लोकसभा चुनाव-2024 प्रधानमंत्री मोदी ने पार्टी नेताओं को सचेत रहने के लिए कहा

पूरी भारतीय जनता पार्टी यह मान कर चल रही है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में उसके सामने कोई चुनौती नहीं है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कमान में उसकी जीत तय है। भाजपा पक्षीय मीडिया भी इसी तरह की तस्वीर पेश कर रहा है, लेकिन नरेंद्र मोदी ऐसा नहीं मान रहे हैं। इस सिलसिले में उन्होंने अपनी पार्टी के नेताओं को सचेत किया है और उन्हें नसीहत देने के अंदाज़ में इंडिया शाइनिंग अभियान की याद दिलाई है, जो 2004 के चुनाव से एक साल पहले शुरू हुआ था। तब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे और विपक्ष के पास वाजपेयी के मुकाबले कोई नेता नहीं था। इसलिए पार्टी के नेता अति आत्मविश्वास में थे और समय से पहले चुनाव करा लिए गए थे। सबको पता है कि नतीजा क्या हुआ! इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले सप्ताह तीन राज्यों के चुनाव नतीजे आने के बाद भाजपा की कोर कमेटी की बैठक में पार्टी नेताओं से कहा कि वे चुनौती को हलके में न लें। बैठक में मोदी के अलावा अमित शाह, जे.पी. नड्डा, राजनाथ सिंह आदि नेता शामिल हुए। उनके सामने प्रधानमंत्री ने चुनाव तैयारियों की चर्चा की और कहा कि भले कोई चुनौती हो या न हो, विपक्ष के पास कोई नेता हो या न हो लेकिन भाजपा को चुनाव पूरी तैयारी के साथ लड़ना है। उन्होंने केंद्र सरकार के कामकाज की जानकारी ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने और बूथ कमेटी मज़बूत करने से लेकर उम्मीदवारों के चयन तक में हर जगह सावधानी बरतने को कहा।
जी-20 की बैठक और चुनाव नतीजे
जी-20 देशों के वित्त मंत्रियों और उसके बाद विदेश मंत्रियों की बैठक में भले ही कई मामलों में सहमति नहीं बनी और साझा बयान नहीं जारी हुआ, लेकिन भाजपा अपने राजनीतिक फायदे के लिए इसका इस्तेमाल करने से नहीं चूकी। जिस समय दुनिया के 20 सबसे बड़े देशों के वित्त और विदेश मंत्री नई दिल्ली में थे और उनकी बैठक होने वाली थी, उसी समय पूर्वोत्तर के तीन राज्यों के चुनाव नतीजे आ रहे थे। यह  ‘कमाल का संयोग’ भाजपा के लिए बहुत फायदेमंद साबित हुआ। दुनियाभर के ताकतवर देशों के प्रतिनिधिमंडलों की मौजूदगी में भाजपा की ‘बड़ी जीत’ की खबर आई। दो मार्च को त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड के चुनाव नतीजों के दिन गोदी मीडिया ने जिस तरह का माहौल बनाया वह भी अनायास नहीं था। साफ  दिख रहा था कि दिल्ली में मौजूदा विदेशी मेहमानों को लक्ष्य बना कर चुनाव नतीजों की फर्जी खबर से नैरेटिव बनाया जा रहा है। हकीकत यह है कि भाजपा सिर्फ  एक ही राज्य त्रिपुरा में जीती और वहां भी उसकी सीटें पहले से कम हुईं। बाकी एक राज्य नागालैंड में भाजपा की सहयोगी पार्टी जीती और तीसरे राज्य मेघालय में तो भाजपा बुरी तरह से हारी। मेघालय में 60 सीटों पर चुनाव लड़ कर भाजपा सिर्फ  दो सीट जीत पाई, लेकिन उसे भी गोदी मीडिया भाजपा की जीत बताते हुए दिखाता रहा कि तीनों राज्यों में भाजपा को बड़ी जीत मिली। इसका मकसद साफ  तौर पर अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी को टारगेट करना था। 
केजरीवाल के पास नहीं कोई मंत्रालय?
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा देने वाले जेल में बंद दोनों मंत्रियों मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन के विभाग नए मंत्रियों आतिशी मार्लेना सिंह और सौरभ भारद्वाज के बीच बांट दिए। अब भी उन्होंने कोई विभाग अपने पास नहीं रखा है। सवाल यह है कि केजरीवाल अपने पास कोई मंत्रालय क्यों नहीं रखना चाहते? किसी भी सरकार के प्रभावी संचालन के लिए ज़रूरी है कि मंत्रियों के बीच कामकाज का संतुलित बंटवारा हो, लेकिन दिल्ली सरकार में जितना असंतुलित बंटवारा था, वैसा कहीं देखने को नहीं मिलता। मुख्यमंत्री ने खुद अपने पास कोई विभाग नहीं रखा जबकि मनीष सिसोदिया को उन्होंने 33 में से 18 मंत्रालय सौंप रखे थे। बाकी राज्यों में मुख्यमंत्री ज्यादा महत्वपूर्ण और संवेदनशील विभाग अपने पास रखते हैं, लेकिन केजरीवाल ने कोई मंत्रालय अपने पास नहीं रखा।
 कहीं ऐसा तो नहीं है कि जिस कारण से सत्येंद्र जैन या मनीष सिसोदिया जेल भेजे गए हैं, उससे बचने के लिए केजरीवाल ने अपने पास कोई मंत्रालय नहीं रखा है? केजरीवाल भारत सरकार के अधिकारी रहे हैं और उसमें भी आयकर विभाग के। इसलिए उन्हें किसी कागज़ पर दस्तखत करने या किसी कम्पनी का निदेशक होने का मतलब पता है। वह जानते हैं कि गड़बड़ी होने की स्थिति में पकड़ा वही जाएगा, जो दस्तखत करेगा। संभवत: इसलिए उन्होंने कोई मंत्रालय अपने पास नहीं रखा है। सवाल यह है कि जब वह कट्टर ईमानदार लोगों की सरकार चला रहे हैं तो अपने पास मंत्रालय रखने और फाइल्स पर दस्तखत करने में क्या दिक्कत है? 
नागालैंड में नहीं कोई विपक्षी दल 
विधानसभा चुनाव से पहले नागालैंड में कोई विपक्ष नहीं था। राज्य की सभी पार्टियां सत्तारूढ़ गठबंधन के साथ थी। इस बार चुनाव नतीजे आने के बाद ऐसा लग रहा था कि राज्य में विपक्ष रहेगा और हो सकता है कि मज़बूत विपक्ष रहे। लेकिन चुनाव नतीजों के एक हफ्ते के भीतर ही साफ  हो गया है कि इस बार भी 60 सदस्यों की नागालैंड विधानसभा में विपक्ष का एक भी विधायक नहीं होगा। सभी 60 विधायक सरकार का साथ देंगे।
 सत्तारूढ़ गठबंधन की दो पार्टियों—एनडीपीपी और भाजपा को क्रमश: 25 और 12 सीटें मिली हैं और उनके पास पूर्ण बहुमत है। इसके बावजूद बाकी तमाम पार्टियों ने सरकार का समर्थन किया है। उसकी पुरानी विरोधी पार्टी एनपीपी के पांच विधायक विजयी रहे हैं और उसने पहले की तरह सरकार का समर्थन कर दिया है। सबसे हैरान करने वाला फैसला शरद पवार की पार्टी एनसीपी का है, जिसके सात विधायक जीते हैं। उसे मुख्य विपक्षी पार्टी का दर्जा मिल सकता था, लेकिन उसने भी सरकार का समर्थन किया है। प्रदेश इकाई ने समर्थन का प्रस्ताव दिया, जिसे पवार ने मंजूरी दी। इसके अलावा नितीश कुमार की पार्टी के इकलौते विधायक ने भी सरकार को समर्थन दे दिया है, जिसके बाद नितीश ने प्रदेश कमेटी भंग कर दी। चिराग पासवान और रामदास अठावले की पार्टियों के दो-दो विधायक विजयी रहे हैं और वे भी सरकार का समर्थन कर रहे हैं। इसके अलावा चार निर्दलीय भी सरकार का समर्थन करेंगे।