क्या अब हम कोरोना के वेरियेंट्स की गिणती करते रहेंगे ?

 

यह मनुष्य में बढ़ रही कमज़ोरी और असुरक्षा का संकेत है या दुष्प्रचार का नतीजा कि समूची दुनिया इसके कोरोना के खौफ  से बेफिक्र होते-होते फिर से घबराने लग जाती है। क्या हम इसी तरह से कोरोना के विभिन्न वेरियेंट्स की गिणती करते हुए ही जीवन गुज़ार देंगे या बिदांस जीवनशैली को अंगीकार कर इसे डरावने सपने भर की तरह भुला देना चाहेंगे?
दरअसल, चीन में कोरोना से मची हाहाकार को उसी तरह से लिया जा रहा है, जैसा दिसम्बर 2019 में इसके वुहान से लीक होने पर निकल पड़ने के वक्त हुआ था। तब तो चीन सीनाजोरी करते हुए इससे निडर होने का अभिनय कर रहा था और दुनिया उस पर भ्रमित होकर चपेटे में आती जा रही थी। खुद चीन यह अनुमान नहीं लगा पाया कि जिस कोरोना को वह मामूली समझ रहा था, वह एक दिन देश में भयावह हालात पैदा कर देगा। इसे उसका मुगालता कहें, अति आत्मविश्वास या दुनिया को भ्रम में रखे रहने का उपक्रम, जो अढ़ाई बरस से शांत उस ज्वालामुखी की तरह फट पड़ा है, जो बर्फ की परत से ढंका रह कर शीतलता का अहसास दे रहा था।
चीन ने जबसे (सत्तर का दशक) सुधारवाद बनाम पूंजीवाद की राह पर दौड़ लगाना प्रारंभ किया, तबसे उसका ध्येय अमरीका के वर्चस्व को ध्वस्त कर खुद दुनिया का सुपर पॉवर बन जाना रहा। इसे पा लेने के आखिरी छोर पर पहुंचकर वह सांप-सीढ़ी के खेल की तरह 99 से 1 पर न सही तो 50 से नीचे तो आ ही गया है। अब पहली बार की तरह उसकी राह आसान नहीं रही। वजह साफ  है, एक तो भारत प्रत्येक क्षेत्र में उसे हर चुनौती दे रहा है। दूसरा, जिस अमरीका की अंगुली पकड़कर, उसकी ही कार्य पद्धति को अपनाकर और उसके ही बाज़ार को चीनी माल से पाटकर दुनिया की आर्थिक शक्ति बनने की राह चला था, वह राह अब मुश्किल हो गई है। 
चीन के इरादों में दूसरी सेंध लगी कोरोना की वजह से जब शेष दुनिया प्रत्यक्ष तौर पर कुछ भले न कर पाई हो, लेकिन उसने चीन से दूरियां इतनी बढ़ा लीं कि चीन अब उन देशों की प्रशंसक सूची में हाल-फिलहाल तो शामिल नहीं हो सकता। यह जगह तेज़ी से भारत ले रहा है। अमरीका भी अब भारत को सुविधाजनक सहयोगी की तरह देख रहा है और आगे बढ़कर गर्मजोशी से मेल-जोल बढ़ा रहा है। यह अमरीका की मौकापरस्ती का स्थायी चरित्र है, जिसे भारत समझ ही रहा होगा, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय तकाजे के बीच ऐसी चालें चलना भी समय की मांग होती है। चीन और उसके संरक्षण में दुबक कर बैठे पाकिस्तान से निपटने के लिये भारत को भी अमरीका जैसे सहयोगी की ज़रूरत रहेगी ही।
संक्रमण को नियंत्रित करने हेतु चीन टीकाकरण समेत अन्य उपायों की बजाय पूरी तरह से लॉकडाउन पर उतर आया। उसे लगा कि जब लोगों की आवाजाही नहीं रहेगी, बाज़ार, कार्यालय, परिवहन बंद रहेंगे तो कोरोना काबू में आ जाएगा। इसलिए उसने चिकित्सकीय उपायों और सुरक्षा कवच को दरकिनार कर दिया। यहीं वह गच्चा खा गया और जब लोग सड़क पर आये तो कोरोना तेज़ी से फैल गया।
भारत सहित तमाम वे देश जो कोरोना के दंश से ग्रसित हो चुके थे, ने अपने यहां व्यापक पैमाने पर टीकाकरण किया, जांच करवाई और इससे जंग जीत ली। वैसे ये लोग कोरोना के किसी भी प्रकार और स्वरूप से कैसे प्रभावित हो सकते हैं, जो इस समय चीन में फैला हुआ है। यह वेरियेंट तो हमारे यहां मात्र चार लोगों में पाया गया था, जिन पर वह प्रभावहीन रहा। तो हमें अब कोरोना की वे पाबंदियां क्यों अपनानी चाहिए, जैसी इसके प्राथमिक चरण में थी? हमने देखा है कि कोरोना की पाबंदियों को अपनाकर अनेक देशों की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी, जो अभी तक पूरी तरह से पटरी पर नहीं आ पायी है। 
              -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर