वक्त की मांग (क्रम जोड़ने के लिए पिछला रविवारीय अंक देखें)


एक तरफ  अवंतिका के गर्दन का दर्द, दूसरी तरफ  पूरे सप्ताह का पेंडिंग काम, घर की साफ -सफाई और उस पर बुआ जी का यूं अचानक आना, अवंतिका समझ ही नहीं पा रही थी कि वह एक साथ सब कैसे संभाल पाएगी। तभी अवंतिका अपने काम की गति में तेज़ी लाते हुए अखिलेश से बोली-
‘बुआ जी की ट्रेन कब तक आ रही है और तुम उन्हें स्टेशन लेने जा रहे हो ना?’
‘नहीं बुआ जी ने कहा वह स्वयं आ जाएंगी उनके पास घर का पता है।’ अखिलेश ने सपाट सा जवाब दिया दरअसल वह आज छुट्टी के दिन आराम से देर तक सोना चाहता था लेकिन ऐसा हो न सका। दोनों बच्चे भी बुआ जी के आगमन का समाचार सुन फौरन बिस्तर छोड़कर स्वयं को व्यवस्थित करने में लग गए और अवंतिका नाश्ता और खाना बनाने के साथ ही साथ दूसरे काम को भी अंजाम देने लगी, वैसे भी महिलाएं एक साथ घर के कई कामों को बड़ी ही खूबी से करने में माहिर होती है, फिर चाहे अत्यधिक काम उनकी सेहत पर ही क्यों न बन आए।
नाश्ता तैयार होने तक बुआ जी भी घर आ पहुंची। अवंतिका अपने गर्दन के दर्द को नजरंदाज कर बुआ जी की आवभगत में लग गई। वह भाग-भाग कर सारे काम बिना रुके कर रही थी। अखिलेश और बच्चे बुआ जी के संग बैठ अपने पसंदीदा नाश्ता, चाय और फिर खाने के बाद गपशप में लगे रहे, तभी अचानक बुआ जी की नज़र चाय से भरे उस कप पर पड़ी जो सुबह अवंतिका हड़बड़ी में पीना और वहां से हटाना भूल गई थी। यह देख बुआ जी अखिलेश से बोली-
‘यह चाय से भरा कप अब तक यहां क्यों रखा हुआ है।’ (क्रमश:)
अखिलेश, अवंतिका को आवाज़ लगा ही रहा था कि अवंतिका वहां आ गई और जल्दी से वह कप उठाने लगी। यह देख बुआ जी ने अवंतिका को कप उठाने से रोक दिया और बंटी से बोली- ‘यह कप उठाओ और साफ  करके उसकी जगह पर रखो।’
अखिलेश और अवंतिका हैरानी से बुआ जी की ओर देखने लगे तो बुआ जी ने मुस्कुराते हुए अवंतिका का हाथ पकड़ उसे अपने करीब बैठा लिया और फिर टीना से बोली-
‘टीना मेरे लिए कैब बुक करो, मेरी ट्रेन का समय हो रहा है’ फिर अखिलेश से बोली-‘जरा तुम सभी के लिए चाय तो बना लाओ।’ बंटी से कप उठवाना, उसे कप साफ  करके जगह पर रखने को कहना, टीना से कैब बुक कराना यहां तक तो ठीक था लेकिन अखिलेश से यूं चाय बनाने को कहना अवंतिका को कुछ समझ नहीं आ रहा था। वह बुआ जी के इस बर्ताव से बेहद हैरान थी।
कुछ ही देर में अखिलेश भी चाय बनाकर ले आया। अवंतिका और अखिलेश को इस तरह हैरान और परेशान देख बुआ जी चाय का कप हाथों में लेती हुई बोली-
‘इतनी हैरानी किस बात की है मैं पुराने जमाने की जरूर हूं लेकिन मेरे विचार नहीं। मैं जब से यहां आई हूं देख रही हूं अवंतिका तुम काम ही कर रही हो, बार-बार तुम्हारा अपनी गर्दन पर हाथ रखना और यह पैन रिलिफ  स्प्रे, इस बात की पुष्टि करता है कि तुम्हारे गर्दन में दर्द है। उसके बावजूद ये सभी आराम से बैठे हैं। अब वो जमाना नहीं रहा जब औरतें घर की चार दीवारों में रहकर केवल घर संभाला करती थीं। आज औरतें घर से बाहर निकल कर पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है लेकिन उसके बावजूद घर का सारा काम केवल औरतों के ही हिस्से में आता है ऐसा क्यों...? पुरुष क्यों नहीं कर सकते? घर के बाकी सदस्य क्यों नहीं कर सकते? आराम करने की हकदार तो औरतें भी होती हैं, उन्हें भी अपना दिन अपने हिसाब से जीने का अधिकार है, लेकिन यह सब तभी संभव है जब हम अपने घरों में ऐसा माहौल बनाएंगे जहां घर के सभी सदस्य मिलजुल कर घर का काम करेंगे और यही वक्त की मांग भी है।’
बुआ जी की सार्थक बातों के समाप्त होते-होते उनका कैब भी आ गया। बुआ जी को जब अवंतिका घर से बाहर तक छोड़कर अंदर आई तो उसने देखा। बंटी चाय के कप उठा रहा है, टीना सोफा व्यवस्थित कर रही है और अखिलेश अवंतिका के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला-‘आज डिनर बनाने की जिम्मेदारी मेरी।’ (सुमन सागर)  (समाप्त)
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