कम्बाइनों का सरताज अमरजीत सिंह हल्टों की टिंडों से लेकर कम्बाइनों तक

 

जब इन्सान दृढ़ निश्चय, मेहनत तथा लगन से बड़ी से बड़ी समस्या का आसानी से समाधान कर लेता है तो कामयाबी की मंज़िल अपने-आप उस इन्सान की ओर भागती आती है। ऐसी ही एक शख्सियत है करतार एग्रो, भादसों का अमरजीत सिंह। अमरजीत सिंह के पिता दौलत राम तथा चाचा लछमण दोनों भाई भादसों के निकट संधनोली के निवासी थे। अमरजीत सिंह के पिता और चाचा वहीं सरदारों की ज़मीन पर कृषि करते थे और साथ ही कृषि औज़ारों की मरम्मत करते, कुछ खुरपे, दरांती, कस्सी वगैराह बना कर बेचते थे, और अपना गुज़ारा करते थे। सन् 1925 में छोटा-सा कारखाना बना कर हल्ट बनाने का काम शुरू किया।
 अमरजीत सिंह सहित पांच भाई थे। बड़ा हरबंस सिंह बिल्कुल अनपढ़ था। वह अपने पिता के साथ काम में हाथ बटाता। अमरजीत सिंह ने भादसों हाई स्कूल से 10वीं पास की। तीसरा भाई ईशर सिंह भी स्कूल नहीं गया था। परसेम सिंह 10वीं पास करके गोबिन्दगढ़ में रोलिंग मिल में खराद का काम सीखने लगा। पांचवां भाई करतार सिंह 8वीं से आगे नहीं पढ़ा। वर्ष 1955 में अमरजीत सिंह अपने पिता के साथ भादसों में मकान लेकर रहने लगा। कारखाना तो चाचा लछमण ने रख लिया था। पिता दौलत राम ने अमरजीत के साथ ऋण लेकर छोटा-सा कारखाना बना कर काम शुरू कर दिया, परन्तु काम अच्छी तरह नहीं चला। हरबंस सिंह तथा अमरजीत सिंह उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में अपने रिश्तेदारों के पास जाकर नौकरी करने लग पड़े। फिर 5-6 वर्ष के बाद जब वे भादसों वापिस आए तो पांचों भाइयों ने मिलकर काम शुरू किया। पैसे की कुछ ज़रूरत उद्योग विभाग से पूरी की तथा शेष जो कुछ कमा कर लाए थे, वह भी लगा दिया। खराद, वैल्ंिडग सैट तथा ड्रिल मशीन लेकर ट्रैक्टरों की ट्रालियां बनानी शुरू कर दीं। एक ट्राली प्रतिदिन बनाने लगे। ग्राहक बहुत थे, जगह की कमी थी। बिजाई करने वाली मशीन भी अपने ही तरह की पांचों भाइयों ने नई बना ली, जो बहुत सफल हुई। यह भादसों टाइप सीड ड्रिल के तौर पर लोगों में प्रचलित हुई। वर्ष 1970 में भादसों के निकट 10 बीघे ज़मीन लेकर वहां कारखाना लगा लिया। 
मार्कफैड ने कुछ कम्बाइनें फार्चरिट तथा जौनडियर कम्पनी की आयात की थीं। पांचों भाइयों ने योजना बनाई कि क्यों न कम्बाईन बना कर बेचें। अगले दिन जौनडियर कम्बाईन खड़ी करके इसका अच्छी तरह निरीक्षण किया और पूरा सिस्टम समझ लिया। पांचों भाइयों ने मिलकर अमरजीत सिंह के नेतृत्व में पुराने  जौनडियर ट्रैक्टर, जो कबाड़ में आसानी से मिल गया था, के गियर बाक्स (ट्रांसमिशन) आदि से काम लिया। अमरजीत सिंह के नेतृत्व में चैसी बनाने का काम शुरू किया। 31 इंच चौड़े दो एंगल फिट कर दिये। पंखे आकार और इसकी बनावट देख कर तैयार कर लिए। स्ट्रा वाकर भी तैयार कर लिए। एक ढांचा बना कर उसमें टुकड़े टेढे-मेढे क्रैंकों की भांति कस कर वैल्ंिडग कर दिये। स्ट्रा वाकरों पर आधा इंच तारों की जाली फिट कर दी। थ्रैशर ड्रम तथा गाइड ड्रम देख लिया। दिल्ली से अमरजीत सिंह 51 इंच की पांच पत्तियां तथा ब्लेड लेकर आया। पैसों की कमी होने के कारण पूरा सामान नहीं ला सका था। आठ पत्तियों की ज़रूरत थी। तोड़-फोड़ कर पूरी कर लीं। थ्रैशर ड्रम तथा गाइड ड्रम फिट हो गया। कटर की फिंगरें जालन्धर से लाकर कटर बर्म, चैम्बर बना कर तैयार कर लिया। चेन खन्ना से ले आया। अगला कटर तैयार करके फिट कर लिया। दिल्ली के एक सेठ से 4 सिलेंडर इंजन 5000 रुपये में ब्याज पर लाए। जिस प्रकार का सामान उपलब्ध था, उससे कम्बाइन तैयार कर ली। जब चालू करके देखी तो कम्बाइन ने सही काम किया। सीज़न में इस कम्बाईन से दोस्तों-मित्रों की तथा अपनी फसल काटी। परिवहन विभाग से सम्पर्क करने पर पता चला कि कम्बाईन बनाने के लिए लाइसैंस लेना पड़ेगा जो कि दिल्ली से मिलना था। तीन वर्ष बाद सीओबी (कैरी ऑन बिज़नेस) का 50 कम्बाइनें बनाने का लाइसैंस मिला। अमरजीत सिंह ने सलाह दी कि ट्रैक्टर से चलने वाली कम्बाइन भी बनाई जाए, जिसके लिए किसी लाइसैंस की आवश्यकता नहीं। फिर उन्होंने ट्रैक्टर वाली कम्बाइन बना ली। यह कम्बाईन अपनी किस्म की पहली कम्बाईन थी। चलती देख कर बहुत ग्राहक आया। इस काम में काफी सफलता मिली। 
वर्ष 1986 में इंग्लैंड के क्वैंट्री सिटी में अमरजीत सिंह प्रदर्शनी देखने चला गया। वहां हरा चारा काटने वाली मशीन को देखकर सोचा कि कम्बाइन से काटने के बाद अवशेष खेत में बच जाते हैं। क्या इसकी तूड़ी बन सकती है? घर आकर भाइयों से सलाह करके तूड़ी बनाने वाला रीपर तैयार कर दिया। यह विश्व में सबसे पहला स्ट्रा रीपर था, जिसके निर्माण का श्रेय अमरजीत सिंह को जाता है। इसके बाद अमरजीत सिंह अगली पीढ़ी के हरमीत सिंह तथा मनजीत सिंह को साथ लेकर तमिलनाडु चला गया। वहां किसानों ने बताया कि क्लास कम्बाइन अवशेष बहुत बारीक कर देती है। उन्हें साबुत अवशेष चाहिए, क्योंकि वे चारे के तौर पर इस्तेमाल करते थे। अमरजीत सिंह के नेतृत्व में ऐसी कम्बाईन करतार एग्रो भादसों में बननी शुरू हो गई। कम्बाईन बना कर साऊथ डीलर के पास भेज दी। किसानों ने बहुत पसंद की। अमरजीत सिंह ने करतार एग्रो के माध्यम से सीड ड्रिल, स्वचालित कम्बाइन, ट्रैक्टर से चलने वाली कम्बाईन, स्ट्रा रीपर तथा ट्रैक मशीनें किसानों को दीं। 
प्रत्येक मशीन की कीमत उचित थी। किसानों ने बड़ा लाभ उठाया। अमरजीत सिंह के करतार एग्रो से सीख लेकर भादसों में कम्बाइन बनाने वाले आज कई यूनिट कार्य कर रहे हैं। भादसों में ही नहीं बल्कि आस-पास के शहरों जैसे पटियाला, नाभा, समाना, बरनाला आदि में भी हज़ारों व्यक्तियों को रोज़गार उपलब्ध किया जा रहा है।  अमरजीत सिंह को वैसे तो अनेक पुरस्कार एवं सम्मान मिले हैं और वह कम्बाइनों के सरताज के तौर पर जाना जाता है, परन्तु वह कहते हैं कि यदि उन्हें पद्म पुरस्कार दे दिया जाए तो वह बड़ी संतुष्टि महसूस करेंगे।