भारत-चीन संबंधों में मधुरता की उम्मीद अब सपने जैसी

हाल ही में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग एक और कार्यकाल पाने में सफल रहे हैं। उन्होंने चीन में माओत्से तुंग के बाद खुद को चीन के सबसे शक्तिशाली नेता के रूप में स्थापित करने की पूरी तैयारी कर ली है। वहीं अधिकारी भी यह सुनिश्चित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं कि सब कुछ योजनाबद्ध तरीके से ही हो। अधिकारी कितने मुस्तैद हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 20वीं कम्युनिस्ट पार्टी कांग्रेस रविवार को शुरू होने के साथ ही, सैकड़ों स्वयं सेवकों ने बीजिंग में सड़कों पर मोर्चा संभाल लिया ताकि किसी भी तरह के विरोध को दबाया जा सके। 
न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, इन स्वयं सेवकों को यह सुनिश्चित करने के लिए 100 फीट या उससे भी अधिक दूरी पर रखा गया था ताकि किसी भी खतरे को फौरन खत्म किया जा सके। रिपोर्ट में कहा गया है कि कम्युनिस्ट पार्टी कांग्रेस के आयोजन के दौरान बीजिंग को जिस तरह किले में बदला गया, वह यह बताता है कि पिछले 5 साल में उन्होंने क्या किया है। चीन के लोग पिछले दो साल से कोविड से ज्यादा उसे लेकर बनाई गई पॉलिसी से परेशान हैं। चीन की ज़ीरो कोविड पॉलिसी लोगों को डबल चोट पहुंचा रही है। भले ही दुनिया के अधिकतर देश अब इस संकट से बाहर निकल चुके हैं, लेकिन चीन अब भी इसमें फंसा नज़र आ रहा है। वहां अब भी ज़ीरो कोविड पॉलिसी सख्त है। अगर कोई शख्स कोविड वाले एक भी क्षेत्र से यात्रा करके लौट रहा है तो शहर में उसकी एंट्री रोक दी जाती है। इसे लेकर लोग सोशल मीडिया पर सरकार के खिलाफ  गुस्सा निकाल रहे हैं। कुछ लोग लगातार अनुरोध कर रहे हैं कि उन्हें काम पर लौटना है तो कुछ सर्जरी की बात कहते हुए तत्काल लौटने की एंट्री मांग रहे हैं। वहीं कुछ लोगों ने यह भी शिकायत की है कि उनकी कंपनियों ने उन्हें पिछले सप्ताह राष्ट्रीय दिवस पर हुई 7 दिन की छुट्टी के मौके पर भी घर नहीं जाने दिया। कंपनी को डर है कि कहीं हम घर गए तो लौटकर नहीं आएंगे।
न्यूयॉर्क टाइम्स की इस रिपोर्ट की मानें तो डाक विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि वे बीजिंग को कुछ भी मेल करने वाले सभी लोगों की आईडी की जांच करें। जब तक कम्युनिस्ट पार्टी कांग्रेस की बड़ी बैठकें खत्म नहीं हो जातीं, तब तक ये लोग गश्त करते रहेंगे और आम लोगों पर नज़र रखेंगे। राजधानी में, सशस्त्र अधिकारियों ने साइकिल चालकों और पैदल चलने वालों को भी रोक-रोक कर चेक किया। पिछले महीने एक सरकारी अधिकारी ने एक घोषणा में स्वीकार किया कि जून के अंत से लेकर अब तक राष्ट्रीय स्तर पर 14 लाख से अधिक आपराधिक संदिग्धों को गिरफ्तार किया गया है। ये लोग किसी न किसी तरह सरकार के विरोध में नजर आ रहे थे। जो कुछ भी छोटा-मोटा विरोध हुआ, उसे अधिकारियों ने शीघ्रता से रद्द कर दिया।
भारत के लिए भी शी के पास कोई सॉफ्ट कार्नर नहीं है। बताया जाता है कि शी द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के एक विशेष अध्याय केंद्रीय लक्ष्य को हासिल करने के लिए राष्ट्रीय रक्षा सेना को अति आधुनिक बनाने का लक्ष्य रखा गया है। पूर्वी लद्दाख सीमा पर भारत और चीन में गतिरोध अभी भी बरकरार है। 16 दौर की बातचीत के बाद भी सीमा के कई बिंदुओं को सुलझाया जाना बाकी है। इसलिए चीन की सैन्य योजना भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। शी ने वर्ष 2027 में चीनी सेना के 100 साल पूरे होने के अवसर पर सारे लक्ष्य पूरे करने की ठानी है। ताइवान पर भी शी ने कड़ा रुख अपनाया है। शी जिनपिंग की सोच विस्तारवादी और तानाशाही बनी हुई है। चीन कम्युनिस्ट देश है, वहीं भारत एक धुर लोकतांत्रिक देश है। एशिया में चीन को टक्कर देने वाला एकमात्र देश भारत ही है। जुलाई 2021 में कम्युनिस्ट पार्टी ने 100 वर्ष पूरे किए थे। उस समय शी जिनपिंग ने वादा किया था कि वह ताइवान को चीन के साथ मिलाकर रहेंगे। साथ ही उन्होंने ताइवान के आज़ादी हासिल करने के किसी भी तरह के प्रयासों को कुचलने की बात कही थी। ताइवान को लेकर अमरीका और चीन में जबर्दस्त टकराव है। अगस्त में जब अमरीकी स्पीकर नैंसी ताइवान पहुंची थीं तो चीनी सेना ने सबसे बड़ा सैन्य अभ्यास शुरू कर दिया था। 
हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन का दूसरे देशों से टकराव कोई नया नहीं है। चीन दक्षिणी चीन समुद्र के कुछ हिस्से पर अपना दावा जताता है। चीन ने समुद्र के क्षेत्र में कई कृत्रिम द्वीप बनाए हैं। चीन द्वारा भारत की घेराबंदी करना भी कोई नया नहीं है। पिछले 10 वर्षों के दौरान भारत और चीन के संबंधों में कड़वाहट बनी रही है। 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता संभालने के बाद 2-3 वर्ष तक संबंध मधुर रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन यात्रा की थी और शी जिनपिंग भी भारत आए थे लेकिन दोनों पक्षों में एकाएक डोकलाम को लेकर विवाद शुरू हो गया था। दोनों देशों के संबंधों में विरोधाभास भी है। एक तरफ  भारत और चीन में सीमा विवाद जारी है तो दूसरी तरफ  दोनों देशों में व्यापार लगातार बढ़ रहा है। 
इसी कारण जहां तक भारत-चीन संबंधों का सवाल है, उन्हें लेकर भी कोई ज्यादा उम्मीद नहीं पालनी चाहिए। दुनियाभर में नए समीकरण बनते बिगड़ते दिखाई दे रहे हैं। यूक्रेन-रूस युद्ध के बाद चीन रूस के ज्यादा नज़दीक दिखाई दिया।  पाकिस्तान के मामले में भी चीन का रवैया काफी नरम है, क्योंकि वह पीओके में आर्थिक गलियारा बना रहा है। भारत की अमरीका से निकटता को चीन अपने लिए खतरा मानता है। वास्तविकता यह है कि चीन खुद को एशिया का नेता मानता है और वह किसी को अपने बराबर नहीं समझता। भारत को आने वाले दिनों में अपनी सामरिक नीतियों को लेकर काफी सतर्क होकर चलना होगा। मधुर संबंधों की उम्मीद लगाना एक सपना ही होगा।
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