नई पीढ़ी को देश की धरती से जोड़ने वाली शिक्षा की ज़रूरत

हर देशवासी के मन मस्तिष्क में बार-बार यह प्रश्न उत्पन्न होता होगा कि आखिर कहां कमी रह गई जो स्वतंत्रता के 75 वर्ष पश्चात भी देश के जनता के मन में भारतीयता के लिए वह गौरव भाव नहीं भरा गया जो एक स्वतंत्र राष्ट्र के नागरिकों में होना चाहिए। देश पर मर मिटने वालों की भी कोई कमी नहीं। देश में ज्ञान-विज्ञान की दिशा में शिखरों पर पहुंचने और पहुंचाने वाले बुद्धिजीवियों का भी दुनिया में कोई मुकाबला नहीं। भारत की बेटियां विश्व स्तर पर उपलब्धियां प्राप्त कर रही हैं। कौन नहीं जानता कि अमरीका, इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया तथा कनाडा की सरकारों में भी हमारे देश की महिलाएं और पुरुष अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। जब अपने देश में देखते हैं तो सबसे बड़ी कमी हमारे शासकों, प्रशासकों की यह रह गई कि उन्होंने हमारी शिक्षा को देश की धरती से नहीं जोड़ा। देश के जिन वीरों, वीरांगनाओं के रक्त से सिंचित होकर स्वतंत्रता देश को प्राप्त हुई उस रक्त-रंजित मिट्टी से देश की नई पीढ़ी का पूरी तरह परिचय ही नहीं करवाया गया। बहुत दूर की बात क्या, अमृतसर का जलियांवाला बाग जहां ब्रिटिश साम्राज्यवादी डायर ने हिंसा का क्रूर कर्म किया था, उस शहर के अधिकतर लोग भी जलियांवाला बाग के शहीदों के बारने नहीं जानते। सत्तारूढ़ पार्टी के नेता 13 अप्रैल खूनी साके के दिन मंच पर सजते हैं और श्रद्धांजलि की औपचारिकता पूरी कर चले जाते हैं। दुनिया भर से जो लोग अमृतसर आते हैं, वे जलियांवाला बाग जाते ही हैं। देखते तो हैं, पर कितना समझ पाते हैं यह कहना कठिन है। दुनिया के लोगों को तो छोड़ें, देश तथा प्रदेश के विद्यार्थी इस बलिदानी गाथा से पूरी तरह परिचित नहीं हैं। आखिर कहां कमी रह गई कि जिस भारत का स्वतंत्रता आंदोलन का आह्वान राष्ट्र भाषा और मातृभाषाओं में हुआ, जहां 1905 में बंग भंग आंदोलन के समय कलकत्ता से वंदेमातरम का गगन भेदी गर्जन प्रारंभ हुआ था, जिस देश ने  नेताजी सुभाष के नारे ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा’ को कंठहार बना लिया, जिस देश ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन की गूंज गांव-गांव, शहर-शहर पहुंच गई और लोग सड़कों पर निकल पड़े, जेलों में गए, लाठियां ही नहीं, गोलियां खाई, जिन बालक बालिकाओं ने अभी जीवन के 14 वसंत भी नहीं देखे थे, वे भी अंग्रेज़ों की गोलियों से घायल होकर अपने रक्त से मातृभूमि का अभिनंदन करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए। स्वतंत्रता के महायज्ञ में विभाजन के समय दस लाख से ज्यादा लोग तो पंजाब और बंगाल में ही जान गंवा बैठे और आज़ादी के बाद देश की रक्षा करते हुए वीर वीरगति प्राप्त कर चुके हैं, पर कमी यह रह गई कि इन वीरों से, देश पर बलिदान होने वालों से, काले पानी की कालकोठरियों में तिल-तिल स्वतंत्रता के लिए तड़पने वाले शहीदों को देश नहीं जानता, क्योंकि हमारे शिक्षा शास्त्रियों ने यह चिंता ही नहीं की कि अगर देश की भावी पीढ़ियों को, देश की वर्तमान युवा शक्ति से जोड़कर रखना है तो उन्हें देश को जानना होगा। देश को जानने का अभिप्राय केवल भौगोलिक ज्ञान ही नहीं होना चाहिए। हर विद्यार्थी को अपने प्रांत के साथ-साथ भारत के सभी प्रांतों के शहीदों के विषय में जानना चाहिए। पहले दस वर्ष तक शिक्षा में ही शहीदों से गहरा रिश्ता बना देना चाहिए था। अगर ऐसा हो जाता तो न देश में भ्रष्टाचार होता, न कोई देश के विरुद्ध किसी भी प्रकार की आवाज़ उठाता, न टुकड़े-टुकड़े गैंग इस देश में पनपते और न ही जात-पात, भाषा-धर्म के नाम पर लड़ाई होती। आज भी हमने गुलामी ओढ़ी हुई है। हमारे यहां शिक्षित होने का अर्थ विदेशी भाषा का उच्च ज्ञान और फर्राटेदार उच्चारण है। देश की युवा शक्ति विदेशों की ओर भाग रही है। 
हालत तो यह कि बसंत पंचमी जो वीर हकीकत राय का बलिदान दिन है, उस दिन लगभग 100 लोगों से अमृतसर में पूछा कि हकीकत राय कौन थे, एक भी सही उत्तर नहीं मिला। एक बार यह प्रश्न किया गया कि पंजाब की कोई पांच महिला स्वतंत्रता सेनानी या क्रांतिकारी के नाम बताइए। उत्तर एक प्रतिशत सत्य था। दूर की बात तो क्या अमृतसर में पैदा होकर लंदन में शहीद होने वाला मदन लाल ढींगरा और जलियांवाला बाग का बदला लेने वाले शहीद उधम सिंह भी केवल वार्षिक उत्सवों के दिन ही याद किये जाते हैं। अगर देश को सही शिक्षा पद्धति न मिली, भारत की जमीन से जोड़ने वाले पाठ्यक्रम न तैयार हुए तो फिर युवा पीढ़ी केवल भाषणों से नशा मुक्त नहीं होगी। विदेशों को भागने की दौड़ नहीं छोड़ेगी। आज आवश्यकता है कि नई पीढ़ी को वह शिक्षा दी जाए जो उसे देश के बलिदानियों से जोड़े। याद रखना होगा कि चरित्र के उदाहरण अधिक प्रभावशाली होते हैं। उनके भाषण नहीं जिनके अपने जीवन में त्याग, तपस्या और राष्ट्रीयता का अभाव है। आज सरकारें सोचें और देश के बच्चों को पहला पाठ देश और बलिदानियों का पढ़ाएं। उसके बाद वह सब पढ़ाया जाए जो ज़रूरी है।