हर इमारत में दरारें हैं, हर चेहरे पर उदासी है

 

तापमान शून्य से नीचे पहुंच चुका है। जाड़ा अपने चरम पर है। मुसीबतों का पहाड़ टूटने के लिए इससे बुरा समय नहीं हो सकता था। इस दांत कड़कड़ाती ठंड में लोग अपनी आंखों के सामने अपने घर, अपने जीवन व अपने सपनों को टूटता हुआ देख रहे हैं। हर इमारत में दरारें हैं, हर चेहरे पर उदासी है। बद्रीनाथ, औली व फूलों की घाटी का द्वार जोशीमठ धंस रहा है, जमींदोज होता जा रहा है। आपातस्थिति में राहत व बचाव आप्रेशन के लिए केंद्र की भेजी एनडीआरएफ  टीम आ चुकी है और राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (एसडीआरएफ) की चार टीमें पहले से ही मौजूद हैं। जोशीमठ के प्रभावित लोगों को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट करना पीएमओ की प्राथमिकता है। आर्थिक व तकनीकी मदद देने के अतिरिक्त अत्यधिक क्षतिग्रस्त मकानों को गिराने की भी योजना है। लेकिन अपना घर व कारोबार छोड़ने के लिए मजबूर लोगों के चेहरों पर डर व अनिश्चित भविष्य के प्रश्न हैं। विस्थापन का दर्द वही लोग समझ सकते हैं, जिन्होंने कभी अपनी जड़ों से उजड़ने का अनुभव किया हो। 
जोशीमठ के सुनील क्षेत्र में 53 वर्षीय दुर्गा प्रसाद सकलानी अपने घर के बाहर खड़े हुए थे। यह दोहराने की ज़रूरत नहीं कि वह चिंतित थे। उन्होंने आठ माह पहले ही अपना घर बनवाया था, जिसमें अब बड़ी-बड़ी दरारें पड़ चुकी हैं। छत को गिरने से बचाने के लिए उन्होंने लकड़ी की बल्लियों का सहारा दिया है, जोकि पर्याप्त नहीं है। उनका मकान किसी भी समय गिर सकता है। इसलिए 15-सदस्यों के उनके परिवार को मकान खाली करने और पास के होटल में शिफ्ट होने का आदेश दिया गया है। लेकिन सकलानी का सवाल है, ‘हम वहां कितने समय तक ठहर सकते हैं? हम दिनभर बाहर सड़कों पर रहते हैं और कड़कड़ाती ठंड से बचने के रात में सोने के लिए ही घर के भीतर जाते हैं। नींद भी कहां आती है, हर समय छत गिरने का डर लगा रहता है।’ गौरतलब है कि पुराने मलबे पर बसा जोशीमठ भूकंप-सूचक नक्शे के 5वें जोन में है, यानी मामूली झटके से भी भूस्खलन का खतरा मौजूद है।
इसी प्रकार मनोहरबाग क्षेत्र में चन्द्रबल्लभ पांडे का घर भी पिछले दो सप्ताह से रहने लायक नहीं रहा। मकान का फर्श 6-8 इंच फूल गया है। जमीन के नीचे पानी के रिसने की आवाज को सुना जा सकता है। पूरा मकान दाएं ओर को झुकने लगा है। संयम के बावजूद पांडेजी की आंखों में आंसू छलक ही आये, यह बताते हुए, ‘मैंने 1999 में अपना मकान बनाया था और अब मैं इसे अपनी आंखों के सामने ही गिरता हुआ देख रहा हूं। प्रशासन ने मुझसे तुरंत मकान खाली करने को कहा है और यही बात मुझे खाए जा रही है। मेरा दिल मेरे घर में है और हमेशा रहेगा, भले ही कुछ हो जाये।’
स्थानीय प्रशासन का कहना है कि लगभग 25,000 की आबादी वाले जोशीमठ का तकरीबन 25 प्रतिशत हिस्सा फिलहाल रिहाइश के लायक नहीं बचा है। सरकारी कर्मचारी व वालंटियर्स घर-घर जाकर ‘अनफिट मकानों’ की पहचान करने में लगे हुए हैं। उनका सर्वे पूर्ण होने के बाद ही नुकसान की सही स्थिति की जानकारी मिल सकेगी। एक मंदिर गिर चुका है और शंकराचार्य माधवाश्रम मंदिर में दरारें पड़ चुकी हैं। बहरहाल, गौर करने की बात यह है कि ‘धंसते शहर’ जोशीमठ में यह आपातस्थिति रातभर में नहीं आयी है। 2006 की साइंटिफिक रिपोर्ट में कहा गया था, ‘भूमिगत पानी का रिसाव, नालों द्वारा कटाव और अनेक प्रकार की मानवजनित गतिविधियों ने इस क्षेत्र को इस हद तक कमजोर कर दिया है कि ढलान का एक ब्लाक, जहां कामत, सेमा गांव व जोशीमठ शहर स्थित हैं, वह एक सेमी. प्रति वर्ष से अधिक की दर से धंस रहा है। इस ब्लाक का धंसना इस तथ्य से भी जाहिर है कि मजबूत नींव व सपोर्ट वाले मकानों में भी दरारें पड़ रही हैं।’ इस रिपोर्ट में परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट करने के लिए सिफारिश करते हुए यह भी कहा गया था, ‘रविग्राम वार्ड के कुछ परिवार शिफ्ट कर गये हैं, फिर भी कुछ परिवार शेष हैं, जिन्हें शिफ्ट करने की आवश्यकता है।’ इस वैज्ञानिक सर्वे रिपोर्ट को आये हुए 17-वर्ष बीत गये हैं। अगर इसका मापन सही है तो एक सिमी प्रति वर्ष धंसने की दर के हिसाब से जोशीमठ अब तक लगभग 17 सेमी. धंस चुका है यानी खतरा केवल 25 प्रतिशत जोशीमठ पर नहीं है, बल्कि पूरे जोशीमठ पर मंडरा रहा है। यह अंदेशा इस बात से भी सही प्रतीत होता है कि अब तो जोशीमठ के आर्मी बेस कैंप में भी दरारें दिखायी देने लगी हैं। 
देहरादून स्थित वाडिया इंस्टिच्यूट ऑफ  हिमालयन जियोलॉजी की वैज्ञानिक स्वपनमिता चौधरी जिनकी निगरानी में उक्त वैज्ञानिक रिपोर्ट तैयार की गई थी, ने बताया, ‘दरारों की समीक्षा करते हुए हमने पाया था कि सुनील व रविग्राम जैसे स्थानों पर दरारें अन्य जगहों की तुलना में अधिक तेज़ी से पड़ रही थीं।’ चौधरी की टीम ने एक वर्ष तक ग्राउंड डिस्प्लेसमेंट सर्वे भी किया था, जिसमें पाया गया था कि जमीन, विशेषकर जोशीमठ के रविग्राम वार्ड में, सालाना 80 एमएम नीचे धंस रही थी। यहां यह बताना भी आवश्यक है कि एनटीपीसी हाइड्रोपॉवर प्रोजेक्ट के एक्यूफर फटने के बाद से उस क्षेत्र की कॉलोनी में दरारें अधिक पड़ने लगी हैं। विशेषज्ञों के अनुसार हाइड्रोप्रोजेक्ट कार्यों व हाईवे निर्माण के तकनीकी रेकॉर्डों का अध्ययन करने और जियोफिजिकल व हाइड्रोलॉजिकल जांचें करने के बाद जोशीमठ के धंसने के कारणों की स्पष्ट तस्वीर सामने आ सकेगी और तभी राहत प्रक्रिया के सही सुझाव दिए जा सकेंगे।
इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि दशकों के अनियोजित निर्माण कार्यों और वैज्ञानिक सिफारिशों के उल्लंघन व अनदेखा करने से स्थिति केवल जोशीमठ में ही बद से बदतर नहीं हुई है, बल्कि उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों से ऐसी ही चिंताजनक खबरें मिल रही हैं। मसलन, मसूरी के लैंडोर बाजार की सड़क व इमारतों में भी दरारें पड़ने लगी हैं जो निरंतर चौड़ी होती जा रही हैं, साथ ही जमीन भी धंस रही है, जिससे लोगों व दुकानदारों पर गंभीर खतरा मंडराने लगा है। जोशीमठ से मात्र 40 किमी के फासले पर स्थित प्राचीन गांव हाट (जिला चमोली), जिसे शंकराचार्य की छोटी काशी भी कहते हैं, के निवासी भी डर में हैं कि 1000 वर्ष पुराना उनका गांव भी धंस जायेगा।  -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर