बदलते दौर के मुताबिक बदल रहे हैं मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट्स के पाठ्यक्रम

 

समाज के लिए ही नहीं बल्कि बिजनेस के लिए भी पिछले तीन चार वर्ष बहुत चुनौतीपूर्ण रहे हैं। दुनिया कोविड महामारी से उबर ही रही थी कि भू-राजनीतिक तनावों ने नये खतरे व अनिश्चितताएं उत्पन्न कर दीं। इस समय संसार वास्तव में वूका (वीयूसीए) हो गया है यानी वोलेटाइल (परिवर्तनशील), अनसरटेन (अनिश्चित), कॉम्प्लेक्स (जटिल) व एम्बिगुअस (अस्पष्ट)। इसमें व्यापार का लचीला व अनुकूल होना आवश्यक है। अब हाल ही में यह चिंताजनक खबर आयी है कि चीन व दुनिया के अन्य हिस्सों में कोविड एक बार फिर जंगल की आग की तरह फैल रहा है।
इस पृष्ठभूमि में मैनेजमेंट स्कूलों को अपना पाठयक्रम व अकादमिक प्रक्रियाओं को नई दिशा देनी होगी ताकि तेजी से विकसित हो रहे संदर्भों को संबोधित किया जा सके। एक अति आवश्यक महत्वपूर्ण परिवर्तन यह लाया जाये कि ऐसे प्रबंधक या मैनेजर विकसित किये जायें, जिनके पास डिजिटल माध्यमों को प्रयोग करने की उच्चस्तरीय क्षमता हो। इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं है कि सम्मानित मैनेजमेंट इंस्टीच्यूट के पास ऐसे पाठयक्रम हैं, जो डिजिटल टूल्स, प्रक्त्रियाओं और सभी फंक्शनल क्षेत्रों में आ रहे बदलावों को संबोधित कर रहे हैं। साइबर सिक्यूरिटी, निजता व रेगुलेशन से भी डिजिटल योग्यता व क्षमता जुड़ी हुई है। इसलिए सभी मैनेजमेंट इंस्टीच्यूटमें धीरे धीरे इस किस्म के पाठ्यक्रमों में वृद्धि होगी। एमबीए करने वाले छात्रों को यह बात भी ध्यान में रखनी चाहिए कि उनके करियर में जबरदस्त उतार-चढ़ाव आयेगा। दार्शनिक हेराक्लिट्स ने एक बार कहा था, ‘परिवर्तन ही एकमात्र ऐसी चीज है जो स्थिर रहती है।’ लेकिन परिवर्तन की गति और उसके फलस्वरूप अनिश्चितता युवा प्रबंधकों को विचलित कर सकती है। 
जो पाठयक्रम आत्म-जागृति, लचीलापन और मानसिक विकास ऑफर करते हैं, वे मैनेजमेंट इंस्टीच्यूट में अधिक पसंद किये जायेंगे। इन पर फोकस अधिक होगा क्योंकि कल के संसार में नाकामी का भी महत्व होगा। उसे सीखने का अवसर समझा जायेगा। पहली नजर में ऐसा प्रतीत होगा, जैसे कोविड महामारी व भू-राजनीतिक तनाव ने भूमंडलीकरण के सिलसिले पर विराम लगा दिया है। लेकिन तथ्य यह है कि ग्लोबल सप्लाई चेन को नये सिरे से तैयार करने की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है। नये व्यापार गठबंधन बन रहे हैं, सप्लाई चेन पुन: डिजाइन की जा रही हैं ताकि अवरोधों को हटाया जा सके और रुकावटों के दौरान भी व्यापार को जारी रखा जा सके। जो छात्र एमबीए प्रोग्राम कर रहे हैं, उन्हें इन नये गठबंधनों और सप्लाई चेन को समझना होगा; क्योंकि इन्हें समझे बिना काम करना कठिन हो जायेगा। 
जिन देशों के बीच व्यापार संबंध गहरे होंगे उनमें छात्रों के आदान-प्रदान और विजिट कार्यक्रम तेज व अधिक होंगे। मसलन, इस समय हम भारत व फ्रांस के मैनेजमेंट इंस्टीच्यूटके बीच छात्रों के आदान-प्रदान में वृद्धि देख रहे हैं। जो पाठयक्रम इस नई दिशा व नये ट्रेंड्स पर आधारित होंगे वह ही ग्लोबल डायनामिक्स की समझ में इजाफा कर सकेंगे। इसलिए एमबीए करने के इच्छुक छात्रों को चाहिए कि वह उन मैनेजमेंट इंस्टीच्यूटको प्राथमिकता दें, जिनमें बदलते ग्लोबल ट्रेंड्स को मद्देनजर रखते हुए पाठ्यक्रम पर बल दिया जा रहा हो। व्यापार के क्षेत्र में जो जबरदस्त परिवर्तन आ रहे हैं, उनकी वजह से समुद्र से अधिक डाटा जनरेट हो गया है और उसमें निरंतर वृद्धि हो रही है। इसलिए संसार की जो सबसे शक्तिशाली कम्पनियां हैं, उनका फोकल प्वाइंट पहले से ही एनालिटिक्स, डाटा साइंस व एआई (आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस) हो गया है। बहरहाल, प्रोग्रामिंग लैंग्वेजिस, मॉडलिंग और एनालिसिस जैसे टीचिंग टूल्स के अतिरिक्त जरुरत ऐसे पाठ्यक्रमों की भी है, जो एमबीए करने वाले छात्रों को क्त्रिटिकल थिंकर बनाने की दिशा में ले जा सकें, तभी वह उचित व सही प्रश्न कर सकेंगे और थ्योरी को डाटा से लिंक कर पायेंगे।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर