एक चेतावनी है नदियों का कम होता जल स्तर
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग के वैज्ञानिकों की माने तो बढ़ते तापमान का असर आने वाले दिनों में और अधिक हो जाएगा। संभावना तो यहां तक व्यक्त की जा रही है कि यही हालात रहे तो नदियों में जल स्तर कम होगा। यहां तक कि अनेक क्षेत्रों में पानी का संकट तक आ सकता है। यह चेतावनी भू-वैज्ञानियों व पर्यावरण विशेषज्ञों द्वारा लम्बे समय से दी जाती रही है। जिस तरह से आज हिमालय क्षेत्र भू-गर्भीय हलचलों का केन्द्र बनता जा रहा है, उससे प्रभावित हो रहा है, ऐसा पहले नहीं हुआ। गत दशकों में हिमालय पर्वत श्रृंखला में सर्वाधिक भू-गर्भीय हलचल देखने को मिल रही है। साल में एक या दो नहीं अपितु आये दिन धरती हिलने लगी है, भूस्खलन होने लगे हैं। साल में एक दो बार तो बड़े भूस्खलन समान्य बात होती जा रही है। हिमालय श्रृंखला के ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे हैं। यहां तक कि हिमालयी श्रृंखला से निकलने वाली नदियों के उद्गम स्थल लगातार पीछे खिसकते जा रहे हैं। प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने में भी हिमालय क्षेत्र की अपनी भूमिका रही है। समय का बदलाव देखिये कि यहां तक तो सब ठीक है कि इस क्षेत्र का तेजी से विकास हुआ है। आज परिस्थितियों में बदलाव आया है। पर्यटन स्थलों पर लोग घूमने जाते हैं। यहां तक तो ठीक कहा जा सकता है पर प्रतिबंधित वस्तुओं खास तौर से प्लास्टिक और इसी तरह की अन्य सामग्री के कारण पर्यावरणीय प्रदूषण की समस्या यहां आम हो गई है। लोग चंद घंटों के लिए जाते हैं और प्लास्टिक कचरा और अन्य सामग्री वहां छोड़ आते हैं। इसी तरह से विकास के नाम पर जिस तरह से कंक्रीट का जंगल विकसित किया जा रहा है उसे भी पर्यावरण की दृष्टि से उचित नहीं माना जा सकता है। हज़ारों की संख्या में प्रतिदिन वाहनों की आवाजाही से प्रदूषण फैल रहा है, वो अलग। इससे क्षेत्र के पर्यावरण में बदलाव आ रहा है। तापमान बढ़ने लगा है।
हालांकि जहां यह स्थानीय कारक हैं वहीं देश-दुनिया में प्रकृति के अत्यधिक दोहन और कार्बन उत्सर्जन का परिणाम भी कहीं न कहीं यहां भी परिलक्षीत हो रहा है। दुनिया के ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे हैं। समुद्र के किनारे स्थित शहरों के डूबने की भविष्यवाणियां आम हो रही हैं। चक्रवाती तूफान और जंगलों में आग सामान्य बात होती जा रही है। जानी नुक्सान हो रहा है और अरबों-खरबों की सम्पत्ति इन तूफानों की भेंट चढ़ जाती है।
हालांकि दुनिया के देश पर्यावरण संकट को लेकर के गंभीर होने लगे हैं। प्रयास भी हो रहे हैं पर परिणाम अभी दिखाई नहीं दे रहे हैं। एक बात साफ हो जानी चाहिए कि प्रकृति से संयोग रहेगा तो विकास होगा और प्रकृति से खिलवाड़ होगा तो हमें परिणाम में विनाश ही मिलना है। ऐसे में नदियों में जल स्तर कम होने को चेतावनी के रुप में देखा जाना चाहिए नहीं तो आने वाली पीढ़ियां हमें कभी माफ नहीं करेंगी। सरकारों को ऐसा सिस्टम विकसित करना होगा जिससे दुष्प्रभाव छोड़ने वाली वस्तुओं पर प्रतिबंध हो। विकास कार्यों में भी पर्यावरण सहयोगी वस्तुओं का ही उपयोग हो ताकि क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखे जा सके। पर्यावरण प्रेमियों को भी इसके लिए आगे आना होगा।
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