मोबाइल आपका दोस्त है या दुश्मन


इस शताब्दी का सबसे उन्नत और प्रभावी संचार उपकरण मोबाइल फोन है। मोबाइल फोन हम सभी की जिंदगी का एक अभिन्न अंग बन चुके हैं। टेक्नोलॉजी के इस दौर में बच्चों का मोबाइल से खास लगाव हो चला है। आजकल बच्चे से बुजुर्ग के हाथों में मोबाइल देखा जा सकता है। आजकल ज्यादातर बच्चे मोबाइल फोन की बुरी आदत का शिकार हो गए हैं। बच्चों को मोबाइल फोन की ऐसी लत लगी है कि वो सोते-जागते, खाते-पीते, सिर्फ फोन में लगे रहते हैं। मोबाइल के बेहताशा उपयोग का बच्चों पर दुष्प्रभाव की जानकारी हर किसी को होनी जरुरी है ताकि यह पत्ता चल सके की यह बच्चों के लिए लाभकारी है या हानिकारक।
मोबाइल आपका दोस्त है या दुश्मन। बिना विलंब किए इस पर गहनता से मंथन की जरुरत है। हाल ही में प्रयागराज में मोबाइल को लेकर ऐसी घटना सामने आई जो किसी भी पेरेंट को सोचने पर मजबूर कर देगी। 9वीं कक्षा की छात्रा को जब मोबाइल पर गेम खेलते देखा तो पिता ने डांट दिया। ऐसे में बेटी ने रात होते ही अपने कमरे में जाकर फांसी लगा ली। यह ऐसा कोई पहला मामला नहीं है। देश के हर कोने से ऐसे मामले अक्सर सुर्खियों में आते रहते हैं। आजकल मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल बच्चों को इंटरनेट एडिक्शन की तरफ ले जा रहा है। इस तरह के एडिक्शन से मानसिक बीमारियां पैदा होती हैं और ऐसे में बच्चे कोई न कोई गलत कदम उठा लेते हैं। आजकल के बच्चे इंटरनेट लवर हो गए हैं। इनका बचपन रचनात्मक कार्यों की जगह डेटा के जंगल में गुम हो रहा है। पिछले कई सालों में सूचना तकनीक ने जिस तरह से तरक्की की है, इसने मानव जीवन पर गहरा प्रभाव डाला है बल्कि एक तरह से इसने जीवनशैली को ही बदल डाला है। बच्चे और युवा एक पल भी स्मार्टफोन से खुद को अलग रखना गंवारा नहीं समझते। इनमें हर समय एक तरह का नशा सा सवार रहता है। वैज्ञानिक भाषा में इसे इंटरनेट एडिक्शन डिस्ऑर्डर कहा गया है।
अपने बच्चों को मोबाइल और कम्प्यूटर पर गेम खेलते अनेक माता-पिता बहुत खुश  होते हैं। वे दूसरों को बड़े गर्व के साथ यह बताते तनिक भी नहीं हिचकते की उनका बेटा डिजिटल दुनियां के नए जमाने के साथ दौड़ रहा है। वे बड़े खुशी से बताते हैं कि वह मोबाइल पर फोटो निकाल लेता है। मैसेज भेज देता है। व्हाट्सप पर बात कर लेता है और फोटो, वीडियो शेयर कर लेता है। यहाँ तक की गूगल पर कुछ भी खोज लेता है। लेकिन शायद वह इस बात से अनजान है कि जिसे वह बच्चे की स्मार्टनेस समझ रहे हैं वह उसके विकास में बाधा भी बन सकता है। विशेषज्ञ मानते है कि इलेक्ट्रॉनिक गजेट और कम्प्यूटर का अत्यधिक प्रयोग बच्चों के लिए अच्छा नहीं है। इससे उनमें संवादहीनता और चिड़चिड़ेपन की प्रवृत्ति बढ़ती है।
मौजूदा दौर में बच्चों में खेलकूद का स्थान इंटरनेट ने ले लिया है। इसका सीधा प्रभाव बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर पड़ा है। शहरों के साथ अब गांवों में भी मोबाइल की पहुँच होने से बच्चों में इंटरनेट की लत बड़ गई है। हम यहाँ बचपन की बात करना चाहते है। देखा जाता है पांच साल  का बच्चा भी आँख खोलते ही मोबाइल पर लपकता है। पहले बड़े इसे अपने काम के लिए करते थे। अब बच्चे भी इंटरनेट के शौकीन होते जा रहे हैं। बाज़ार ने उनके लिए भी इंटरनेट पर इतना कुछ दे दिया है कि वह पड़ने के अलावा बहुत कुछ इंटरनेट पर करते रहे हैं। पेरेंट्स को बच्चों की ऐसी गतिविधियों पर नज़र रखनी चाहिए और समय रहते उनकी ऐसी आदत को पॉजेटिव तरीके से दूर करना चाहिए।
बाल मुकुन्द ओझा
मो- 8949519406