मक्की की काश्त खरीफ के मौसम में या बहार की ऋतु में ?

 

गत शताब्दी के आठवें दशक के आरम्भ में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) ने मक्की की काश्त रबी की फसल के रूप में करने के लिए किसानों को सिफारिश की थी। इसे गेहूं का योग्य विकल्प बताया था। गेहूं का उत्पादन करने में खर्च बहुत अधिक आता है। यह अधिक लागत वाली फसल है और इससे लाभ कम निकलता है। पीएयू के मक्की के विशेषज्ञों के अनुसार मक्की को रबी की फसल के रूप में उगाने पर खरीफ से अधिक बेहतर वातावरण मिलता है। जिसके बाद इस का उत्पादन अधिक होता है। शीत ऋतु में मक्की के पौधे की लम्बाई कम हो जाने के कारण उत्पादन बढ़ता है। पीएयू के उस समय के विशेषज्ञों के अनुसार रबी में लगाई गई मक्की का गेहूं से 40 प्रतिशत तक उत्पादन अधिक होता है। परन्तु यह गेहूं के विकल्प के तौर पर रबी की फसल के रूप में किसानों द्वारा बड़े स्तर पर नहीं अपनाई गई, परन्तु अधिकतर किसान इसे आजकल जनवरी में आलू, मटर के बाद पिछेती गेहूं की बिजाई के स्थान पर बहार ऋतु की फसल के तौर पर काश्त करते हैं। होशियारपुर, कपूरथला, शहीद भगत सिंह नगर, जालन्धर तथा रोपड़ आदि ज़िलों में बहार ऋतु की मक्की की काश्त काफी रकबे पर की जा रही है। कई किसान मक्की की दो फसलें भी ले लेते हैं। एक खरीफ की और दूसरी बहार ऋतु की फसल के तौर पर।
पीएयू द्वारा बहार ऋतु की मक्की की काश्त आजकल 20 जनवरी से 15 फरवरी तक करने सिफारिश की गई है। पीएयू द्वारा पी-1844 किस्म जो 120 दिन में पक कर 32 क्ंिवटल प्रति एकड़ तक उत्पादन देती है, पीएमएच-10, जिसका उत्पादन 32 क्ंिवटल प्रति एकड़ तक है और डीकेसी-9108, पीएमएच-8, पीएमएच-7 आदि किस्मों जो पकने को लगभग एक समान समय लगभग 120 दिन लेती हैं और 30-32 क्ंिवटल प्रति एकड़ के बीच उत्पादन देती हैं, की सिफारिश की गई है। पूर्व-पश्चिम दिशा के वट्टों बैड्डों पर दक्षिण की ओर बिजाई करने के लिए कहा गया है। खादों की सिफारिश 110 किलो यूरिया, 55 किलो डायामोनियम फास्फेट (डीएपी) या 150 किलो सुपरफास्फेट की, की गई है। पोटाश तत्व की कमी वाली भूमि में 12 किलो पोटाश (20 किलो म्यूरेट आफ पोटाश) प्रति एकड़ डालने का सुझाव दिया गया है। मक्की देसी खाद को भी बहुत मानती है। प्रगतिशील व पीएयू से सम्मानित किसान बलबीर सिंह जड़िया धर्मगढ़ (अमलोह) उत्पादकता बढ़ाने के लिए 6 टन प्रति एकड़ गली-सड़ी रूढ़ी खाद डालने का सुझाव देते हैं। वह कहते हैं कि फसल को ज़िंक सल्फेट भी डाल देना चाहिए। मोनोहाइड्रेट 33 प्रतिशत 6.5 किलो का सुझाव है। नदीनों की रोकथाम या तो दो गुडाई करके या 800 ग्राम प्रति एकड़ एट्राटाफ 50 डब्ल्यू.पी.(एट्राज़ीन), मध्यम भूमि के लिए तथा 500 ग्राम हलकी भूमि के लिए बिजाई से 10 दिनों के भीतर 200 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव कर देना चाहिए। पानी की बचत के लिए बिजाई के समय 30 क्ंिवटल प्रति एकड़ धान की पराली एक-सार बिछा देनी चाहिए। कई किसान बहार ऋतु की मक्की की बिजाई अप्रैल तक भी किये जा रहे हैं। पिछेती बीजी गई मक्की पकाने की अपेक्षा अचार बनाने के लिए इस्तेमाल करने हेतु अधिक योग्य होगी। 
क्योंकि बहार ऋतु की मक्की के लिए बहुत ज़्यादा सिंचाई की आवश्यकता है और यह बहुत ज़्यादा पानी मांगती है, डायरैक्टर कृषि एवं किसान कल्याण विभाग डा. गुरविन्दर सिंह के अनुसार पंजाब सरकार की बहार ऋतु की मक्की की काश्त कम करने की योजना है। पंजाब सरकार भू-जल का स्तर दिन-प्रतिदिन कम होने के कारण पानी की बचत हेतु योजनाबंदी कर रही है। डायरेक्टर कृषि कहते हैं कि केवल वे किसान जो तुपका सिंचाई विधि को अपना कर मक्की को पानी देंगे, उन्हें ही बहार ऋतु की मक्की लगाने के लिए उत्साहित किया जाएगा। उधर किसान मांग कर रहे हैं कि उनके खेतों को नहरी पानी बहार ऋतु की मक्की के लिए उपलब्ध किया जाए। इसलिए रजवाहों की सफाई की ज़रूरत है ताकि उनमें पूरा पानी बह कर खेतों तक पहुंचे। 
डायरैक्टर गुरविन्दर सिंह कहते हैं कि फसली-विभिन्नता कार्यक्रम में पंजाब सरकार ने मक्की की काश्त को पूरा स्थान दिया है। परन्तु खरीफ के मौसम की मक्की की काश्त  की ही सरकार द्वारा सिफारिश की जा रही है जबकि बारिश हो जाती है। मक्की का काश्त अधीन रकबा लगातार पंजाब में कम होता गया। सब्ज़ इन्कलाब के बाद वर्ष 1970-71 में 5.55 लाख हैक्टेयर रकबा मक्की की काश्त के अधीन होता था, जो कुछ वर्षों के बाद 1979-80 में 4.46 लाख हैक्टेयर तथा वर्ष 1980-81 में 3.82 लाख हैक्टेयर रह गया। इसके बाद यह लगातार कम होता गया तथा 2020-21 में 1.60 लाख हैक्टेयर रह गया। डायरैक्टर कृषि खरीफ के मौसम में काश्त करने के लिए मक्की की पीएमएच-13 जो 97 दिनों में पक कर लगभग 24 क्ंिवटल प्रति एकड़ उत्पादन देती है, एडीवी-9293 (जिसका उत्पादन थोड़ा-सा अधिक है) लम्बे समय में पकने वाली किस्म है और जे.सी.-4 मध्यम समय 90 दिन लेकर पकने वाली किस्म तथा पीएमएच-2 कम समय 83 दिनों में पकने वाली किस्म है। इन किस्मों का उत्पादन 13 क्ंिवटल से लेकर 18 क्ंिवटल प्रति एकड़ तक है, जो बहार ऋतु की मक्की से बहुत कम है। मक्की की खादों की ज़रूरत यूरिया 110 किलो, डीएपी 55 किलो या सिंगल सुपर फास्फेट 150 किलो, म्यूरेट आफ पोटाश 20 किलो प्रति एकड़ की सिफारिश की गई है। 
मक्की को बहुत सिंचाई चाहिए, जिसकी गिनती बारिश पर निर्भर करती है। फसल फूटने, सूत निकलने तथा दाने पड़ने के समय पानी का विशेष ध्यान मांगती है। पीएयू के विशेषज्ञों द्वारा कहा गया है कि किसी भी समय मक्की को पानी की कमी नहीं आने देनी चाहिए।