राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा 

 

राहुल गांधी ने जनवरी के अंतिम दिन अपनी भारत जोड़ो यात्रा का श्रीनगर में कांग्रेस पार्टी के कार्यालय पहुंच कर समापन कर दिया। यह यात्रा कन्याकुमारी से कश्मीर तक के लगभग 4000 किलोमीटर रास्ते पर 135 दिन निरन्तर चलती रही। चाय बेचने वाले का वारिस होने जैसा वास्ता पाये बिना वह टी-शर्ट पहन कर बच्चों, बूढ़ों, महिलाओं तथा देश भर के बुद्धिजीवियों तथा कलाकारों से गले मिलता प्रत्येक वर्ग के लोगों को बिना किसी शर्म के मिलता रहा। निहंग सिंहों सहित वह देश के श्रमिकों, किसानों तथा बेरोज़गारों को यह बताने में सफल रहा कि उनका समय भी अवश्य आएगा। नफरत की राजनीति के दिन पूरे होने वाले हैं और मोहब्बत का समय बहुत दूर नहीं। नोटबंदी तथा जीएसटी से लाभ लेकर गरीबों, मज़दूरों तथा बेरोज़गारों को लूटने वाले पूंजीपति तथा उनकी कार्पोरोटों का दबाव किसी को भूला नहीं। 
उसने देश के राष्ट्रीय मार्गों, रेल मार्गों, हवाई अड्डों तथा लाल किले जैसी विरासतों को धनकुबेरों तथा कार्पोरेटों के अधीन होने पर चिन्ता व्यक्त की तथा काले कृषि कानूनों की भी निंदा की, जिन्होंने 700 किसानों की जान ली थी। उसने वर्तमान सरकार द्वारा छोटे किसानों की ऋण माफी में बाधाएं डाल कर उन्हें आत्महत्या के रास्ते पर चलने का ज़िक्र करके इस तथ्य से भी पर्दा उठाया कि लखपतियों तथा पूंजीपतियों को तो लाखों-करोड़ों के ऋण मिल जाते हैं और गरीबों को ऋण के बजाय धक्के मिलते हैं। 
लखीमपुर खेड़ी का नाम लिए बिना उसने यह भी बताया कि जब बहुसंख्यकों का सुहागा चलता है तो अल्पसंख्यक कितने निर्बल एवं असहाय हो जाते हैं। निश्चय ही देश के संवैधानिक ढांचे को भाजपा तथा आरएसएस के अधीन लाना एक धर्म-निरपेक्ष देश के लिए घातक है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का मुख्य उद्देश्य आम जनता को उनके पूर्वजों के साहस एवं दृढ़ता से अवगत करवाना था, जो विदेशी शासकों को खदेड़ने में सफल होते रहे हैं।
राहुल गांधी की यह यात्रा अर्श से फर्श वाली न होकर फर्श से अर्श वाली थी। परबत से पानी वाली नहीं अपितु पानी से परबत वाली। हिन्दुत्व तक सीमित न रह कर हिन्दुस्तानी सीमाओं वाली। यही कारण है कि वर्तमान सरकार को यह बिल्कुल ही भाती नहीं थी।  इसके प्रथामिक चरण में इसे रोकने के लिए कोविड का भय भी फैलाया गया परन्तु राहुल नहीं डोले।  
इस यात्रा के अंतिम चरण में हरियाणा, पंजाब, हिमाचल तथा जम्मू-कश्मीर आए। उसे हरियाणा में भूपेन्द्र सिंह हुड्डा, कुमारी शैल्जा एवं रणदीप सूरजेवाला तथा पंजाब में राजिन्दर कौर भट्ठल, सुखजिन्दर सिंह रंधावा एवं प्रताप सिंह बाजवा, हिमाचल में सुखमिंदर सिंह सुक्खू तथा जम्मू-कश्मीर में फारूफ अब्दुल्ला एवं उमर अब्दुल्ला जैसे पूर्व मंत्रियों एवं मुख्यमंत्रियों का साथ मिलना बताता है कि ये सभी वर्तमान केन्द्र सरकार की कार्रवाइयों से संतुष्ट नहीं हैं। यह भी स्पष्ट है कि बहुसंख्यक एजेंडे को नकारने के लिए अकेली कांग्रेस काफी नहीं, सभी को मिल कर प्रयास करना पड़ेगा। शिव सेना के संजय राउत तथा अखिल भारती युवा कांग्रेस के महासचिव अमरप्रीत लाली का इसमें शामिल होना कांगे्रस के नये उभार पर मुहर लगाता है। भारतीय इतिहास एवं मथिहास के जानकारों ने तो यह भी बताया कि इस प्रकार की यात्रा सदियों पहले आदि शंकराचार्य ने की थी, राहुल गांधी के अतिरिक्त आज तक किसी अन्य ने नहीं। जम्मू-कश्मीर को केन्द्र शासित ईकाइयों में से निकाल कर इसकी स्वतंत्रता बहाल कराना इस यात्रा की शीर्ष सीढ़ी थी। ऐसी स्वतंत्रता जिसमें कश्मीरी ब्रह्मणों को पूरा मान-सम्मान मिले। अपने पंजाब दौरे के समय उसके द्वारा निर्धारित रास्ता छोड़ कर गुरुद्वारा फतेहगढ़ साहिब एवं हरिमंदिर साहिब अमृतसर में नतसमस्तक होना सिखों के प्रति सद्भावना एवं मोह का सूचक अवश्य है। पंजाब दौरे के समय यहां के मुख्यमंत्री को केजरीवाल के रिमोर्ट से बचने के लिए चैकसी करना तथा पंजाब की मक्की तथा सरसों के साग की दिल्ली की मक्की और साग से अधिक प्रशंसा करना पंजाबियों का मोह जीतना वाला था, विशेषकर पैराशूटरों से सावधान करने की बात। 
भारत जोड़ो यात्रा को नेशनल कांफ्रैंस, रैवोलूश्नरी सोशलिस्ट पार्टी आफ इंडिया, पीडीपी, डीएमके, सीपीआई, बहुजन समाज पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा जैसी पार्टियों के समर्थन के बिना एसएस जौहल, एसपी सिंह, प्रिथीपाल सिंह कपूर जैसे बुद्धिजीवियों सहित कमल हासन तथा उर्मिला मंतोंडकर जैसे कलाकारों तथा निहंग सिंह जैसे योद्धाओं का समर्थन मिलना भी गहन अर्थ रखता है। 
राहुल गांधी के इस स्वागती बूर को फल कब और कैसा लगता है, यह समय बताएगा। इसके लिए अच्छे संगठनात्मक ढांचे के अतिरिक्त माया की भी आवश्यकता पड़ेगी। क्या कांग्रेस पार्टी इस पक्ष से अडानी, अंबानी कार्पोरोटों का मुकाबला कर सकेगी, यह भी देखने वाली बात है। निश्चय ही कांग्रेस को अपने हमसफरों का दम भरना होगा। वोट लेने के लिए एक पार्टी को उसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। समय कम है और चुनौती बड़ी। भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव बिगुल बजा भी दिया है और कांग्रेस के समर्थक राहुल गांधी को पूर्व से पश्चिम की ओर चलने की सलाह दे रहे हैं। गांधी परिवार को समय संभालने के लिए प्रत्येक तरह के संसाधन जुटाने पड़ेंगे। जुटते हैं या नहीं, यह जन-समर्थन पर निर्भर करता है। सिर्फ आम जनता का साथ ही धन कुबेरों का मुकाबला कर सकता है। 
अंतिका
हम अकेले ही चले थे
जानिब-ए-मंज़िल मगर,
लोग साथ आते गए
और कारवां बनता गया।