दिलचस्प चुनाव परिणाम

गत दिवस से चुनाव क्षेत्र में बड़ा ही दिलचस्प घटनाक्रम घटित हो रहा है। दिल्ली नगर निगम में पिछले 15 वर्ष से भारतीय जनता पार्टी का कब्ज़ा था परन्तु इस बार आम आदमी पार्टी ने इन चुनावों में जीत प्राप्त की है। अभी इस पार्टी के नेता तथा कार्यकर्ता इस जीत की खुशी मना ही रहे थे और लड्डू बांट रहे थे कि दूसरे दिन दो प्रदेशों गुजरात एवं हिमाचल प्रदेश से विधानसभा चुनावों के आए परिणामों ने ‘आप’ की खुशी को फीका कर दिया। हिमाचल प्रदेश में इसने यहां की 68 सीटों पर अपने 67 उम्मीदवार खड़े किये थे परन्तु इसका कोई भी उम्मीदवार जीत प्राप्त नहीं कर सका। हिमाचल प्रदेश की ही बात करें तो  पिछली लम्बी अवधि से एक तरह से यही परम्परा बनी रही है कि यहां कांग्रेस तथा भाजपा की बार-बार सरकार बनती रही है।
इस बार जयराम ठाकुर के नेतृत्व में चल रही भाजपा सरकार पर चाहे कई प्रश्न-चिन्ह लगते रहे हैं तथा चुनावों में भी भाजपा के उम्मीदवारों के विरुद्ध इस पार्टी में से ही दो दर्जन से अधिक ब़ागी उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने ने भी पार्टी को ठेस पहुंचाई परन्तु इसके बावजूद भाजपा ने यहां अपनी पूरी ताकत लगा दी थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लगातार रेलियों के साथ-साथ केन्द्रीय मंत्रिमंडल के ज्यादातर मंत्रियों का यहां जमावड़ा लगा रहा था। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा का संबंध इस प्रदेश के साथ है, इसलिए उनका नाम भी दांव पर लगा हुआ था। कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी तथा सोनिया गांधी द्वारा यहां चुनाव प्रचार नहीं किया गया सिर्फ प्रियंका गांधी वाड्रा ने ही यहां पार्टी की कमान सम्भाली हुई थी। कांग्रेस ने पुरानी पैन्शन बहाल करने के साथ-साथ अन्य कई महत्त्वपूर्ण घोषणाएं ज़रूर की थीं परन्तु आम प्रभाव यह मिलता था कि यहां दोनों पार्टियां के बीच कांटे की टक्कर होगी, क्योंकि आम आदमी पार्टी ने चुनावों के दौरान ही यहां से पीछे  हटना शुरू कर दिया था। समूचे तौर पर चाहे देश भर में कांग्रेस की छवि लगातार कम होती दिखाई दे रही है, परन्तु राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का कुछ प्रभाव जरूर देखा जा सकता है। कांग्रेस द्वारा सभी सीमाओं के बावजूद हिमाचल प्रदेश में 40 सीटें जीत कर बहुमत प्राप्त करना पार्टी के लिए एक बड़ी उपलब्धि ज़रूर मानी जा सकती है, क्योंकि भाजपा द्वारा ज़ोरदार चुनाव प्रचार के बावजूद यहां मोदी तथा हिन्दुत्व का पत्ता नहीं चल सका। 
जहां तक कि गुजरात का संबंध है, इसके परिणामों को लेकर जहां राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के प्रभाव में वृद्धि हुई है, वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कद-रुतबा और भी ऊंचा हुआ दिखाई देता है। चाहे चुनावों के दौरान ही इस बार भी भाजपा की जीत के अनुमान ज़रूर लगाये जा रहे थे परन्तु यह जीत इतनी बड़ी होगी, इसका अनुमान ही नहीं लगाया गया था। गुजरात के लोकतांत्रिक इतिहास में पहले भाजपा को इतना बड़ा समर्थन कभी नहीं मिला। चाहे नरेन्द्र मोदी यहां पर लगभग 13 वर्ष मुख्यमंत्री रहे तथा 27 वर्ष तक यहां भाजपा का शासन रहा परन्तु पहले किसी भी पार्टी को यहां पर इतना बड़ा बहुमत नहीं मिला था। वर्ष 2002 में मोदी के मुख्यमंत्री होते भाजपा ने सबसे बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए यहां से 182 में से 127 सीटों पर जीत दर्ज की थी। कांग्रेस ने भी वर्ष 1985 में माधव सिंह सोलंकी के मुख्यमंत्री रहते 149 सीटें जीत कर अपनी धाक जमाई थी परन्तु इस बार 182 में से भाजपा द्वारा 156 सीटों पर जीत दर्ज करना यहां के चुनाव इतिहास की सबसे बड़ी जीत है, जो बेहद आश्चर्यजनक है।
भारत के राज्यों के चुनाव इतिहास में पहले सिर्फ मार्क्सवादी पार्टी के नेतृत्व वाले वामपंथी गठबंधन ने पश्चिम बंगाल में 1977 से लेकर 2011 तक लगभग 34 वर्ष तक शासन किया था। गुजरात में भाजपा लगातार 7वीं बार जीत दर्ज करवा कर उसके समान आ खड़ी हुई है। चाहे गुजरात में बढ़ती कीमतें, बेरोज़गारी तथा डावांडोल होती अर्थ-व्यवस्था के साये ज़रूर पड़े परन्तु 2017 के चुनावों में 77 सीटें तथा इस बार उससे दो गुणा अधिक सीटें प्राप्त करना आश्चर्यजनक ज़रूर कहा जा सकता है। इस बार कांग्रेस के साथ-साथ गुजरात चुनावों में आम आदमी पार्टी ने पूरा ज़ोर लगाया था तथा अपने पास इकट्ठे सभी साधन उसके द्वारा यहां प्रयोग किए गए थे परन्तु कांग्रेस को महज 17 तथा आम आदमी पार्टी को 5 सीटें मिलने से ये दोनों पार्टियां यहां हाशिये पर आ गई हैं। हम महसूस करते हैं कि इतनी बड़ी जीत से गुजरात भाजपा की ज़िम्मेदारी में और भी वृद्धि हुई है तथा आगामी समय में देशवासियों द्वारा उससे और भी बड़ी उम्मीदें रखी जा रही हैं, जिन पर पूरा उतरने के लिए इसे और भी बड़े प्रयास करने की ज़रूरत होगी।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द