नाचने और गाने वाले कलाकार हमारे कुछ पक्षी

 

जब भी कोई जीव-जंतु, पशु-पक्षी खुशी की अवस्था में होते हैं, तो अपनी खुशी का इजहार वह नाचने व गाने की कला द्वारा करते हैं। सिर्फ पंक्षियों की बात करें तो हमारी धरती पर रहने वाले पक्षियों में नाचने गाने की कला कमाल की होती है। इस लेख की शुरूआत नाचने की कला के सिरमोर पक्षी ‘मोर’ से करेंगे। सावन के मौसम में जब बादल गरज़ते हैं और बौछार होती है, तो खुशी में मोर गाते व नाचते हैं। अपने नाच में यह पक्षी अपनी पूंछ के सुंदर पंख पंखे की तरह लहराता है और घूम-घूम कर नाचते हैं, जो कई घंटे चलता रहता है और उसकी मादा पक्षी मोरनी भी इस नाच लीला में उसके साथ घुमती है और देखने वाले को यह मंज़र ऐसा लगता है जैसे पूरी कायनात उसके साथ घुमती हो। मोर के नाच में चाहे उसका उद्देश्य अपनी मादा पक्षी मोरनी को अपने प्रति मोहित करना होता है, तो वह अपने इस उद्देश्य से भी कहीं आगे निकल जाता है। कहा जाता है कि इस प्रक्रिया में मोर की आंखों में आंसू आ जाते हैं जो उसकी मादा पक्षी पी जाती है, जिसके साथ उसमें गर्भ उसी दिन से शुरू हो जाता है। यहां मैं यह भी बताना चाहता हूं कि इस विषय के विज्ञानी मोरनी द्वारा मोर के आंसू पीने की प्रक्रिया को उसके गर्भ का आधार नहीं मानते। यह नाच लीला कभी-कभी उस जंगल के अन्य नर मोरों के लिए असहनीय होकर गुजरती है जो अक्सर लड़ाई का सबब बन जाती है। युद्ध अवस्था के शुरू में हमलावर मोर अपने विरोधी पक्षी की गर्दन के साथ अपनी गर्दन बार-बार रगड़ते है और युद्ध के लिए ललकारते है और उसके बाद घमासान युद्ध। मोर के मस्त नाच की, मोरनी के द्वारा आंसू पीने की क्रिया की, दो नर मोरों के बीच एक मोरनी के लिए घमासान युद्ध की और एक दूसरे को ललकारने की तस्वीरों का एक सैट मैंने अपने इस लेख में शामिल कर दिया है, क्योंकि यह तस्वीरें मेरे पाठकों को ओर कहीं नहीं मिलेगी। यह तस्वीरें मैंने राजस्थान के एक पहाड़ी जंगल में एक ही स्थान पर खड़े होकर पांच मिनट से भी कम समय में खिंची थी।
लगभग प्रत्येक पक्षी में चाहे थोड़ी बहुत नाचने गाने की कला जरूर होती है जो उसकी प्रजाती विशेष की आगामी सृजना का कारण बनती है। मोर के बाद कलाकार पक्षियों की दूसरी सूची में ‘बिजड़े’ का नम्बर आता है, जो नाचने व गाने की कला के साथ-साथ अति सुंदर घर ‘घोंसला’ बनाने का भी कारीगर है। बहुत सारे नर बिजड़े इकट्ठे होकर एक कालोनी के रूप में अपना-अपना पहले सुंदर घर बनाते हैं, घर तैयार हो जाने के बाद नर पक्षी अपने घोंसले पर बैठकर खूब नाचते हैं और लम्बी-लम्बी सीटी मारते हैं, जो आस-पास घुमती मादा पक्षियों को उसके घर आ जाने का इशारा होता है और उसके साथ रहने का निमंत्रण होता है। इसी प्रकार तीतर व बटेर गाने की कला से संबंधित पक्षी है। तीतर सुबह और शाम को दिन छुपने के साथ अपने घोंसले में बैठकर ऊंची आवाज़ में गाते हैं, जो दूर-दूर तक सूनी जा सकती है। इसी प्रकार बटेर अपनी ‘पिट-पिट’ के सुरों में गाने का माहिर पक्षी है। अपने पंजाब में बटेर एक प्रवासी पक्षी है और गेहूं की फसल पकने के मौसम में काफिलों में आते है जो अब बहुत कम आते हैं। गाने की कला में बटेर पूरी दुनिया का चहेता पक्षी है। प्रत्येक दिन मिलने वाले हमारे पक्षियों में कबूतर नाचने और गाने दोनों कलाओं के साथ नवाज़ा हुआ पक्षी है। चक्करी की तरह घूम-घूम कर मस्ती भरा नाच करता है और साथ गुटरगूं-गुटरगूं का राग भी अलापता है। कबूतर का नाच-गाना प्राचीन काल से रजवाड़ों और शाही परिवारों का मनोरंजन बन कर रहा है, जिसके कारण इस पक्षी का पालतु रूप भी है जो आम तौर पर सफेद व चीने रंग का होता है। उड़ने की कला में भी यह पक्षी माहिर और इस कला के मुकाबले होता है व शर्तें लगतीं हैं। इसी प्रकार हमारे घरों के आसपास रहने वाली घुग्गी/घुग्गू घुग्गूघूं-घुग्गूघूं जब गाना शुरू करती है तो गाती रहती है। पिछले जमाने में लोग जब बाहर अपने घरों की छत्तों पर या खुले आसमान के नीचे आंगन में सोया करते थे, तो प्रात:काल चेपू के गाने की, बुलबुल के बोलने की, मुर्गों की बांगों की आवाज़ें, उनके कानों में हर सुबह शहद घोलने का काम करती थीं। इसी कड़ी में पिद्दी प्रजाति की चिड़ियों को शामिल करना भी जरूरी है। टेलर पक्षी नाम की पिद्दी जब गाती है, तो इतनी ऊंची आवाज़ में इतने लम्बे समय तक गाती रहती है कि यकीन नहीं आता कि यह छोटा सा इंसान के हाथ के अंगूठे जितना पक्षी, इतनी भारी आवाज़ कहां से निकालता है। बिरहे की हूकें मारने वाला पक्षी ‘बबीहा’ गाने की कला में सुलतान माना गया है, जिसकी उस्तत का गुरबाणी में भी वर्णन है।
पक्षी जगत में सुर और सुंदरता का गुण इंसान के लिए भी विशेष आकर्षण रखता है, जो इन पक्षियों के लिए खतनाक और घातक सिद्ध होता है। सुंदरता अपने आप में एक श्राप भी होती है। इन कलाकारों और सुंदर रंग रूप वाले पक्षियों पर साधारण पक्षी से ज्यादा खतरे बन-बन के आते हैं। जितनी ज्यादा सुंदरता उतने ही ज्यादा खतरे। पक्षियों को ही नहीं इंसान वर्ग में भी खतरे का यही पैमाना है। इतिहास गवाह है कि सुंदर महिलाओं और लड़कियों को सिर्फ और सिर्फ उनकी अपनी सुंदरता और हुसन के कारण कहीं ज्यादा खिंचतान, उलझनें, कठिनाइयों और खतरों में से गुजरना पड़ा, जहां कि उनका अपना हुसन ही उनका दुश्मन हो जाता है। सुंदर और कलाकार पक्षियों को लोग पिंजरे में कैद करके अपने घरों में ले जाते हैं। बिजड़े के सुंदर घर को लोग टाहने से काटकर ले जाते हैं और अपने घरों की सुंदरता के तौर पर प्रयोग करते हैं। मोरों के सुंदर पंख बाज़ारों में बिकते है, जिसके कारण मोर का चोरी छिपे शिकार का रूज़ान इतना बढ़ गया है कि मोर की प्रजाति का विलुप्त होने का खतरा बन चुका है। मोर की भारी और लम्बी पूंछ उसकी अपनी सुरक्षा के लिए भी भारी मुश्किलें पैदा करती है और जंगली कुत्ते उसको उड़ने से पहले ही दबोच लेते है। सुंदर चिड़िया जंगल से पकड़कर चिड़िमार अपनी रोज़ी रोटी कमाते हैं। सुंदर आवाज़ वाले बटेर को एक और छोटे से पिजरे की दुनिया में कैदी बन कर पूरी ऊमर तोरी की तरह लटकना पड़ता है। तितर के गाने की कला उसके नाश का कारण बन जाती है, जब उसके गाने की आवाज़ें उसके शिकारियों को सुन जाती है। खुबसूरत तोते को पिंजरे में उम्रकैद की सज़ा सिर्फ इसी कारण मिलती है क्योंकि प्रकृति ने उसको सुंदर रंग रूप दिया है और दोबारा कभी भी खुली हवाओं की उड़ान उस गरीब को नसीब नहीं होती।
क्या आपने कभी कोयल को गाते सुना है? मीठे बोलों के प्रतीक इस पक्षी को पंजाबियों ने पहाड़ जितना सम्मान दे दिया जब पंजाब की प्रसिद्ध गायिका, पंजाबियों की जान और पंजाबी गायकी की शान सुरिंदर कौर को पंजाब की कोयल कहकर सम्मान दिया गया। इस लेख में कोयल के मीठे बोलों की प्रशंसा को मेरे द्वारा सुरों की मल्लिका स्व. लता मंगेशकर प्रति एक श्रद्धांजलि के तौर पर पड़ा जाये।
गांव थमणवाल।
मो-98722-56005