चीन की चेतावनी

1962 के युद्ध के बाद भारत तथा चीन के संबंध कभी भी अच्छे तथा मित्रता वाले नहीं बन सके, चाहे इस युद्ध को 6 दशक का समय हो चुका है। दोनों देशों के प्रमुख तथा अन्य हर स्तर के प्रतिनिधिमंडल अनेक बार एक-दूसरे के देशों का दौरा करते रहे हैं। दोनों में व्यापार भी बढ़ता रहा है परन्तु इस पूरी अवधि में दर्जनों बार उच्च स्तरीय बातचीत करने के बावजूद सीमा विवाद हल नहीं किया जा सका। चीन लगातार भारतीय क्षेत्रों पर अपने दावे भी करता है तथा अपने हठ पर भी कायम रहता है। इस समय में उसने आर्थिक तथा सैन्य शक्ति इतनी बढ़ा ली है कि आज उसके ज्यादातर पड़ोसी देश उससे डरने लगे हैं। सैन्य शक्ति बढ़ाने के साथ-साथ वह अपनी विस्तारवादी नीतियों पर भी कायम रहा है। इस कारण उसका दर्जनों पड़ोसी देशों के साथ तनाव चल रहा है। भारत भी उनमें से एक है।
एक अनुमान के अनुसार चीन ने हवाई, समुद्री तथा थल सैन्य शक्ति में वृद्धि करते हुए विश्व में बहुत-से ऐसे अड्डे बना लिये हैं, जिनसे वह आसानी से एटमी युद्ध लड़ सकता है। वर्ष 2035 तक उसके पास 1500 के लगभग परमाणु बमों का भंडार होगा। 2 वर्ष पूर्व गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों में जिस तरह का खूनी टकराव हुआ, उसने दोनों देशों के बीच तनाव को और भी बढ़ा दिया है। इसके बाद भी अब  तक सैन्य कमांडरों की उच्च स्तरीय 16 बैठकें हो चुकी हैं परन्तु चीन पूर्वी लद्दाख तथा अरुणाचल प्रदेश आदि के भारतीय क्षेत्रों में अपने सीमांत दावों को लेकर अपने हठ पर उसी तरह कायम है। इस समय भारत ने दुनिया के  ज्यादातर विकसित देशों के साथ अपने संबंध सुधार लिये हैं, यहां तक कि भारत ने उनसे कुछ संधियां भी की हैं ताकि किसी आपदा की स्थिति में अन्य देशों से सहयोग लिया तथा दिया जा सके। इसी क्रम में भारत ने अमरीका तथा अन्य देशों के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास करने भी शुरू कर दिये हैं। इसी क्रम में ही अब भारत के उत्तराखंड में दो सप्ताह के लिए 18वां सैन्य अभ्यास कर रहे हैं, जिसके संबंध में चीन ने अपनी आपत्ति व्यक्त की है तथा अमरीका को यह चेतावनी दी है कि वह दोनों देशों (भारत एवं चीन) के रिश्तों में दखल न दे, क्योंकि इसका प्रभाव दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों पर पड़ेगा। परन्तु भारत ने हमेशा यही कहा है कि दोनों देशों के आपसी संबंध तभी पूरी तरह सुधर सकते हैं, यदि सीमा विवाद को सन्तोषजनक ढंग से हल किया जा सके परन्तु चीन ने ऐसा करने में कभी ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई, अपितु इस मामले को लटकाये रखने की नीति ही अपनाई है। आज भी पूर्वी लद्दाख में चीन की सेना बड़ी संख्या में तैनात ही नहीं है, अपितु यहां पर सीमा के साथ-साथ उसने स्थायी ठिकाने भी बनाने शुरू किये हुए हैं। परन्तु इस सब कुछ के बावजूद भी भारत चीन से अपना व्यापार कम करने में सफल नहीं हो सका।
आज भारत ही नहीं, विश्व के ज्यादातर देशों के लिए चीन ़खतरा बना दिखाई देता है। इसीलिए वे कई प्रकार के संगठनों के रूप में आपस में बंध चुके हैं ताकि आगामी समय में चीन अपनी बेहद बढ़ी हुई सैन्य शक्ति से उनके लिए कोई ़खतरा न बन सके। ऐसा करना उनकी विवशता बनी दिखाई देती है। भारत के सिर पर भी चीन का ़खतरा लगातार मंडराता रहता है, जिसके लिए वह हर पक्ष से स्वयं को मज़बूत करने हेतु प्रयासशील रहा है। आगामी समय में यदि चीन की नीयत तथा नीति स्पष्ट होती है तभी दोनों देशों के संबंध सुखद हो सकते हैं। 
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द