मनाई जा रही है। इस अवसर पर देशभर में कई प्रकार के सामाजिक तथा धार्मिक आयोजन किए जाते हैं। 
सनातन धर्म के प्रमुख ऋषियों में से एक महर्षि वाल्मीकि द्वारा संस्कृत भाषा में लिखी गई रामायण को सबसे प्राचीन ग्रन्थ माना जाता है और संस्कृत के प्रथम महाकाव्य ‘रामायण’ की रचना के कारण ही उन्हें ‘आदिकवि’ के नाम से भी जाना जाता है। महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखी गई मोक्षदायिनी रामायण आज भी समूचे विश्व में वेद तुल्य विख्यात है, जो 21 भाषाओं में उपलब्ध है और सनातन धर्म को मानने वालों के लिए पूजनीय है। राष्ट्र की अमूल्य निधि रामायण का एक-एक अक्षर अमरत्व का सूचक और महापाप का नाशक माना गया है। भगवान वाल्मीकि का रामायण महाकाव्य ज्ञान-विज्ञान, भाषा ज्ञान, ललित कला, ज्योतिष शास्त्र, आयुर्वेद, इतिहास और राजनीति का केन्द्रबिन्दु माना जाता है। ‘रामायण’ शब्द की उत्पत्ति राम और आयण शब्दों से हुई है। आयण का अर्थ है चरित्र और इस प्रकार भगवान श्री राम का चरित्र ही रामायण का मूल आधार बना है। यह महाकाव्य श्री राम के जीवन के माध्यम से जीवन के सत्य और कर्त्तव्य से परिचित कराता है। वाल्मीकि रामायण में कुल सात सर्ग हैं और प्रत्येक सर्ग का अपना विशेष महत्व है। लव-कुश की वीरता और शौर्य का वर्णन करता अंतिम सर्ग लव-कुश कांड इन सात सर्गों से अलग है।
रामायण में जिस प्रकार महर्षि वाल्मीकि ने कई स्थानों पर सूर्य, चंद्रमा तथा नक्षत्रों की सटीक गणना की है, उससे स्पष्ट है कि वह ऐसे परम ज्ञानी थे, जिन्हें ज्योतिष विद्या तथा खगोल शास्त्र का भी बहुत गहन ज्ञान था। रामायण को वैदिक जगत का सर्वप्रथम काव्य माना जाता है, जिसमें कुल चौबीस हज़ार श्लोक हैं। माना जाता है कि महर्षि वाल्मीकि ने ही दुनिया में पहले श्लोक की रचना की थी।
पौराणिक आख्यानों में यह उल्लेख भी मिलता है कि जब भगवान श्री राम ने माता सीता का त्याग कर दिया, तब माता सीता ने महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में ही वनदेवी के नाम से निवास किया और वहीं लव-कुश को जन्म दिया था, जिन्हें महर्षि वाल्मीकि द्वारा दिव्य ज्ञान दिया गया। पहली बार सम्पूर्ण रामकथा लव-कुश ने ही भगवान श्री राम को सुनाई थी। यही कारण है कि वाल्मीकि कृत रामायण में लव-कुश के जन्म के बाद का वृत्तांत भी मिलता है। 
महर्षि वाल्मीकि समाज को स्त्री का आदर-सम्मान करने का उपदेश भी देते हैं। पराई स्त्री का निरादर करने वाले रावण का कुछ क्षणों में ही नाश हो गया। इसी तरह रामायण को माध्यम बना कर महर्षि वाल्मीकि जी ने भारतीय संस्कृति की नींव रखी है, जिस पर चलकर समूचे विश्व का समाज सुख-शांति से अपना जीवन यापन कर सकता है।
धर्म की व्याख्या करते हुए भगवान वाल्मीकि जी कहते हैं कि ‘सबसे उत्तम धर्म वह है, जो शरणागत की रक्षा करता है चाहे वह दुश्मन ही क्यों न हो। मनुष्य को हमेशा सज्जन व्यक्ति की ही संगत करनी चाहिए।’ भगवान वाल्मीकि जी ने मनुष्य को पुरुषार्थ करने के लिए प्रेरित किया है। मनुष्य द्वारा की गईर् अपनी मेहनत ही अन्तत: प्रतिफलित होती है। मनुष्य अपने कर्मों के द्वारा नियति को प्राप्त होता है। भगवान वाल्मीकि ने जन-कल्याण तथा मोक्ष प्राप्ति के लिए एक और ग्रंथ की भी रचना की। 
भगवान वाल्मीकि ने रामायण द्वारा समूचे मानव जगत की संस्कृति की नींव रखी, जिस पर चल  कर मनुष्य भवसागर से पार हो सकता है। महर्षि वाल्मीकि जी का हृदय प्राणी मात्र के लिए प्यार तथा हमदर्दी से भरा था।  वह अपने समय के महान् विद्वान, नारी रक्षक, ब्रह्म ज्ञानी तथा आदर्श परम्पराओं का पालन करने वाले महापुरुष थे। ब्रह्मा जी का वाक्य है कि, ‘जब तक इस पृथ्वी पर नदियां, पहाड़, वन, जीवन रहेगा, वाल्मीकि रामायण का प्रचार होता रहेगा और महर्षि वाल्मीकि इस संसार में अमर रहेंगे।’
बहरहाल, महर्षि वाल्मीकि का जीवन समस्त मानव जाति को यही शिक्षा देता है कि मनुष्य के जीवन में कितनी भी कठिनाइयां क्यों न हों, यदि वह चाहे तो अपनी हिम्मत, हौसले और मानसिक शक्ति के बल पर तमाम बाधाओं को पार कर सकता है। उनके जीवन से यह सीख भी मिलती है कि जीवन की नई शुरुआत करने के लिए किसी खास समय या अवसर की आवश्यकता नहीं होती बल्कि इसके लिए आवश्यकता होती है केवल सत्य और धर्म को अपनाने की। सही मायनों में महर्षि वाल्मीकि जी का जीवन अच्छे कर्मों और भक्ति की राह पर अग्रसर होने के प्रकाश को दिखलाता है।
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