सवालों के घेरे में


पंजाब में गत काफी दिनों से एक संगठन द्वारा दर्जन से अधिक टोल प्लाज़ाओं को पर्ची मुक्त रखने के बाद अब नैशनल हाइवे अथारिटी ऑफ इंडिया द्वारा पंजाब तथा हरियाणा हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, इसके संबंध में हाईकोर्ट की पीठ ने पंजाब सरकार को नोटिस भेज कर मामले की स्थिति के संबंध में विवरण सहित रिपोर्ट भेजने का जो निर्देश दिया है, उससे यह ज़रूर स्पष्ट हो गया है कि आज पंजाब में सरकार तथा प्रशासन नाम की कोई चीज़ नहीं है। हालत यह है कि जहां कहीं भी किसी मुद्दे पर आन्दोलन करने वाले लोगों का दिल करता है वे सड़कें  रोक कर बैठ जाते हैं। रेलगाड़ियां रोकने के अल्टीमेटम दिये जाते हैं तथा टोल प्लाज़ाओं को भी पर्ची मुक्त कर दिया जाता है।
महीनों तक ऐसा कुछ निरन्तर घटित होता रहा है। आम लोग बेहद परेशान हो रहे हैं। व्यापार बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। पहले ही मुश्किल से घूमता औद्योगिक पहिया अब  हिचकोले खाने लगा है। जहां कहीं भी देखें दुहाई मची दिखाई देती है परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार तथा प्रशासन यह सब कुछ मूकदर्शक बन कर देख रहा है।  उससे अपने कर्त्तव्यों का पालन नहीं हो रहा। वह गिरते-ढहते पंजाब को बेबसी से देख रहा है। जन-साधारण की बेसब्री बढ़ रही है। सरकार के विरुद्ध लोगों का रोष आसमान छूने लगा है। प्रदेश में शायद ही पहले कभी सरकार की ऐसी बुरी कारगुज़ारी लोगों ने देखी होगी। बात राष्ट्रीय मार्गों की है। केन्द्र सरकार तथा पंजाब सरकार के मध्य हुए एक समझौते के तहत इन राष्ट्रीय मार्गों का निर्माण और देखभाल केन्द्रीय एजैंसी नैशनल हाइवे अथारिटी ऑफ इंडिया (एन.ए.एच.आई.) को दी गई है। इस समय प्रदेश में 2010 में हुए एक समझौते के तहत प्रदेश की अलग-अलग राष्ट्रीय सड़कों पर 34 टोल प्लाज़ा चल रहे हैं, क्योंकि केन्द्रीय हाइवे अथारिटी ने संबंधित सड़कों के निर्माण और देखभाल का कामकाज़ निजी कम्पनियों को दिया हुआ है। पिछले साल 15 दिसम्बर से प्रदर्शनकारियों ने ये टोल प्लाज़ा बंद भाव पर्ची मुक्त कर दिये थे। प्रदेश के 6 ज़िलों में 13 टोल प्लाज़ाओं को बंद करने से अब तक केन्द्रीय एजैंसी तथा निजी कम्पनियों  को 28 करोड़ का घाटा पड़ चुका है। इनमें एक टोल प्लाज़ा तो ऐसा है जहां पिछले दो महीनों से प्रदर्शनकारियों ने स्वयं वसूली करनी शुरू की हुई है। इस संबंधी संबंधित कम्पनियों ने इन ज़िलों के ज़िलाधीशों तथा पुलिस प्रमुखों को लगातार लिखित शिकायतें भेजी हैं। यह भी लिखा है कि उनके करिन्दों तथा कम्पनी की सम्पत्ति का इस समय में भारी नुकसान किया गया है। परन्तु लगातार ऐसा घटित होने के बावजूद प्रशासन टस से मस नहीं हुआ। सरकार यह सब कुछ देखते हुए कबूतर की भांति आंखें मूंद कर बैठी हुई है। 
अंतत: पंजाब सरकार की बुरी तरह असफलता को देखते हुए अब केन्द्रीय हाइवे अथारिटी ने उच्च अदालत में गुहार लगाई है। इसके बाद भी सरकार टस से मस नहीं हुई। यहां यह देखना भी ज़रूरी होगा कि पिछले वर्ष किसान आन्दोलन के दौरान पंजाब भर के टोल प्लाज़ा 440 दिनों तक बंद रहे थे। इसका केन्द्रीय हाइवे अथारिटी को 1400 करोड़ के लगभग नुकसान हुआ था तथा इस कार्य में लगे हज़ारों ही युवा बेरोज़गार हो गए थे। उच्च अदालत द्वारा पंजाब सरकार को नोटिस जारी करके इस स्थिति के संबंध में जिस रिपोर्ट की मांग की गई है, उसके संबंध में सरकार क्या उत्तर देगी, यह तो देखने वाली बात है परन्तु जहां तक प्रदेश सरकार की अपनी देख-रेख में चल रही सड़कों की स्थिति है, वह भी ज्यादातर स्थानों पर दयनीय ही दिखाई देती है। इन पर पड़े गड्ढों का तथा दयनीय स्थिति का सरकार के पास कोई उत्तर नहीं है। वह तो फटे कपड़ों की भांति सिलाई करने के योग्य भी नहीं रहीं। बात केवल सड़कों की ही नहीं, अपितु पिछले 10 महीनों में अनेक स्थानों पर जो अलग-अलग विकास प्रोजैक्टों के नींव पत्थर रखे गए हैं, ज्यादातर स्थानों पर उनके काम भी शुरू नहीं हो सके। सरकार की वित्तीय हालत यह है कि कुछ महीनों की अवधि के दौरान ही उसे 30 हज़ार करोड़ से अधिक का और ऋण उठाना पड़ा है, जिसे वापिस करने संबंधी आगामी लम्बी अवधि तक सोचा भी नहीं जा सकता। यदि ऐसे हालात बने रहे तो आने वाले समय में सरकार को ब्याज देने के भी लाले पड़ जाएंगे। नि:सन्देह सरकार की ऐसी घटिया कारगुज़ारी ने आज आम लोगों में भी बड़ा रोष पैदा किया है। अभी तो सरकार को बने एक वर्ष भी नहीं हुआ, परन्तु प्रदेश के भविष्य को लेकर लोगों में चिन्ता बढ़ने लगी है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द