सभ्य समाज पर बदनुमा द़ाग

केरल के एक शहर पथानमथिट्टा में अन्धविश्वास और तंत्र-मंत्र यानि काला जादू जैसी क्रिया के ज़रिये दो महिलाओं की निर्मम एवं अमानवीय तरीके से की गई हत्या ने न केवल समाज को चौंकाया है, अपितु इस एक तथ्य को भी पुष्ट किया है कि सदियों पूर्व से मनुष्य के भीतर दबी-छिपी बैठी, टोने-टोटकों जैसी अंध-विश्वास की जड़ें आज अति विकसित होते जाते समाज में भी बदस्तूर मौजूद हैं। केरल की घटना इसलिए भी चौंकाती है कि इस प्रांत का समाज देश के अन्य भागों के विपरीत अधिक शिक्षित माना जाता है और ऐसे सभ्य-सुसंस्कृत दौर में ऐसी आदिमकालीन  वृत्तियों का जागृत होना अत्यधिक चिन्ताजनक है। इस घटना का यह एक पहलू भी अति संवेदनशील प्रतीत होता है कि तंत्र-आधारित क्रियाओं के ज़रिये इसे अंजाम देने वाले दोनों पति-पत्नी हैं, और दोनों डाक्टर हैं। तंत्र-मंत्र के ज़रिये लोगों को ठगने और उनसे लूट-खसूट करने वालों की प्रत्येक समाज और हर दौर में भरमार रही है। छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे आदिवासी बहुल इलाकों में डायन-चुड़ैल आदि की धारणाओं पर आधारित घटनाएं भी प्राय: होती रहती हैं, परन्तु केरल जैसे अति विकसित, शिक्षित और ज्ञानवान समाज में भी इस प्रकार की मानव-बलि जैसी घटना हो, और हो भी इतनी अमानवीयता और क्रूरता के साथ, तो ऐसे में प्रत्येक शिक्षित और सभ्य व्यक्ति का चिंतित होना बहुत स्वभाविक जैसा हो जाता है। इस घटना के विवरण में यह भी बताया गया है कि एक कथित ठग और आपराधिक मानसिकता एवं दृश्चरित्र तांत्रिक के उकसाने पर समृद्धि की चाह रखने वाले डाक्टर पति-पत्नी जिनके नाम भगावल सिंह और उसकी पत्नी लैला हैं, द्वारा दो महिलाओं की जीवित बलि देने के बाद उनके शरीर के 56-56 टुकड़े किये गये। इसके बाद यह भी बताया जाता है कि इस तांत्रिक और भगावल सिंह ने काले जादू की क्रियाओं को सम्पन्न करने हेतु मृत महिलाओं के शरीर का मांस भक्षण और रक्तपान भी किया। किस्से-कहानियों में अघोरियों द्वारा लावारिस शवों और मृतक शरीरों के मांस भक्षण की घटनाएं तो अवश्य पढ़ी जाती रही हैं, परन्तु मौजूदा विकास के दौर और 21वीं सदी में भी ऐसी कोई घटना दीदा-दानिश्ता हो सकती है, ऐसा विश्वास कर पाना भी कठिन प्रतीत होता है।
इस घटना का एक और मार्मिक एवं त्रासद पक्ष यह भी है कि बलि वेदी पर चढ़ा दी गई दोनों महिलाएं रोसलिन और पद्मा काफी स्वस्थ और सुदृढ़-मना प्रतीत होती हैं, जो मेहनत-मज़दूरी के ज़रिये अपने घर-परिवार का संचालन करती थीं जबकि जिस शिक्षित-प्रशिक्षित डाक्टर दम्पति ने इस घटना को अंजाम दिया, उनकी मानसिकता बैठे-ठाले धन-सम्पत्ति अथवा कोई गढ़ा हुआ खज़ाना प्राप्त करने जैसे काल्पनिक किस्सों से अतिरंजित प्रतीत होती है। इस कांड में पहली बलि 6 जून के आस-पास दी गई और दूसरी बलि 26 सितम्बर को दी गई बताई जाती है, हालांकि इसका पता 11 अक्तूबर को चला जब पुलिस ने सी.सी.टी.वी. कैमरों और मोबाइलों द्वारा खोज अभियान तेज़ किया। इस घटना के साथ सामाजिक अज्ञानता और प्रशासनिक उदासीनता का आलम यह भी है कि इसमें शामिल तांत्रिक मुहम्मद शफी बेहद शातिर और आपराधिक किस्म का शख्स है जिसके विरुद्ध पहले ही इस प्रकार के आठ-दस मामले दर्ज हैं, किन्तु वह समाज में आज भी एक सामान्य प्राणी की तरह ही विचरण कर रहा था। कानून, प्रशासन और न्यायिक व्यवस्था ने यदि उसे समुचित रूस से दंडित किया होता, तो सम्भवत: यह घटना नहीं होती, और दो जानें बच जातीं।
हम समझते हैं कि नि:सन्देह इस प्रकार की मानसिकता बेशक मनुष्य के भीतर सदियों से मौजूद रही है, परन्तु वर्तमान में 21वीं शताब्दी के सभ्य और सुशिक्षित एवं विकसित समाज में भी इस प्रकार की मानसिकता वाले लोगों का पाया जाना इस बात का भी संकेत है कि मानवीय धरातल पर शिक्षा के प्रकाश और इस प्रकार की परा-काल्पनिक घटनाओं के प्रति जागरूकता पैदा किये जाने की आज भी बड़ी आवश्यकता है। इस घटना के पीछे सोशल मीडिया की कारस्तानियों का भी बड़ा हाथ पाया गया है क्योंकि आरोपी तांत्रिक ने इसी मीडिया के ज़रिये पीड़ित हुई महिलाओं से सम्पर्क साधा था। आरोपी डाक्टर दम्पति भी सोशल मीडिया के माध्यम से ही तांत्रिक के सम्पर्क में आया था जिसने उसे शीघ्र धनी एवं समृद्ध होने का झांसा देकर ऐसे घृणित अपराध हेतु प्रेरित किया। हम समझते हैं कि समूचे राष्ट्र को स्तब्ध कर देने वाला यह मामला नि:सन्देह विश्व-गुरु बनने जा रहे भारत जैसे देश के इतिहास बनते वरकों पर एक बदनुमा द़ाग जैसा है। आश्चर्य होता है कि गढ़ा हुआ खज़ाना मिलने अथवा बिना परिश्रम समृद्धि हासिल होने जैसी तंत्र क्रियाओं पर विश्वास और आचरण करने वाले लोग आज भी मौजूद हैं। यह भी कि मानव-शरीर को इस प्रकार चाकू से काट-काट कर टुकड़े-टुकड़े करके उनका भक्षण करने अथवा उन्हें ज़मीन में गड्ढा खोद कर दबा देने जैसी क्रूर, निर्मम और अमानवीय घटना इसी समाज में सम्भव हुई है। फिर भी, यह घटना हुई है, और अब भी यदि प्रशासनिक व्यवस्था इस मामले में धरती के कानूनों के अन्तर्गत दोषियों एवं अपराधियों को समुचित दंड देती है, तो भविष्य के समाज के लिए एक उचित नज़ीर स्थापित की जा सकती है।