देश भर में बिखरे हैं होली के दिलकश रंग

प्राचीन समय में होली वसंतोत्सव के तौर पर मनायी जाती थी जो वास्तव में प्रेम के देवता काम का त्यौहार था। बाद में यह कृष्ण की होली के रूप में मनाया जाने लगा, विशेषरूप से मथुरा व वृन्दावन में। हालांकि अन्य जगहों पर भी वसंतोत्सव होली के रूप में विकसित हो गया, लेकिन इसके मनाने के कारण व तरीके में काफी परिवर्तन आता गया। यह अलग बात है कि इस त्यौहार का वास्तविक संबंध मौसम व कृषि से है और इसलिए यह फाल्गुन में ही मनाया जाता है। जहां इस त्यौहार के साथ प्रहलाद व होलिका की कहानी को जोड़ा गया, वहीं गुरु गोबिंद सिंह ने इसे होला मोहल्ला के रूप में विकसित किया। शैव व शक्ति की अपनी हिन्दू परम्पराएं हैं, जबकि जैन व नेपाल के नेवार बौद्ध अपनी अलग प्रथा लिए हुए हैं। इस रंग बिरंगे गुलदस्ते का अपना लाभ है, जिसे देखने के लिए अगर आप सफर पर निकलें तो इस होली पर्यटन का अपना ही मजा है। इस संदर्भ में सभी फूलों की महक से परिचय कराना इस छोटे से लेख में संभव नहीं है, फिर भी कुछ चुने हुए फूल इस प्रकार से हैं-
अगर आपने मथुरा के निकट बरसाना व नंदगांव की लट्ठमार होली नहीं देखी तो कुछ नहीं देखा। इसमें पुरुष महिलाओं को छेड़ते हैं और महिलाएं पुरुषों को लट्ठ से पीटती हैं। लट्ठमार होली मुख्य होली से एक सप्ताह पहले आयोजित की जाती है। बेहतर होगा कि आप लट्ठमार होली से कुछ दिन पहले बरसाना चले जायें ताकि लड्डू होली उत्सवों का अनुभव कर सकें। लड्डू एक दूसरे पर फेंके जाते हैं और राधा व कृष्ण से जुड़े गीत गाये जाते हैं। इसके बाद का उत्सव नंदगांव में अगले दिन से होता है। मथुरा व वृन्दावन में होली से 40 दिन पहले यानी बसंत पंचमी को होली मनानी शुरू हो जाती है। मथुरा के श्री कृष्ण जन्मस्थान में होली से एक सप्ताह पहले चर्चित शो होता है, वृन्दावन के बांके बिहारी मंदिर में सप्ताह भर का जश्न मनाया जाता है जो फूलों वाली होली से शुरू होता है और रंगों से समाप्त होता है। भंग का मजा लेना है तो विश्राम घाट जायें और रंग फेंकने का आनंद लेना है तो मथुरा का द्वारिकाधीश मंदिर सबसे अच्छी जगह है।
शांतिनिकेतन (पश्चिम बंगाल) में होली को सांस्कृतिक बसंत उत्सव के रूप में मनाने की परम्परा गुरुदेव रबिन्द्रनाथ ठाकुर ने डाली थी। छात्र बसंत रंगों की वेशभूषा में गुरुदेव के गीतों पर नाचते हुए पर्यटकों के लिए जबरदस्त सांस्कृतिक कार्यक्त्रम प्रस्तुत करते हैं। बसंत उत्सव बंगाली इतिहास व संस्कृति का अटूट हिस्सा बन गया है और बहुत से विदेशी पर्यटकों को भी अपनी ओर आकर्षित करता है। तीन दिन का बसंत उत्सव पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले में आयोजित किया जाता है। इसमें आप स्थानीय लोगों के साथ गा सकते हैं व होली खेल सकते हैं और अनूठी लोककला का आनंद ले सकते हैं जैसे- छऊ नृत्य, दरबारी झूमर, बंगाल के घुमंतू बाऊल संगीत आदि का। इस दौरान यहां पर्यटकों के रहने की व्यवस्था टेंट में की जाती है। पंजाब के आनंदपुर साहिब में होला मोहल्ला का आयोजन 1701 से हर साल किया जा रहा है। इसमें रंग नहीं फेंके जाते,बल्कि इस चार दिन के उत्सव में जिस्मानी करतबों का प्रदर्शन किया जाता है और पगड़ी बांधी जाती है।
उदयपुर, राजस्थान में शाही होली का मजा लीजिये। मेवाड़ का शाही परिवार शानदार जुलूस में अपने महल से निकलता है सिटी पैलेस के मानक चौक तक, जिसमें घोड़े, बाजे आदि सब होते हैं। चौक में पहुंचकर बुरी आत्माओं को भगाने के लिए होलिका दहन होता है और साथ ही होलिका का पुतला भी जलाया जाता है। प्रवेश पास से है। धारावी मुंबई का सबसे बड़ा स्लम है। लेकिन यह डिप्रेसिंग जगह नहीं है, विशेषकर होली के अवसर पर। यहां होली की जबरदस्त पार्टी का आयोजन किया जाता है, स्थानीय लोगों के साथ, पूर्णत: दोस्ताना वातावरण में, रंगों व संगीत के साथ। पार्टी में हिस्सा लेने के लिए प्रति व्यक्ति 1500 रूपये का प्रवेश शुल्क है, जिसका 80 प्रतिशत हिस्सा धारावी के लोगों की मदद के लिए खर्च किया जाता है। दिल्ली में होली किसी हुड्दंग से कम नहीं है। अगर आप पहाड़गंज के आस पास हैं तो घर से निकलते ही कोई न कोई आपको रंग देगा। अगर संभव हो तो आप होली मू उत्सव (जो पहले होली गाय उत्सव के नाम से विख्यात था) के टिकट लें। यह रंग, संगीत व पागलपन का उत्सव है। 40 से अधिक भारतीय व अंतर्राष्ट्रीय कलाकार चार मंचों पर परफॉर्म करते हैं। वातावरण सुरक्षित है, नॉन-टॉक्सिक रंग उपलब्ध कराये जाते हैं, भांग की लस्सी व स्ट्रीट फूड के साथ, जिससे हर कोई रंग व मस्ती में आ जाता है। जयपुर में हर साल होली की पूर्व संध्या पर हाथी उत्सव का आयोजन किया जाता है, जिसमें हाथी परेड करते हैं, हाथियों का ब्यूटी कांटेस्ट होता है व लोक नृत्य भी। स्थानीय व विदेशी पर्यटक हाथियों से रस्साकशी करते हैं। पशु प्रेमी 2012 से इस उत्सव का विरोध करते चले आ रहे हैं, फिर भी जयपुर में हाथियों के साथ होली का आयोजन हो ही जाता है। जयपुर में वैदिक वाक को मिस न करें जो विशेष होली वाकिंग टूर है।

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