राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ़खतरा है धर्मांतरण 

भय, प्रलोभन और अंधविश्वास के माध्यम से किसी को अपनी धार्मिक पहचान बदलने के लिए बाध्य करना देश के लिए बड़ा और गंभीर संकट बनता जा रहा है। इस तरह के जबरन धर्मांतरण के विरुद्ध याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने भी चिंता जताई है। जबरन धर्म परिवर्तन को लेकर एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय द्वारा शीर्ष न्यायालय में याचिका दायर की गई। याचिका में धर्म परिवर्तनों के ऐसे मामलों को रोकने के लिए अलग से कानून बनाए जाने की मांग की गई है। शीर्ष न्यायालय का कहना है कि इस पर रोक लगाने के लिए केंद्र सरकार को प्रयास करने होंगे। अनदेखी से स्थिति बिगड़ सकती है। जबरन धर्मांतरण राष्ट्र की सुरक्षा और धर्म की स्वतंत्रता को प्रभावित करता है। हाल के दिनों में देश के आदिवासी इलाकों से इतर पंजाब में भी धर्मांतरण के मामलों में तेज़ी आने की बात कही जाती रही है। धन का प्रलोभन देकर बड़े पैमाने पर धर्मांतरण के आरोप लगते रहे हैं।
धर्मांतरण कराने वालों के निशाने पर प्राय: गरीब तबका होता है, जिसकी विवशता और गरीबी का लाभ उठाकर उन्हें धर्म बदलने के लिए बाध्य किया जाता है। संविधान में सभी को अपने मत-मजहब के प्रचार की स्वतंत्रता है, लेकिन इसका अनुचित लाभ उठाया जा रहा है। प्रचार के नाम पर अन्य को बरगलाने की स्वतंत्रता किसी को नहीं दी जा सकती है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में कहा है कि नि:संदेह सभी को संविधान के अनुसार धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है। ये एक मूल्यवान अधिकार है और कार्य-पालिका व विधायिका को इसकी रक्षा करनी चाहिए। अदालत का मानना है कि देश में धार्मिक आज़ादी है लेकिन इसका मतलब जबरन धर्मांतरण की आज़ादी होना कदापि नहीं है। इस तरह की कोशिशें जहां राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये चुनौती हैं, वहीं नागरिकों की धर्म की स्वतंत्रता को भी बाधित करती हैं। अदालत ने इस बाबत केंद्र सरकार को तुरंत कदम उठाने को कहा। लम्बे समय से आरोप लगते रहे हैं कि देशी-विदेशी एजेंसियां धर्मांतरण के ज़रिये देश का सांस्कृतिक चरित्र बदलने की कोशिशों में लगी हैं।  खासकर आदिवासी व पिछड़े  इलाकों में छल-बल व धनबल के जरिये ऐसी कोशिशों को अंजाम दिया जा रहा है। दरअसल, यह संकट हमारे समाज में सामाजिक व आर्थिक असमानता से उपजा प्रश्न भी है। जिन आदिवासियों व निचले जातिक्रम में आने वाले समूहों को समानता का हक नहीं मिला, उन्हीं तबकों में व्याप्त आक्रोश को धर्म-परिवर्तन का अस्त्र बनाया जाता है। जातीय दंभ से त्रस्त समाजों में यह आक्रोश नज़र भी आता है। अशिक्षा भी इसके मूल में एक बड़ा कारण है। नि:संदेह, सामूहिक धर्मांतरण की कोशिशें कालांतर सामाजिक तानाबाना भी बदलती हैं। 
ये कोशिशें बाद में सामाजिक टकराव की वाहक बनती हैं। वहीं राजनीतिक हित साधने का साधन भी होती हैं। जो बाद में राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये भी चुनौती पैदा कर सकती हैं। ऐसी चिंता अदालत ने भी जतायी है। अदालत ने लोभ-लालच से कराये जाने वाले धर्मांतरण को गंभीर मामला बताते हुए इसे रोकने की दिशा में तुरंत कदम उठाने को कहा है। हालांकि, देश में कुछ राज्यों ने धर्मांतरण रोकने के लिये कानून भी बनाये हैं, लेकिन ये धर्मांतरण कराने वाली संस्थाओं पर अंकुश लगाने में कारगर साबित नहीं हुए हैं। यही वजह कि राष्ट्रीय स्तर पर धर्मांतरण रोधी प्रभावी कानून बनाये जाने की मांग की जाती रही है। 
सरकार ने अपने हलफ्नामे में कहा है कि समाज के आर्थिक और सामाजिक रूप से कमज़ोर वर्ग, महिलाओं और वंचितों के अधिकारों के संरक्षण के लिए गैर-कानूनी जबरन धर्मांतरण  को रोकने का कानून ज़रूरी है। इसे देखते हुए कई राज्यों ने जबरन धर्मांतरण रोकने के लिए कानून बनाए हैं। हाल के वर्षों में धर्म विशेष की गतिविधियों में अप्रत्याशित तेजी आई है। कुछ समय में बड़ी संख्या में उपासना स्थल बनाये गये हैं जिसके कारण पिछले पांच वर्षों में राज्य के कई जनपदों में सामाजिक संरचना में बदलाव देखने की बात कही जा रही है। यह बदलाव पिछड़े व वंचित वर्गों में ज्यादा देखा जा रहा है। कई राज्यों में गरीब आदिवासियों और अनुसूचित जाति के लोगों को बहकाकर उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए विवश करने के लिए कैसे-कैसे हथकंडे अपनाए जा रहे हैं।
पिछले दिनों देश में पश्चिम बंगाल, नेपाल व राजस्थान से लगे सीमांत इलाकों में धार्मिक आधार पर जनसंख्या के स्वरूप में बदलाव को लेकर राष्ट्रीय एजेंसियां चिंता जता चुकी हैं। वे इस सुनियोजित कोशिश को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा बताती रही हैं। नि:संदेह, इस समस्या को राष्ट्रीय चुनौती मानते हुए जहां सरकार को यथाशीघ्र पहल करने की ज़रूरत है, वहीं समाज के स्तर पर जागरूकता की भी ज़रूरत है।  इसमें कोई दो राय नहीं है कि धर्मांतरण के माध्यम से समाज के सांस्कृतिक चरित्र को बदलने का प्रयास राष्ट्रघाती है। इस कार्य में लिप्त कुछ संगठनों को चिन्हित कर विदेश से उनके चंदे पाने संबंधी नियमों में केंद्र सरकार ने बदलाव किए हैं, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। धर्मांतरण मूलत: राष्ट्रांतरण के छिपे एजेंडे पर बढ़ता कदम है। यह देश एवं समाज के लिए आतंकवाद से कम घातक नहीं है। इससे निपटने के लिए भी सरकार को सख्त प्रविधान करने की आवश्यकता होगी।
केंद्र और राज्य सरकारों को सुप्रीम कोर्ट की इस बात पर गंभीरता दिखानी चाहिए और इस मुद्दे पर बिना राजनीतिक भेदभाव के काम करना चाहिए, ताकि अशिक्षित, आदिवासी और अन्य लोग बलि का बकरा न बन जाएं। बहुत ही गलत है कि कुछ लोग दुनिया के सबसे बड़े धर्म-निरपेक्ष देश का गलत फायदा उठाकर देश में जबरन धर्मांतरण कोई लालच देकर करवा रहे हैं। अगर कुछ लोग गरीबों का भला करना ही चाहते हैं तो वे धर्म परिवर्तन की शर्त क्यों रखते हैं?