जीवाश्म ईंधन पर नियंत्रण बनता रहा विश्व में युद्धों का कारण

इस सदी के अंत तक पृथ्वी हने योग्य स्थान नहीं रहेगी यदि वर्तमान औसत तापमान इसी प्रकार 2.5 सेल्सियस बढ़ता रहा। नवीनतम प्रकाशित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन के बदतर होने के साथ, दुनिया जो पहले से ही भीषण गर्मी की लहरों, बाढ़ और सूखे, तूफान के एक नियमित दौर का सामना कर रही है, को संभावित अपरिवर्तनीय प्राकृतिक आपदाओं से जूझना पड़ सकता है, जिससे कम से कम 3.3 बिलियन लोगों का जीवन बुरी तरह प्रभावित हो सकता है। इन सभी का संबंध जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता और परिणामी ग्रीनहाउस उत्सर्जन से है। जीवाश्म ईंधन पर नियंत्रण प्रमुख युद्धों का एक कारण है और युद्ध का अर्थव्यवस्थाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
लेकिन युद्ध क्यों? विश्व ऊर्जा भौगोलिक रूप से स्थानीय संसाधनों पर निर्भर करती है, जिसमें बड़ी मात्रा में जीवाश्म ईंधन पृथ्वी के छोटे क्षेत्रों में केंद्रित है। इसलिए कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस क्षेत्रों पर नियंत्रण अत्यधिक मूल्यवान है। सीमावर्ती देश इन्हें हथियाने के लिए तमाम बहाने बनाते रहते हैं।
इतिहास ने बार-बार दिखाया है कि जीवाश्म ईंधन पर नियंत्रण कुछ सबसे बड़े युद्धों का कारण रहा है। इस पर विचार करें तो अगला वर्ष रुहर (1923-1925) के कब्जे का शताब्दी वर्ष है। रुहर क्षेत्र राइन नदी के चारों ओर फैला हुआ है, जो फ्रांस और जर्मनी की सीमा पर स्थित है। फ्रांस और बेल्जियम के सैनिकों ने खनिज और औद्योगिक रूप से समृद्ध रुहर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया, क्योंकि जर्मनी प्रथम विश्व युद्ध के दौरान हुए मरम्मत सौदे के हिस्से के रूप में फ्रांस को कोयला नहीं भेज रहा था। इस कब्जे के कारण जर्मन मुद्रा और अर्थव्यवस्था प्रभावित हो गई जिसके बाद जर्मनी ने  अंतत: द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत का नेतृत्व किया।
द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के लगभग 45 साल बाद जब सद्दाम हुसैन ने पड़ोसी देश कुवैत पर आक्रमण किया, तो जीवाश्म ईंधन (पेट्रोलियम) का स्वामित्व एक और वैश्विक संघर्ष का केंद्र बन गया। कुवैत पर एक जीत ने इराक को दुनिया की अग्रणी ऊर्जा शक्ति बना दिया, जो अरब और फारस की खाड़ी दोनों क्षेत्रों पर हावी है, जहां तेल भंडार का बड़ा हिस्सा है। अगर इराक को जीतने दिया जाता तो अमरीका और उसके सहयोगी शक्ति संतुलन में इस नाटकीय बदलाव को स्वीकार नहीं कर सकते थे।
अब रूस और यूक्रेन युद्ध को लें। डोनबास क्षेत्र में एक समृद्ध कोयला भंडार है। नीपर-डोनेट्स्क क्षेत्र और आज़ोव का काला सागर सहित अन्य भाग प्राकृतिक गैस का एक समृद्ध स्रोत हैं, जो उर्वरकों के निर्माण के लिए एक महत्वपूर्ण कच्चा माल है। इससे पहले 2014 के दौरान क्रीमिया पर रूसी आक्रमण काला सागर क्षेत्र में तेल और प्राकृतिक गैस भंडार पर नियंत्रण से संबंधित था। रुहर क्षेत्र पर जिसमें काफी जर्मन आबादी थी, फ्रांस और बेल्जियम द्वारा कब्जा कर लिया गया था। इस बार डोनबास, नीपर, डोनेट्स्क और लुहान्स्क क्षेत्रों में रूसी बोलने वाली आबादी काफी है जिस  कारण उस क्षेत्र पर रूस द्वारा दावा किया गया है।
अधिक चिंताजनक बात यह है कि इन संघर्षों ने ऊर्जा मूल्य को अस्थिर कर दिया जिसके परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। उदाहरण के लिए 1973 के योम-किप्पुर युद्ध और उसके बाद के सऊदी प्रतिबंध को लें जिससे दुनिया भर में गतिरोध पैदा हुआ। 1974 के दौरान उग्र मुद्रास्फीति जो 11 प्रतिशत तक बढ़ गयी थी, से लड़ने के लिए तत्कालीन फेड अध्यक्ष आर्थर बर्न्स ने फंड की दर को 12 प्रतिशत तक बढ़ा दिया और 1975 में इसे लगभग 5 प्रतिशत तक कम कर दिया। लेकिन इससे कोई फायदा नहीं हुआ क्योंकि दूसरा तेल संकट 1979 में ईरान-इराक युद्ध की शुरुआत के साथ पैदा हुआ। मुद्रास्फीति पर काबू पाने के लिए पॉल वोल्कर जो कि फेड के प्रभारी थे, ने एक लड़ाकू नीति का अनुसरण किया। 1979 और 1981 के बीच फेड ने नीतिगत दरों को 13.6 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत कर दिया। 1980 के दशक की शुरुआत में अमरीका में मुद्रास्फीति को 14.5 प्रतिशत तक पहुंचने में लगभग एक दशक का समय लगा।
घटनाओं के वर्तमान सेट के साथ कुछ भयानक समानता देखी जा सकती है। एशिया (पाकिस्तान और श्रीलंका), यूरोप (यूके) और लैटिन अमरीका (अर्जेंटीना) में कई देश डॉलर की मूल्यवृद्धि के कारण पीड़ित हैं, जो फेड के अध्यक्ष जे. पॉवेल द्वारा शुरू की गयी एक कठोर मौद्रिक नीति का परिणाम है। 2022 की मुद्रास्फीति उतनी खराब नहीं है जितनी 1970 के दशक के अंत में अमरीका ने देखी थी, लेकिन यह दशकों में सबसे खराब मुद्रास्फीति है। एक अधिक आक्रामक मौद्रिक सख्ती आयी। फेड ने मार्च 2022 से नीतिगत दर में 300 आधार अंकों की वृद्धि की। अमरीकी जमा पर आमदनी 1 मार्च 2022 में 1.86 प्रतिशत से बढ़कर 4 नवम्बर 2022 को 4.80 प्रतिशत हो गयी।
मुद्रस्फीति में उतार-चढ़ाव उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए बुरी खबर है। मुद्रास्फीति की अस्थिरता जीवाश्म ईंधन पर हमारी अत्यधिक निर्भरता का परिणाम है और इसी तरह कई संघर्ष, तानाशाही और जलवायु परिवर्तन भी। एक अनिश्चित आर्थिक वातावरण भय को भड़काता है और उच्च रक्षा खर्च को प्रेरित करता है जबकि इसे सामाजिक कल्याण उपायों तथा पर्यावरण पर खर्च किया जा सकता है। अक्षय ऊर्जा की ओर एक कदम एक शांति और सद्भाव की ओर ले जा सकता है। जीवाश्म ईंधन के विपरीत हरित ऊर्जा के स्रोत—सूरज की रोशनी, पानी, हवा बहुत कम स्थानीयकृत हैं और इससे कई क्षेत्रीय संघषों का कारण समाप्त हो जायेगा। (संवाद)