नादिरा जिन्हें गरीबी ने अदाकारा बना दिया 

 

मुम्बई में नादिरा के पड़ोस में एक सहायक निर्देशक की शादी थी। उनका परिवार भी आमंत्रित था। फिल्मी दुनिया से काफी लोग आए हुए थे। सबने नादिरा को देखा, तो एक ही सवाल था, ‘यह लड़की कौन है?’ हर कोई उन्हें अपनी फिल्म में लेना चाहता था। लेकिन उनका यहूदी परिवार अति धार्मिक होने के नाते फिल्मों के बहुत खिलाफ था। नादिरा की मां को गुस्सा आ गया, ‘नहीं, नहीं, बिल्कुल नहीं। मेरी लड़की फिल्मों में काम नहीं करेगी। यह सम्मानित काम नहीं है। कोई यहूदी लड़का उससे शादी नहीं करेगा। वह यहूदी धर्मस्थल में भी प्रवेश नहीं कर सकेगी।‘ इस पर नादिरा का जवाब था, ‘मम्मी, खुदा के वास्ते आप मेरी शादी की चिंता छोड़ दें। फिलहाल हमारी चिंता यह होनी चाहिए कि हमारा अगला भोजन कहां से आयेगा?’
नादिरा की मां रॉयल एयर फोर्स में काम करती थीं। दूसरा विश्व युद्ध समाप्त हुआ तो उनकी मां की नौकरी भी खत्म हो गई। दोनों मां बेटी अकेली मुंबई में रहती थीं। नादिरा डॉक्टर बनना चाहती थीं, लेकिन मां की बेरोजगारी के कारण फीस के पैसे तो बहुत दूर, खाने के लिए भी पैसे नहीं थे। ऐसे में फिल्म ‘आन’ (1952) में काम करने का ऑफर आया। यह कितना शानदार आफर था, उस समय नादिरा को मालूम नहीं था; क्योंकि उन्हें मालूम ही नहीं था कि महबूब खान, दिलीप कुमार, नौशाद, निम्मी या प्रेमनाथ कौन थे, उन्हें तो बस इस बात की फिक्त्र थी कि फिल्म में काम करने से पैसा मिलेगा, घर का चूल्हा जल जायेगा।
फिल्म के रिलीज होने से पहले महबूब नादिरा को किसी के सामने लाना नहीं चाहते थे, खासकर पत्रकारों के सामने। एक दिन नादिरा ने महबूब से कहा, ‘अगर कोई प्रेस से आ गया और मुझसे मालूम किया कि मैं एक्टिंग के बारे में क्या जानती हूं तो मैं क्या कहूंगी?‘ महबूब ने अपने माथे पर हाथ मारा और झुंझलाकर कहा, ‘मेरी मां, मुझे पहले निर्देशन के बारे में सीखने दो, फिर मैं तुम्हें एक्टिंग के बारे में बताऊंगा। लेकिन मैं एक्टिंग के बारे में इतना बता सकता हूं कि यह तो दरिया है, इसमें जितना जाओगी उतना पाओगी।’
एक्टिंग के बारे में नादिरा का यह पहला और आखिरी सबक था। इससे प्रेरित होकर नादिरा ने अभिनय की किन बुलंदियों को छुआ, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब वह फिल्म ‘पाकीजा’ (1972) में काम कर रही थीं तो एक सीन में वह हाथ का पंखा लिए बैठी हैं और मीना कुमारी गाने से इंकार कर रही हैं। इस सीन को नादिरा ने इस खूबी से किया कि कमाल अमरोही जो तारीफ करने में बहुत कंजूसी से काम लेते थे, के मुंह से भी ‘वाह’ निकल गया। नादिरा इसे अपने अभिनय की सबसे बड़ी तारीफ मानती थीं, हालांकि फिल्म ‘जूली’ (1975) के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का फिल्म फेयर अवार्ड मिला था। 
नादिरा का जन्म 5 दिसम्बर 1932 को बगदादी यहूदी परिवार में फ्लोरेंस एजेकिल (कुछ के अनुसार फरहत या फरहाद एजेकिल) के रूप में हुआ था। नादिरा ने दो बार शादी की। पहले उर्दू शायर नक्शब से और फिर एक ऐसे व्यक्ति से जिसे वह सार्वजनिक तौरपर पैसे का लालची कहती थीं, जिसकी दिलचस्पी सिर्फ उनके पैसे में थी। यह दूसरी शादी सिर्फ एक सप्ताह चली। नादिरा रोल्स रोयस रखनी वाली पहली भारतीय अभिनेत्रियों में से थीं, जिससे मालूम होता है कि वह फिल्मों से अच्छा पैसा कमाती थीं, लेकिन अपने जीवन के अंतिम तीन वर्षों में वह अपने कंडोमिनियम में रहने के लिए मजबूर थीं, केवल अपनी हाउसकीपर के साथ क्योंकि उनका सारा परिवार इजराइल चला गया था। उनका एक भाई इजराइल में रहता है और दूसरा भाई अमेरिका में। लम्बी बीमारी के बाद नादिरा का भाटिया अस्पताल, ताड़देव, मुंबई में 9 फरवरी 2006 को निधन हो गया। वह 73 वर्ष की थीं। 
नादिरा अपने समय से बहुत आगे की महिला थीं- वह सच्ची, बोल्ड और सुंदर थीं। आज जो महिला बनने की कोशिश करती हैं, नादिरा अब से 50 साल पहले थीं, स्वतंत्र व आधुनिक। जिस जमाने में हीरोइन सीधी सादी ‘पतिव्रता’ बनने की भूमिका ही करना चाहती थीं, नादिरा ने वैम्प के रोल किये और जबरदस्त व प्रभावी किये। ‘श्री 420’ (1955) का चर्चित गाना ‘मुड़ मुड़ के न देख’ मूल पटकथा में नहीं था। शूटिंग के दौरान एक घंटे का लंच ब्रेक था। म्यूजिक रूम में नर्गिस बैठी हुई थीं और ऋतु (राज कपूर की बेटी) पियानो बजा रही थीं। कमरे में घुसते ही नादिरा नाचने लगीं, जिसे देखकर नर्गिस ने जयकिशन व राज कपूर को सुझाव दिया कि नादिरा को फिल्म में कैबरे डांसर बना दो और उन पर ‘मुड़ मुड़ के’ फिल्माया जाये। इस फिल्म की सफलता से नादिरा को बहुत प्रशंसा मिली, लेकिन उनके सामने सिर्फ वैम्प के ही रोल आने लगे। उन्हें 70 के दशक में ही चरित्र भूमिकाएं मिलनी शुरू हुईं। 
नादिरा एक ऐसी महिला थीं जिन्होंने बॉलीवुड में सितारों के व्यवहार के बहुत से नियमों को फिर से लिखा। एक बार एक निर्माता उनके पास लिखित करार के साथ उन्हें अपनी फिल्म में साईन कराने के लिए पहुंचा। नादिरा ने करार को हिकारत की दृष्टि से देखा और उसे निर्माता के मुंह पर फेंकते हुए कहा, ‘मैंने महबूब खान व राज कपूर जैसी हस्तियों के साथ काम किया है, उन्होंने कभी मुझसे करार पर दस्तखत नहीं कराए।’ नादिरा स्वभाव से अकेली थीं, लेकिन अकेलेपन का शिकार नहीं थीं। वह जिससे मिलती थीं वह उनका हमेशा के लिए दोस्त हो जाता था। निम्मी, अली रजा, शम्मी, अमिन सायानी, महेश भट्ट, मिलिंद सोमन आदि उनके दोस्त थे। वह बहुत बड़े दिल की मलिका थीं। उनके पति नक्शब उन्हें छोड़कर पाकिस्तान चले गए और वहां जाकर उन्होंने शादी कर ली, फिर भी नादिरा ने उन्हें माफ कर दिया।
नादिरा जब गुलजार की एक कहानी पर ‘किरदार’ सीरियल कर रही थीं तो एक शॉट सही नहीं हो पा रहा था। नादिरा गुलजार की तरफ  मुड़ीं और बोलीं, ‘आपको पता कैसे चला कि मैंने आपको मुझे डांट देने की इजाजत दे दी?’ गुलजार कहते हैं कि इतनी प्यारी लाइन उन्होंने आज तक नहीं सुनी और वह इसे कभी नहीं भूल पायेंगे। कोई छोटा व्यक्ति इतनी बड़ी बात नहीं कह सकता। इसलिए आज भी गुलजार इस जुमले को याद करते हैं तो उनकी आंखों में आंसू आ जाते हैं। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर