यूक्रेन को मिल रही सैन्य मदद से विश्व युद्ध की आशंका बढ़ी

रूस-यूक्रेन युद्ध को एक साल हो गया है, लेकिन जंग रुकने के कोई संकेत नहीं मिल रहे हैं बल्कि ऐसा प्रतीत हो रहा है कि आने वाले दिनों में इसमें अधिक तीव्रता आ सकती है, जिससे तीसरा विश्व युद्ध छिड़ने की आशंका पैदा हो गयी है। अगर ऐसा होता है तो भारत के लिए भी तटस्थ रहना कठिन हो जाएगा, विशेषकर इसलिए अब गुट-निरपेक्ष आंदोलन भी नहीं है जिसकी बदौलत पंडित जवाहरलाल नेहरु ने शीत युद्ध के दौरान भारत की दोनों खेमों (अमरीका व सोवियत संघ) से बराबर की दूरी बनाने व भारतीय हितों को सुरक्षित रखने में सफल रहे थे। इस बीच अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडन अचानक 20 फरवरी 2023 को पांच घंटों की जोखिम भरी यात्रा पर यूक्रेन पहुंचे, जिससे वाशिंगटन के मास्को व बीजिंग से संबंध अधिक तनावपूर्ण हो गये हैं। वाशिंगटन ने चीन पर रूस को घातक हथियार सप्लाई करने का आरोप लगाया है, जिसका खंडन करते हुए बीजिंग ने अमरीका से कहा है कि हथियार सप्लाई करने के संदर्भ में उसे आदेश जारी करने का अधिकार नहीं है।
इसके बावजूद यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख ने चीन को चेतावनी दी है कि रूस को हथियार उपलब्ध कराना लाल रेखा को पार करना होगा। जबकि यूक्रेन के राष्ट्रपति वी. जेलेंस्की ने कहा है कि अगर युद्ध में चीन रूस का समर्थन करता है तो विश्व युद्ध छिड़ सकता है। ऐसी भी खबरें हैं कि नार्थ सी में रूसी शिप ने डच विंड पार्क्स को मैप किया है। डच इंटेलिजेंस अधिकारियों के अनुसार ताकि नीदरलैंड के विद्युत इंफ्रास्ट्रक्चर को बर्बाद किया जा सके। इस पृष्ठभूमि में यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि राष्ट्रपति बाइडन की यूक्रेन यात्रा से स्थिति अधिक संवेदनशील व चिंताजनक हो गई है। क्रेमलिन इस यात्रा को रूस के विरुद्ध पश्चिम की प्रॉक्सी वॉर का साक्ष्य मानता है। बात चाहे जो हो, सच्चाई यही है कि इस युद्ध में यूक्रेन के नागरिक बुरी तरह से पिस रहे हैं। हालांकि बीजिंग का दावा है कि वह मास्को व कीव के बीच शांति वार्ता कराने का प्रयास कर रहा है, लेकिन सच तो यह है कि वाशिंगटन व मास्को के शीत टकराव में बीजिंग आग को हवा देने का काम कर रहा है,जिससे यूक्रेन जंग का अखाड़ा बना हुआ है।
अगर जल्द बातचीत के ज़रिये स्थिति को नियंत्रित करने के प्रयास न किये गये तो इस आग की चपेट में पूरी दुनिया आ सकती है क्योंकि अपनी यात्रा के दौरान बाइडन ने न सिर्फ  अतिरिक्त सहयोग के तौर पर यूक्रेन को 500 मिलियन डॉलर देने का वायदा किया बल्कि यूक्रेन के लोगों को आश्वासन दिया कि अमरीका ‘चाहे कितना समय लग जाये अमरीका उनके साथ खड़ा रहेगा’। अतिरिक्त सहयोग पैकेज में आर्टिलरी एम्युनेशन, एंटी-आर्मर सिस्टम्स और एयर सर्विलांस राडार्स शामिल हैं ताकि यूक्रेन के लोगों को हवाई बमबारी से सुरक्षित रखने में मदद की जा सके। इसमें कोई दो राय नहीं है कि बिना अमरीकी मदद के यूक्रेन रूस का इतने लम्बे समय तक सामना नहीं कर सकता था। 
अतिरिक्त सहयोग देने की घोषणा तो राष्ट्रपति बाइडेन वाशिंगटन में रहते हुए भी कर सकते थे, तो फिर वह इस जोखिम भरी यात्रा पर क्यों निकले? दरअसल, बाइडन अपनी इस यात्रा से रूस को ठोस प्रतीकात्मक संकेत देना चाहते थे, जिसमें वह सफल भी रहे कि अमरीका हर तरह से यूक्रेन के साथ खड़ा है और मास्को अपनी अपार सैन्य ताकत के बावजूद कीव में अपने उद्देश्य को हासिल करने में नाकाम रहा है। गौरतलब है कि बाइडन की इस यात्रा के बारे में उनके चंद करीबियों के अलावा किसी को मालूम नहीं था। पोलैंड के लिए रवाना होने के बावजूद वाइट हाउस का कार्यक्रम यही दिखाता रहा कि वह अमरीका की राजधानी में ही हैं। पोलिश सीमा से उन्होंने दस घंटे की अनियोजित ट्रेन यात्रा कीव तक की। जब वह यूक्रेन की सीमा में प्रवेश कर रहे थे तब वाइट हाउस ने स्तिथि को ‘डीकंफ्लिक्ट’ करने के उद्देश्य से रूस को सतर्क किया। लेकिन तब भी यूक्रेन में सायरन बजे क्योंकि बेलारूस में रूसी मिग-31 विमान के उड़ान भरने को डिटेक्ट किया गया था। इस जेट में किन्जहल हाइपरसोनिक मिसाइलें थी, जिसे मार गिराने की क्षमता यूक्रेन के पास नहीं है। दूसरी ओर रूसी कमेंटेटर्स ने कहा है कि यह क्रेमलिन की उदारता है कि यूक्रेन में बाइडन के रहते हुए उसने हमला नहीं किया। उनके अनुसार बाइडन का साहस अमरीका में अपने घरेलू मतदाताओं को प्रभावित करने के उद्देश्य से था।
बाइडन की यूक्रेन यात्रा पर प्रतिक्रिया राजनीतिक आधार पर विभाजित रही। उनके दक्षिणपंथी विरोधियों ने इस यात्रा को ‘अविश्वसनीय अपमान’ बताते हुए कहा कि यूक्रेन सरकार व युद्ध का खर्चा उठाने के लिए अमरीकियों को मजबूर किया जा रहा है। दूसरी ओर बाइडन के समर्थकों ने इस यात्रा को ‘साहस का अविश्वसनीय परिचय’ बताया। इन परस्पर विरोधी प्रतिक्रियाओं के बावजूद वास्तविकता यह है कि यह ऐतिहासिक यात्रा आधुनिक युग में अप्रत्याशित है। जो देश युद्ध से बुरी तरह दो-चार हो रहा हो, उसकी राजधानी में एक राष्ट्रपति का जाना जबकि उसकी खुद की सेना का वहां क्रिटिकल इंफ्रास्ट्रक्चर पर नियन्त्रण न हो, निश्चित रूप से अकल्पनीय हिम्मत का प्रदर्शन है। बाइडन की कीव यात्रा ऐसे समय हुई जब बीजिंग ने अपने टॉप डिप्लोमेट वांग यी को मास्को भेजा था। इसलिए यह प्रश्न प्रासंगिक है कि यह राजनीतिक यात्राएं रूस-यूक्रेन युद्ध पर क्या प्रभाव डालेंगी या उसे किस दिशा में लेकर जायेंगी?
यह सही है कि बाइडन की यूक्रेन यात्रा से वाशिंगटन के मास्को व बीजिंग से रिश्तों में और दरार पड़ी है, लेकिन आशंका के बावजूद अभी तीसरे विश्व युद्ध के आसार नहीं हैं। बाइडन की यात्रा का मुख्य उद्देश्य यूक्रेन सेना का मनोबल बढ़ाने और यूक्रेन के लिए घरेलू समर्थन को बरकरार रखना था, जिससे युद्ध के लम्बे खिंचने की आशंका अवश्य है।
 

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर