बाइडन का यूक्रेन दौरा युद्ध को और भड़काने वाला तो नहीं ?


 

अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन के मिशन सीक्रेट का खुलासा होने और रूस द्वारा युद्ध कभी न जीत पाने की चुनौती से यूक्रेन संकट जल्द खत्म होता नहीं दिखता। तीसरे विश्व युद्ध की ओर बढ़ती जंग अब और भीषण होगी। कभी जिस युद्ध के हफ्ते-पन्द्रह दिन में खत्म होने की बातें हो रही थीं, उसे अब साल हो गया है। ऊपर से अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन का रात के अंधेरे में पहले हवाई सफर, फिर 10 घण्टे की ट्रेन यात्रा कर यूक्रेन की राजधानी कीव पहुंचना ही दुनिया के लिए हैरानी भरा रहा। बिना सूचना, चुनिंदा भरोसेमंद पत्रकारों को साथ लेकर गोपनीय तौर पर रात में निकले बाइडन की जोखिम भरी यात्रा अब दुनिया के लिए बहुत बड़ा जोखिम लग रही है। अमरीकी राष्ट्रपति उस जगह थे जहां कभी भी रूसी मिसाइलों का अटैक हो सकता था। बाइडन का यह बयान भी बेहद मायने रखता है जिसमें वह लोकतंत्र, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की खातिर अपनी अटूट प्रतिबद्धता जताने कीव पहुंच गए थे।
रूस ने यूक्रेन में भी सीरिया-इराक जैसा खेल कराने की बात कहते हुए पश्चिमी देशों का रूस की संस्कृति पर हमला बताया। वहीं बाइडन लौटते हुए पोलैण्ड से ही रूस पर जुबानी जंग तेज करते हुए कहने से नहीं चूके कि हर हालत में हम यूक्रेन का साथ देंगे। उन्होंने कहा कि नाटो देश न केवल एकजुट हैं बल्कि पुतिन की हरकतों से फिनलैंड और स्वीडन को नाटो में शामिल होने की प्रेरणा मिली है। यूक्रेन को रूस ने न केवल कमज़ोर समझा बल्कि यह झूठी धारणा भी बना ली थी कि पश्चिमी देश एकजुट नहीं हैं। बाइडन और यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की के साझा बयान से युद्ध को एक नए अंजाम पर पहुंचाने की संभावनाओं को बल मिला है। अमरीका-यूक्रेन इसे रिश्तों का ऐतिहासिक पड़ाव भी बताते हैं और नतीजा युद्ध के मैदान पर दिखाने का दम भी भरते हैं। बाइडन की यात्रा युद्ध को और भड़काने जैसा ही लगती है। भले ही इस औचक दौरे से रूस चिढ़े, चीन की आँखें तने और प्रतिक्रियाएं भी दिखें, लेकिन तीसरे विश्व युद्ध से इन्कार की गुंजाइश नहीं दिखाई देती। 
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का कहना है कि लगातार नाजी खतरों के कारण वहां के लोगों के खातिर रूस यूक्रेन में सैन्य कार्रवाई कर रहा है। बड़ी चतुराई से भारत का नाम लेकर पुतिन ने दोस्ती का बिना कहे दम भी भरा और ईरान, चीन, पाकिस्तान जैसे देशों से आर्थिक संबंध बढ़ाने के लिए नॉर्थ-साउथ कॉरिडोर विकसित करने पर ज़ोर दिया। पुतिन ने अमरीका और उसके सहयोगियों पर बुनियादी समझौते से हटने और झूठे बयानों का आरोप लगाते हुए पश्चिम को ही युद्ध अपराधी बताते हुए साफ  कर दिया कि युद्ध की जल्द समाप्ति अब असंभव है। पुतिन ने परमाणु संधि को भी न मानने की घोषणा कर दो टूक जवाब दिया कि यदि अमरीका परमाणु हथियारों का परीक्षण करेगा तो वह चुप नहीं बैठेगा। इसके बाद अमरीका व रूस के बीच 2010 में हुई संधि जो 2021 में 5 साल के लिए और बढ़ाई गई थी, बेमायने हो गई। मतलब साफ  है कि घातक और नए दौर के उन्नत तथा दूर तक मार करने वाले हथियारों के इस्तेमाल से युद्ध बहुत विनाशकारी होगा। बाइडन का बतौर राष्ट्रपति यूक्रेन का भले ही यह पहला और चौंकाने वाला दौरा हो, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि उप-राष्ट्रपति रहते हुए वह पहले भी 6 बार यूक्रेन जा चुके हैं। अब सबकी निगाहें चीन पर हैं जो देर-सवेर खुलकर रूस का साथ दे सकता है। ऐसे में भारत, पाकिस्तान और दूसरे एशियाई देशों पर दुनिया की निगाहें होंगी।
 साल 2022 के अंत तक दोनों देशों के 1.90 लाख से ज्यादा सैनिकों की मौत, लगभग 1 लाख से ज्यादा का घायल होने तथा करीब 10 हज़ार स्थानीय नागरिकों के मारे जाने की भी सूचना है। लाखों लोगों को पलायन करना पड़ा है। यूक्रेन के कई शहर और करीब 18 प्रतिशत ज़मीन पर रूसी कब्जे के बीच बाइडन की कीव में मौजूदगी से कोई शांति की उम्मीद करना पूरी तरह से बेमानी है।  
यह युद्ध भले ही दो देशों के बीच वर्चस्व के लिए हो रहा है लेकिन भुगतना तो पूरी दुनिया को पड़ रहा है। इसका असर भी दिखने लगा है। भोजन और तेल की कीमतों में पूरी दुनिया में जबरदस्त उछाल आया है। दो महीने पुराने आंकड़ों को देखें तो यह समझ आता है कि पूरी दुनिया लगभग 4 से 5 ट्रिलियन डॉलर यानी 340 से 350 लाख करोड़ रुपये की चोट खा चुकी है। अनुमानत: खुद यूक्रेन के लगभग 8 लाख करोड़ तो रूस के करीब 8 हज़ार अरब रुपये युद्ध में खर्च हो चुके हैं। वहीं अमरीका और यूरोपियन देश भी इसमें तकरीबन 12520 अरब रुपये खर्च कर चुके हैं। सबसे बड़ी मार आम आदमी पर पड़ी जिसके लिए भोजन और ईंधन जुटाना बहुत कठिन हो गया। कुल मिलाकर पूरी दुनिया में इस युद्ध का विपरीत प्रभाव पड़ा है।