भारत-अमरीका तकनीकी सहयोग कई पक्षों से होगा महत्वपूर्ण 

 

इस बदलाव को किस रूप में देखा जाए? जो अमरीका भारतीय परमाणु कार्यक्रमों का घोर विरोधी था, आज उसी का राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अपने समकक्ष भारतीय के साथ बैठकर परमाणु तकनीक पर अपसी सहयोग की बात कर रहा है और इस बातचीत का अमरीकी राष्ट्रपति बड़ी गर्मजोशी से स्वागत करते हुए कहते हैं, ‘इससे दुनिया के प्राचीनतम और सबसे विशाल लोकतंत्रों बीच संबंधों में और प्रगाढ़ता आएगी, पूरी दुनिया के लिए प्रोद्यौगिकी और नवाचार का भविष्य तय होगा’। बेशक भारत की तमाम वैश्विक मंचों पर पहुंच, कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में बढ़त और वैश्विक स्तर पर बढ़ती हैसियत इसकी वजह हैं। मगर इसके अलावा दोनों देशों के परिवर्तित होते भू-राजनीतिक समीकरण व व्यापार, सामरिक एवं आर्थिक आवश्यकताओं की भी इसमें अहम भूमिका है। 
दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच ‘इनीशिएटिव ऑन क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी’ यानी ‘आईसीईटी’ के कार्य प्रारूप की पहली बातचीत सरसरी तौर पर महज तकनीक संबंधी लग सकती है। यह भी कि सुरक्षा सलाहकारों के बीच सीधे बातचीत के जरिए संकेत दिया गया कि तकनीक हस्तांतरण के मामले में अब लालफीताशाही आड़े नहीं आयेगी, लंबी प्रक्रिया शीघ्र पूरी होगी, विकास की गाड़ी सरपट दौड़ेगी या फिर यह संदेश ग्रहण किया जा सकता है कि भारत और अमरीका का तकनीकी तालमेल बहुत स्वाभाविक है क्योंकि अमरीका विश्व की सबसे मजबूत तकनीकी अर्थव्यवस्था है तो भारत भी सूचना तकनीक का पावरहाउस है और अंतरिक्ष, परमाणु, आईए इत्यादि सभी तरह की तकनीक में खासा अग्रणी भी। इसमें तकनीक, उद्योग के अलावा रक्षा और व्यापार भी देखे जा सकते हैं लेकिन वास्तव में यह इन सबके साथ और इनसे परे भी एक अत्यंत दूरदर्शी पहल है जिसकी व्याप्ति और निहितार्थ इससे कहीं ज्यादा प्रगाढ़ हैं। 15 दिसम्बर, 2021 को भारत सरकार ने सेमीकंडक्टरों और डिस्प्ले मैन्यूफैक्चरिंग इकोसिस्टम के विकास हेतु कार्यक्रम बनाकर ‘इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन’ शुरू किया था। अमरीका में भी ऐसा ही कार्यक्रम चल रहा है। अमरीका जानता है कि हमारे पास सेमी-कंडक्टर डिजाइन का एक असाधारण टैलेंट पूल है। अब डोभाल और सुलीवन की वार्ता के बाद सेमीकंडक्टर्स उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए यूएस सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री एसोसिएशन द्वारा भारत इलेक्ट्रॉनिक सेमीकंडक्टर एसोसिएशन के साथ साझेदारी में एक टॉस्कफोर्स बन रहा है। यह कितना दूरंदेशी कदम है, इसे इस बात से समझिये कि संसार में सेमीकंडक्टर वार या चिपयुद्ध अब भू-राजनीतिक संघर्ष से बड़ा युद्ध है जिसमें अमेरिका और चीन के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा है। 
सेमीकंडक्टर इलेक्ट्रॉनिक और सैन्य उद्योग का एक अभिन्न अंग है। ताइवान, चीन, दक्षिण कोरिया, जापान बड़े सेमीकंडक्टर उत्पादक हैं। इनकी कंपनियों की वैश्विक बाज़ार में तकरीबन 90 फीसद की हिस्सेदारी है। अमेरिका सेमीकंडक्टर्स के निर्यात के लिए ताइवान पर निर्भर है। चीन ने दो साल से इस कारोबार में ताइवान को तबाह कर भारी बढ़त बना ली है। इसके चलते चीन क्लाउड कंप्यूटिंग और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों जैसे माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक के क्षेत्र में अमरीका को बड़ी चुनौती रहा है। अमरीका की सभी कोशिशों के बावजूद चीन का सेमीकंडक्टर उद्योग लगातार दस प्रतिशत की दर से बढ़ता जा रहा है, 2024 तक इसकी वार्षिक बिक्री 114 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकती है। अब अमरीका के लिए यह चिप युद्ध जीतना अत्यावश्यक है; क्योंकि इसके बिना वह कृत्रिम बुद्धिमत्ता और कई जरूरी प्रोद्यौगिकी में दबदबा खो देगा। 
ऐसे में चिप युद्ध का विजेता बनने के लिये उसके पास भारत से बेहतर साझीदार कोई नहीं है और इस क्षेत्र में पड़ोसी चीन के मुकाबले के लिए भारत को अमेरिका से बेहतर सहयोगी नहीं मिलेगा, भारत के दूसरे लाभ भी इसमें निहित हैं। अमेरिका इस वार्ता के साथ हाइपरसोनिक तकनीक के क्षेत्र में भारत के साथ आगे बढ़ने को तैयार है, क्योंकि रूस और चीन से इस क्षेत्र में उसे कड़ी चुनौती मिल रही है। अचरज लगेगा पर अमरीकी सीनेटर जैक रीड तक स्वीकार करते हैं कि हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक के मामले में अमेरिका भारत से पीछे है। अमरीकी संसद की रिपोर्ट बताती है, ‘भारत हाइपरसोनिक तकनीक पर बहुत आगे बढ़ चुका है। उसने 12 हाइपरसोनिक विंड टनल बनाई हैं, जहां वह परमाणु हथियारों को ढोने में सक्षम और ध्वनि की गति से 13 गुना तेज गति वाली मिसाइलों का परीक्षण कर सकता है। चीनी चुनौती और भारतीय दक्षता दोनों के प्रकाश में अमेरिका का इस मामले में भारत की ओर झुकाव और उसकी रणनीतिक आवश्यकता को समझा जा सकता है। उन्नत विनिर्माण या एडवांस मैन्यूफैक्चरिंग में भी दोनों देशों के बीच महत्वपूर्ण समझौता हुआ है। उन्नत विनिर्माण की गतिविधियों में ऐसी मशीनी प्रणाली शामिल होती है, जो इंफॉरमेशन, ऑटोमेशन, कंप्यूटेशन, सॉफ्टवेयर, सेंसर और नेटवर्किंग इत्यादि पर निर्भर रहती हैं। 
जनरल इलेक्ट्रिकल वगैरह देश के साथ संयुक्त रूप से जेट इंजन का उत्पादन करेंगे। नासा जॉनसन स्पेस सेंटर में भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों के लिए उन्नत प्रशिक्षण के लिए एक नया एक्सचेंज स्थापित करना भी बेहतर कदम है। अंतरिक्ष के क्षेत्र में अमरीका भारत से जानेगा कि कम लागत पर यान कैसे लॉन्च किए जाएं, तो भारत को पता चलेगा कि अंतरिक्ष यान का आर्थिक उपयोग कैसे हो जबकि दोनों इस समस्या का हल निकालेंगे कि अंतरिक्ष यान की वापसी और लैंडिंग की चुनौतियों को कैसे कम करके इसे निरापद बनाया जाए। अंतरिक्ष की कक्षा में सर्विसिंग, असेंबली और मैन्यूफैक्चरिंग कैसे की जाए। इन सबके अलावा नेटवर्क सेंसिंग एंड सिग्नेचर मैनेजमेंट, डायरेक्टेड एनर्जी वेपन, फाइनेंशियल टेक्नोलॉजी यानी फिनटेक ह्यूमन मशीन इंटरफेस, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्वांटम प्रोद्यौगिकियों जैसी तकनीक पर भी दोनों के बीच सहयोग की जो सहमति बनी है, वह वाकई इस क्षेत्र में गेमचेंजर साबित होगी। अब देखना यह है कि अजित डोभाल और जेक सुलीवन के बीच वार्ता धरातल पर कितनी मजबूती से और कब तक उतरती है।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर