हैदराबाद का सालारजंग संग्रहालय   पंजाब के शहीदों को मिला विशेष सम्मान 

 

सालारजंग संग्रहालय तेलंगाना राज्य की राजधानी हैदराबाद शहर में मूसा नदी के दक्षिणी तट पर दार-उल-शिफा में स्थित एक कला संग्रहालय है। यह भारत के तीन राष्ट्रीय संग्रहालयों में से एक है। यह हैदराबाद शहर के पुराने शहर जैसे चारमीनार, मक्का मस्जिद आदि महत्वपूर्ण स्मारकों के करीब है।
मीर यूसुफ अली खान, सालारजंग तृतीय एक महान व्यक्ति थे, जिन्होंने सातवें निज़ाम मीर उस्मान अली खान के शासन के दौरान हैदराबाद प्रांत के प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया था। जबकि उन्हें सालारजंग की उपाधि 10 वर्ष की आयु में दे दी गई थी, के परिवार द्वारा कला और साहित्य संग्रह सहित अन्य दुर्लभ वस्तुओं को बचाकर रखने के लिए 16 दिसम्बर, 1951 को सालारजंग के घर दीवान ड्योढ़ी में उनके संग्रहण को संग्रहालय के रूप में घोषित कर दिया गया और इसे तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा जनता के लिए खोल दिया गया। जबकि बाद में भारत सरकार ने नवाब के परिवार के सदस्यों की सहमति से औपचारिक रूप से समझौता करते हुए संग्रहालय को अपने अधीन ले लिया और यह संग्रहालय वैज्ञानिक अनुसंधान और सांस्कृतिक मामले मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा शासित किया गया। अंतत: 1961 में ‘संसद अधिनियम’ के माध्यम से सालारजंग संग्रहालय और इसके पुस्तकालय को ‘राष्ट्रीय महत्व का संस्थान’ घोषित कर दिया गया।
इस संग्रहालय को इसके वर्तमान भवन में वर्ष 1968 में स्थानांतरित किया गया और इसका उद्घाटन भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. ज़ाकिर हुसैन द्वारा किया गया था। इस संग्रहालय के प्रशासन को एक स्वायत्त बोर्ड को सौंप दिया गया, जिसका अध्यक्ष आंध्र प्रदेश के राज्यपाल को बनाया गया था और बाद में आंध्र प्रदेश राज्य के विभाजन के बाद तेलंगाना के राज्यपाल इस संग्रहालय के अध्यक्ष हैं।
प्राप्त विवरण के अनुसार सालारजंग संग्रहालय में संग्रहित वस्तुएं पूर्वकालिक मानव परिवेश का जीता- जागता आइना हैं, जो ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी से आज की 20वीं शताब्दी तक की हैं। इस संग्रहालय की संग्रहित वस्तुओं में लगभग 46 हज़ार वस्तुएं, 8 हज़ार पांडुलिपियां और 60 हज़ार से अधिक मुद्रित पुस्तकें शामिल हैं। यह संग्रह भारतीय कला, मध्य पूर्वी कला, फारसी कला, नेपाली कला, जापानी कला, चीनी कला और पश्चिमी कलाओं में बांटा गया है। इसके अलावा, प्रतिष्ठित सालारजंग परिवार के नाम पर एक विशेष गैलरी- ‘संस्थापक गैलरी’ भी समर्पित है। डिस्प्ले में प्रदर्शित वस्तुओं को 38 से अधिक गैलरियों में बांटा गया है।
भारतीय कला संग्रह में लघु चित्र, आधुनिक चित्र, कांस्य, वस्त्र, हाथी दांत से बनी वस्तुएं, हरे रंग के पत्थर से बनी वस्तुएं, बीदरी शिल्प कला के बर्तन, शस्त्र और कवच, पत्थर की मूर्तियां, लकड़ी की नक्काशी, धातु-बर्तन और पांडुलिपियां शामिल हैं। इस खंड में प्राचीन आंध्र मूर्तियों के साथ-साथ मध्यकालीन चित्र भी हैं। वर्ष 1961 में सालारजंग संग्रहालय को ‘राष्ट्रीय महत्व का संस्थान’ घोषित किए जाने के बाद एक अधिग्रहण समिति का गठन किया गया था और मूल संग्रह में आधुनिक भारतीय कलाकारों की कई कला वस्तुओं को इसमें शामिल किया गया। सालारजंग संग्रहालय में संभवत: विश्व का सबसे बड़ा ‘बीदरी वेयर’ संग्रहण भी है।
फारस, सीरिया और मिस्र से कालीन, पेपर (पांडुलिपियों), मिट्टी के बर्तन, कांच व धातु के बर्तन, फर्नीचर, लाहौर इत्यादि की विस्तृत व अत्यधिक मात्रा में विविधता वाली वस्तुएं मध्य पूर्वी विश्व की झलक दिखाती हैं। फारसी कालीनों पर ‘खुसरो’ की कहानियों की नक्काशी और उकेरी गई कथाएं संग्रहालय की मूल्यवान वस्तुओं में से एक है।
यूरोपीय संग्रह में तैलीय चित्र, शानदार फर्नीचर पर सौंदर्यपरक कांच की वस्तुओं वाले, हाथी दांत से बनी बेहतरीन वस्तुएं, तामचीनी बर्तन और घड़ियां शामिल हैं। इस संग्रहालय की सबसे अमूल्य वस्तु जी.बी. बेनज़ोनी द्वारा संगमरमर पत्थर पर की गई शिल्पकारी ‘वील्ड रेबेका’ है, जिसे सालारजंग- प्रथम द्वारा 1876 में उन्होंने अपने इटली दौरे के दौरान खरीदा था।
सालारजंग संग्रहालय उन चुनिंदा भारतीय संग्रहालयों में से एक है, जो सुदूर पूर्वी कला के व्यापक संग्रह का दावा कर सकता है और जिसमें चीनी मिट्टी के बर्तन, कांस्य, तामचीनी, लाख के बर्तन, कढ़ाई, कलाकारी, लकड़ी और जड़ों से बनाई गई जापानी और चीनी कला वस्तुएं शामिल हैं।
संग्रहालय में बच्चों वाले सेक्शन में प्रदर्शित वस्तुएं सालारजंग- तृतीय की विस्तृत और विविधता भरी वस्तुओं को संग्रहित करने की रुचि का प्रमाण देती हैं। इस खंड में रखी गई वस्तुएं बच्चों को अनौपचारिक रूप से न केवल शिक्षा देती हैं, बल्कि उन्हें आनंद भी प्रदान करती हैं। इस संग्रहालय में 20वीं शताब्दी से पहले की एक रेलगाड़ी भी है, जो कुछ दूरी तक चलती है और यह इस गैलरी का प्रमुख आकर्षण है। इसके अलावा, गैलरी में चीनी मिट्टी के बर्तन, धातु, हरे पत्थर की वस्तुएं (जेड) और खिलौनों से बनी सेनाएं हैं। यहाँ पर चलने वाली छड़ियों, हाथी दांत से बनी वस्तुओं को देखने का अवसर मिलता है, जिसमें हाथी दांत से बनी चटाई भी शामिल है, इसमें हिमाचल प्रदेश के चंबा, कांगड़ा, बिलासपुर और कुल्लू शैली के भी अनेक चित्रों को प्रदर्शित किया गया है।
संग्रहालय में दुर्लभ पुस्तकों और बहुमूल्य रोशनीनुमा पांडुलिपियों का एक विशाल पुस्तकालय है। अकबर, औरंगजेब और जहांआरा बेगम (शाहजहां की बेटी) जैसे सम्राटों की मुहर लगे और हस्ताक्षर वाली पांडुलिपियां हैं। पुस्तकालय के संग्रह से पता चलता है कि सालारजंग-तृतीय और उनके पूर्वज साहित्य के महान संरक्षक थे। इस संग्रहालय से दर्शकों को भारत की कलाओं को देखने का एक झरोखा मिलता है और भारतीयों को दुनिया के अन्य देशों की कला के विभिन्न पहलुओं को देखने का अवसर भी मिलता है।
बताया जाता है कि सालारजंग-तृतीय ने अपने अस्वस्थ होने के कारण नवम्बर, 1914 में दीवान (प्रधानमंत्री) का पद छोड़ने के बाद अपने जीवन को अपनी कला और साहित्य-खजाने को समृद्ध करने के लिए समर्पित कर दिया। कला के प्रति उनके अपार प्रेम की खबर दूर-दूर तक फैल चुकी थी और उनके पैतृक महल दीवान ड्योढ़ी में सदैव विश्व के कोनों-कोनों से कलात्मक वस्तुओं के विक्रेताओं का तांता लगा रहता था। विदेशों में उनके अपने एजेंट थे, जो उन्हें प्रसिद्ध प्राचीन व्यापारियों से कलात्मक वस्तुओं के कैटलॉग और सूचियां भेजते रहते थे। उन्होंने केवल इन्हीं एजेंटों के माध्यम से ही इन कलात्मक वस्तुओं की खरीद को सीमित नहीं रखा, बल्कि जब भी वे स्वयं यूरोप और मध्य-पूर्वी देशों में जाते थे, तो स्वयं भी इनकी खरीददारी करते थे बल्कि प्राचीन वस्तुओं, कला और दुर्लभ पांडुलिपियों के महान संग्राहक थे, वे कवियों, लेखकों व कलाकारों के भी बड़े हिमायती थे तथा सांस्कृतिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करते थे। उन्होंने अपने ही परिवार के सदस्यों पर कई किताबें लिखकर उनका प्रकाशन किया, उनका यह कार्य चालीस वर्षों तक उनकी मृत्यु अर्थात 2 मार्च, 1949 तक चला। उनके द्वारा संग्रहित पूरा संग्रह बिना किसी उत्तराधिकारी के छूट गया था। यह उस पूर्व नवाब के पारिवारिक सदस्यों का निर्णय था, जिन्हें लगा कि उस संग्रह को राष्ट्र के नाम करने से बेहतर और कुछ हो ही नहीं सकता। इस संग्रहालय में देश- विदेश के हज़ारों नए व पुराने करंसी सिक्कों सहित विशिष्ट तौर पर जारी सिक्कों का भी संग्रह मौजूद है। इतना ही नहीं देश की स्वतंत्रता की लड़ाई में शहीद हुए महान शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए उनके चित्रों को भी प्रदर्शित किया गया और उसमें पंजाब से संबंधित स्वतंत्रता सेनानियों शहीद भगत सिंह, शहीद सुखदेव, शहीद उधम सिंह को भी स्थान दिया गया है। जिससे समस्त पंजाबियों व पंजाब से जुड़े लोगों का इन महान विभूतियों के छायाचित्रों के दर्शन करके सिर गर्व से ऊँचा हो जाता है व इनके प्रति सिर श्रद्धा से झुक जाता है।
-गली नं. 4, तपा मंडी, ज़िला बरनाला (पंजाब) -मो. 9041295900