बहुत अंतर है भारत व ईरान के हिजाब आन्दोलन में 

 

अभी हाल ही में ईरान में हिजाब को लेकर एक बड़ा आन्दोलन देखने को मिला। इस आन्दोलन में ईरान की अधिकतर मुस्लिम महिलाओं ने हिस्सा लिया और सरकार की सांस्कृतिक पुलिसिंग के खिलाफ मोर्चा खोला। मुस्लिम महिलाओं द्वारा किए गए इस आन्दोलन ने पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित किया। ईरान की सांस्कृतिक पुलिस हिरासत में एक 22 वर्षीय युवती महसा अमिनी की मौत के बाद ये विरोध प्रदर्शन तेज हो गए थे। 
ईरान के इस हिजाब विरोधी आन्दोलन से महीनों पहले भारतीय राज्य कर्नाटक में मुस्लिम लड़कियों को कॉलेज में प्रवेश से इसलिए रोक दिया गया था कि उन लड़कियों ने कॉलेज ड्रैस की बजाय हिजाब पहन रखा था। दरअसल, कॉलेज ड्रेस कोड से संबंधित एक आदेश राज्य सरकार ने ही जारी किया था और उस आदेश के आलोक में कॉलेज प्रबंधन ने ऐसा किया था। इस आदेश के खिलाफ मुस्लिम लड़कियों ने आन्दोलन किया था हालांकि यह आन्दोलन ईरान की तरह व्यापक नहीं था। आन्दोलनकारियों ने राज्य के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाएं दायर कर रखी हैं। मामला लंबित है। फ्रांस जैसे यूरोपीय देशों में मुस्लिम महिलाओं के सार्वजनिक रूप से हिजाब के मुद्दे को लेकर हमेशा समस्या खड़ी होती रही है। इसे फ्रांस की संस्कृति के खिलाफ भी माना जाता रहा है। हमेशा हिजाब की प्रामाणिकता तथा महिलाओं की स्वतंत्रता को लेकर बहस होती रही है। हालांकि इस प्रकार की बहस में यह भुला दिया जाता है कि महिलाएं क्या करेंगी या क्या पहनेगी, यह कोई दूसरा तय क्यों करेगा? महिलाओं को अपना स्वतंत्रता जीवन जीने का पूरा हक है। उनके ऊपर बलपूर्वक कुछ भी नहीं थोपा जा सकता है। 
सांस्कृतिक नैतिकता की जद में आखिर महिलाओं को ही क्यों रखा जाता है? लोगों को नागरिकों के रूप में बाध्य करने वाले संविधान और कानून केवल स्वतंत्रता, अस्तित्व और संबद्ध स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं। ऐसी ही एक आवश्यक स्वतंत्रता असहमति और व्यक्तिगत अधिकारों के लिए लड़ने का अधिकार है। ऐसे देशों में जहां नागरिक स्वतंत्रता को स्पष्ट नहीं किया गया है, वहा लोग लोकतंत्र में रहने वाले लोगों द्वारा उपयोग की जाने वाली स्वतंत्रता के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं।
मुद्दा ईरान और भारत में मुस्लिम महिलाओं द्वारा अधिकारों के लिए संघर्ष की तुलना का है। ईरान की शासन प्रणाली कट्टर इस्लामिक है। वहां शरिया कानून लागू है। इस प्रकार के कानून में नागरिक स्वतंत्रता का कहीं कोई स्थान ही नहीं है। इस्लाम का धार्मिक स्वरूप चाहे जो भी हो लेकिन इसका राजनीतिक स्वरूप बेहद अधिनायकवादी और मध्ययुगीन है। इसलिए वहां लोगों को स्वतंत्रता और असहमति का अधिकार प्राप्त नहीं है। 
ईरान में सत्ता से असहमति नहीं रखी जा सकती। यदि ऐसा किया जाता है तो सत्ता के द्वारा किसी भी प्रकार की सज़ा दी जा सकती है। इसका तात्पर्य यह है कि कानून सामान्य आबादी पर आचरण के एक शीर्ष-डाउन माडल को लागू करने में दमनात्मक और आक्रामक है। यही नहीं, ईरान में अज़रबैजानियों, कुर्दों, माजंदरानियों और तुर्कमानों आदि जैसी अल्पसंख्यक जातियों का सत्ता में कोई हस्तक्षेप नहीं है। बता दें कि ये तमाम जातियां इस्लाम में ही विश्वास रखती हैं लेकिन ईरान में इन्हें गैर-इस्लामिक माना जाता है।
ईरान के हिजाब विरोधी तात्कालिक आन्दोलन का नेतृत्व महिलाओं द्वारा किया गया। इसके कारण महिलाओं को क्रूर इस्लामिक शासन का घोर दमन सहना पड़ा। कई महिलाएं मारी गयी और हज़ारों की संख्या में घायल हुई। इसके अलावा, भ्रष्टाचार, राजनीतिक दमन और आर्थिक कुप्रबंधन के मुद्दे जनता में असंतोष के सबसे लम्बे समय तक चलने वाले मुद्दे रहे हैं। विरोध प्रदर्शनों के कारण कार्रवाई हुई, सैंकड़ों लोगों को कारावास हुआ। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस आन्दोलन में 50 से अधिक लोगों की मौत हुई। इस प्रकार की व्यवस्था में न्याय की कोई अपेक्षा नहीं की जा सकती।
भारत में इस मामले के लेकर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। चूंकि यहां एक मजबूत न्यायिक प्रणाली है और वह सत्ता व शासन को भी वास्तविकता से अवगत कराती रहती है। यहां सत्ता से असहमति के लिए व्यापक गुंजाइश है और लोगों को सरकार के फैसलों से असहमत होने और विरोध के माध्यम से अपना असंतोष दर्ज कराने का भी अधिकार है।
मुस्लिम महिलाओं के नेतृत्व में विरोध और भारत के सर्वोच्च न्यायालय में याचिका की संख्या यह बताती है कि भारतीय महिलाओं पर किसी भी तरह के आदेश थोपने की कोई जुर्रत नहीं कर सकता। भारतीय सर्वोच्च न्यायालय वर्तमान में हिजाब के मुद्दे पर विचार-विमर्श कर रहा है और निश्चित रूप से महिला सशक्तिकरण को लेकर एक उचित निर्णय देगा।
जहां एक ओर ईरान जैसे इस्लामिक देश में सत्ता द्वारा नागरिक अधिकारों का दमन किया जा रहा है, वहीं भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में महिला के प्रति बेहद संवेदनशीलता दिखाई जा रही है। ईरान की मुस्लिम महिलाएं हिजाब नहीं पहनने के लिए आन्दोलन करती हैं तो उन पर गोलियां बरसाई जा रही हैं लेकिन भारत में हिजाब समर्थित आंदोलन को खारिज करने का अधिकार किसी को नहीं है। भारत की न्याय प्रणाली इस पर भी विचार करने की अपनी बाध्यता प्रदर्शित करती है। यह भारत के शासन तंत्र की न्याय प्रणाली का बेहद सकारात्मक पक्ष है। (अदिति)