अपनी वर्तमान स्थिति के लिए पाकिस्तान स्वयं ज़िम्मेदार

 

नफरत की राजनीति की नींव पर खड़ा पाकिस्तान आज गम्भीर आर्थिक संकट के दौर से गुज़र रहा है। केवल कुछ दिनों की बात है। औपचारिक रूप से वह जल्द ही दिवालिया हो जाएगा। आज स्थिति यह है कि पंजाब प्रांत को छोड़ कर पूरा देश आटे के लिए तरस रहा है। पंजाब प्रांत को छोड़ कर पूरा पाकिस्तान अलगाववाद से जूझ रहा है। इसके कुछ हिस्से के लोग तो भारत में मिलने की मांग करने लगे हैं। आतंकवाद का सांप अब पाकिस्तान के ही गले पड़ चुका है और सीमाविवाद खड़ा कर पाकिस्तानी सैनिकों पर हमले कर रहा है। सैन्य अधिकारी आज तालिबानी आतंकियों से ‘बातचीत’ की गुहार लगा रहे हैं।  यह सोचने का विषय है कि आखिर पाकिस्तान की यह हालत हुई क्यों और कैसे हुई? जो पाकिस्तान अरब देशों को खाद्यान्न निर्यात करता था, आखिर वह आज दाने-दाने को  कैसे तरसने लगा?
1947 के विभाजन के बाद गेहूं उगाने वाले भारत का लगभग तीन चौथाई हिस्सा पाकिस्तान में चला गया था जिसकी प्रतिपूर्ति के लिए भारत ने कृषि के विकास पर विशेष ध्यान दिया और जगह-जगह कृषि विश्वविद्यालयों व अनुसन्धान केन्द्रों की स्थापना की जिस कारण आज भारत पूरी दुनिया को गेहूं निर्यात करने की स्थिति में आ चुका है। जिस भारत को 1965 में पीएल 480 के अंतर्गत घटिया गेहूं को सप्लाई करने में अमरीका आनाकानी कर रहा था, आज भारत से खाद्यान्न आयात कर रहा है। पाकिस्तान ने आखिर ऐसा क्यों नहीं किया। इसके भी कई कारण हैं। 
भारत अपनी नीतियों के कारण तत्कालीन यूएसएसआर (रूस) की ओर झुका था जिससे स्वाभाविक प्रतिक्रि यास्वरूप अमरीका का झुकाव पाकिस्तान की ओर हो गया और वह उसे विभिन्न योजनाओं के नाम पर मुंह भरकर सहायता देने लगा। उधर स्वधर्मी और भारतीय सेना की सुख्याति के चलते सऊदी अरब और कुछ और अरब देशों ने पाकिस्तान को भरपूर ऋण और मदद दी जिससे वह समझा कि यह मदद उसे हमेशा मिलती रहेगी? इस सोच के चलते उसने कभी अपने आर्थिक और कृषि विकास की योजनाओं को गम्भीरता से नहीं लिया और भारत और अन्य देशों से आयात कर अपना काम चलाता रहा। बाद में पाकिस्तान का रूझान चीन की ओर बढ़ने लगा तो अमरीका और यूरोप के अन्य देशों ने पाकिस्तान की मदद से हाथ पीछे खींचना शुरू कर दिया। चीन पाकि के विकास और अपनी कई बहुआयामी योजनाओं के नाम पर उसे ऋण पर ऋण के जाल में उलझाता चला गया। उसने पाकिस्तान को कभी धन की कमी महसूस ही नहीं होने दी किन्तु पाकिस्तान के इन दो आर्थिक मित्रों (अमरीका व चीन) में एक बुनियादी फर्क था। 
अमरीका कुछ अपवादों को छोड़ कर ऋ ण नहीं, आर्थिक मदद देता था जबकि चीन योजनाओं के लिए कुछ सम्पत्ति गिरवी रख कर ऊंची ब्याज दरों पर ऋ ण देता था और उन्हें स्वयं बनाने की शर्त भी रखता था। दूसरी ओर पाकिस्तान सेना पर बेतहाशा खर्च कर रहा था। उसके नेता और बड़े सैन्य अधिकारी अरबों-खरबों की रिश्वतें लेकर अमरीका, ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय देशों में बंगले और फार्म हाउस खरीद रहे थे और अपने वहां के खातों में अपना पूरा पैसा जमा कर रहे थे। इस तरह पाकिस्तान का पैसा यूरोप और अमरीका में पंहुच रहा था और पाकिस्तान खाली होता जा रहा था। इस तरह जहां पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार कम हो रहा था, वहीं भारत मजबूत स्थिति में आ रहा था। 
उधर चीन अपने ऋण को विभिन्न बहानों और माध्यमों से अपना पैसा व्यापार बढ़ा कर वापस खींचता रहा। कुल मिला कर आर्थिक गतिविधियों में शून्य पाकिस्तान कृषि योजनाओं में भी पिछड़ता चला गया और राजकोषीय घाटे का शिकार होता गया। भारत द्वारा यूक्रेन युद्ध के दौरान रूस के साथ आर्थिक सन्धियां कर लेने से चिढ़े अमरीका ने जब फिर से पाकिस्तान की पीठ पर हाथ रखा तो चीन ने अपना हाथ पीछे खींचना शुरू कर दिया। उधर चीन के बनाये चालीस बांधों के बरसात में धोखा दे देने के कारण रही सही कसर पूरी हो गयी और लगभग पूरा पाकिस्तान बाढ़ की चपेट में आ जाने से फसलें चौपट हो गयीं और पूरा देश खाद्यान्न की कमी से जूझने लगा। 
चीन के ऋण तले दबा पाकिस्तान अब अमरीका, चीन और अरब देशों से आर्थिक सहायता नहीं पा सका और दीवालिया होने के कगार पर आ खड़ा हो गया है। अब न चीन उसकी पीठ पर है और न अरब देश और अमेरिका। परिणामस्वरूप अब्दुल रहमान मक्की को राष्ट्रसंघ ने ‘अंतर्राष्ट्रीय आतंकी’ घोषित कर दिया और चीन ने अपने वीटो का प्रयोग नहीं किया। बह पाकिस्तान की साख पर सबसे बड़ा धब्बा था। कुल मिला कर अपनी आत्मघाती नीतियों पर चल कर पाकिस्तान विनाश के कगार पर पंहुच चुका है। (युवराज)