बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के समक्ष अस्तित्व का संकट

 

पिछले कुछ समय से बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) पर अन्य विपक्षी दलों द्वारा केन्द्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को उसके फैसलों के माध्यम से प्रभावी ढंग से मदद करने का आरोप लगाया जा रहा है। पिछले सप्ताह, टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी द्वारा उठाये गये दो विरोधाभासी कदमों ने इस तरह के आरोपों को और मजबूत किया। इस प्रक्रिया में भाजपा के खिलाफ  एक संयुक्त आम मोर्चा बनाने के लिए अन्य दलों द्वारा शुरू की गयी वर्तमान पहल भरोसेमंद नहीं मालूम पड़ती।
तथ्य अपने बारे में स्वयं ही बताते हैं। 2 मार्च को, विभिन्न राज्यों में चुनाव परिणाम घोषित किये गये। सागरदिघी विधानसभा सीट के उप-चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार से टीएमसी उम्मीदवार की लगभग 23,000 मतों से भारी हार ने बंगाल में सत्ताधारी दल को झटका दिया। टीएमसी ने 2018 में मुस्लिम बहुल मुर्शिदाबाद के सागरदिघी में लगभग 50,000 मतों से जीत हासिल की थी। सागरदिघी में लगभग 64 प्रतिशत मतदाता मुस्लिम थे। कांग्रेस ने वाम मोर्चे के साथ गठबंधन में इस सीट पर चुनाव लड़ा था।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने फिर भी बहादुरी दिखाते हुए कोलकाता से घोषणा की कि ‘टीएमसी आने वाले चुनावों में किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेगी’ (संभवत: इशारा 2024 के लोकसभा चुनावों की ओर था)। उसने आगे स्पष्टीकरण के बिना कहा, यह ‘लोगों’ के गठबंधन करेगी। सीपीआई (एम), कांग्रेस और भाजपा ने सागरदिघी में टीएमसी को नाराज़ करने के लिए राजनीतिक सिद्धांतों को धोखा दिया। उन्होंने जोर देकर कहा कि कोई बात नहीं, टीएमसी अकेले तीनों पार्टियों से मुकाबला करेगी और उन्हें बुरी तरह हरा देगी।
फिर भी कुछ ही दिनों बाद, सुश्री बनर्जी नौ विपक्षी दलों द्वारा प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को भेजे गये एक पत्र की प्रमुख हस्ताक्षरकर्ताओं में शामिल थीं। तृणमूल के नेता के रूप में हस्ताक्षर करते हुए, वह अन्य नेताओं के साथ मिलकर मोदी से प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) जैसी जांच एजेंसियों को विपक्षी नेताओं को परेशान करने से रोकने का आग्रह करती हैं! भ्रष्टाचार के आरोप में सीबीआई द्वारा आम आदमी पार्टी ‘आप’ के नेता और दिल्ली के मंत्री मनीष सिसोदिया की हालिया गिरफ्तारी के विरोध में पत्र लिखा गया था। स्पष्ट रूप से, सुश्री बनर्जी की नाटकीय घोषणा के विपरीत टीएमसी नेताओं ने आम भाजपा विरोधी पहल में अन्य दलों में शामिल होने से इंकार नहीं किया था। लेकिन उनके सुप्रीमो द्वारा ‘इसे अकेले जाने’ के अपने फैसले की घोषणा के तुरंत बाद उठाया गया कदम, अधिकांश पर्यवेक्षकों के साथ-साथ टीएमसी के वफादारों को भी भ्रमित कर दिया।
क्या ऐसा हो सकता है कि सुश्री बनर्जी के ‘एकला चलो रे’ के नारे को टीएमसी के भीतर कोई समर्थन नहीं मिला? क्या टीएमसी के महासचिव अभिषेक बनर्जी ने किसी तरह टीएमसी के अधिकांश नेताओं को अन्य विपक्षी दलों के साथ समन्वय में पहले की तरह काम करने के लिए राजी किया था?
गौरतलब है कि किसी भी भाजपा विरोधी कार्रवाई को कमजोर करने की कीमत पर भी कांग्रेस के साथ सहयोग नहीं करने की टीएमसी की हालिया रणनीति बनी रही। विपक्ष बंटा रहा। प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस के किसी प्रतिनिधि का नाम नहीं लिया गया है। इसने कोलकाता में अटकलों को हवा दी कि 2 मार्च को बंगाल के मुख्यमंत्री के शब्दों की परवाह किये बिना, टीएमसी ने कांग्रेस को बाहर रखने के लिए अन्य दलों के बीच पूर्व की तरह पैरवी की थी।
टीएमसी के अंदरूनी सूत्रों ने कोलकाता में स्वीकार किया कि राहुल गांधी द्वारा निकाली गयी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की आंशिक सफलता के बाद कांग्रेस की किस्मत में कुछ सुधार हुआ है। जैसा कि कांग्रेस ने अपने जनसंपर्क को बढ़ाने की कोशिश की, कुछ क्षेत्रों में लोग पार्टी के प्रमुख कार्यक्रमों में अपनी रुचि व्यक्त करने के लिए अनायास ही आगे आ गये। वे श्री गांधी और जयराम रमेश,  एम. खड़गे, पी. चिदम्बरम और श्रीमती प्रियंका वाड्रा जैसे अन्य नेताओं को और अधिक सक्रिय रूप से भाजपा से मुकाबला करते देखने के इच्छुक थे। उन्होंने पिछले 2.3 वर्षों के दौरान भाजपा के कमजोर प्रदर्शन और आम लोगों के बीच आर्थिक कठिनाइयों के प्रति उदासीनता पर भी निराशा व्यक्त की।
इसके विपरीत, केवल बंगाल में ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों में भी, टीएमसी के अपने दयनीय प्रदर्शन को छुपाया नहीं जा सका। पार्टी नेता मदन मित्रा ने सार्वजनिक रूप से स्पष्टीकरण मांगा कि टीएमसी को 2018 में 50,000 से अधिक मतों से जीती हुई सीट 2023 में इतनी भारी मतों से क्यों गंवानी चाहिए? बंगाल के अन्य नेताओं और कार्यकर्ताओं में भी इस बात को लेकर बड़बड़ाहट थी कि त्रिपुरा और मेघालय में चलाये गये हाई प्रोफाइल खर्चीले चुनाव प्रचार इतनी बुरी तरह से विफल क्यों हुए, सुश्री बनर्जी और उनके भतीजे अभिषेक दोनों ने स्थानीय स्तर पर सभी प्रमुख निर्णय लेने के अलावा, दोनों राज्यों में सक्रिय रूप से प्रचार किया था। कुछ नेताओं ने स्वीकार किया कि टीएमसी नेताओं के विरूद्ध भ्रष्टचार के आरोप का अभियान और जांच एजेंसियों द्वारा की गयी गिरफ्तारियों से स्पष्ट रूप से टीएमसी को नुकसान होने लगा है। चाहे शिक्षा हो, केन्द्र या राज्य सरकार की जनकल्याणकारी योजनाएं, अवैध रेत खनन, पशु तस्करी और अन्य अपराध, सभी में राज्य स्तर के टीएमसी मंत्रियों, विधायकों, नगर पार्षदों, पंचायत नेताओं आदि की संलिप्तता ने सभी को चौंका दिया था। उच्च पुलिस और विभिन्न विभागीय अधिकारियों से जुड़े राजनीतिक गठजोड़ पर भ्रष्टाचार का संदेह था।
त्रिपुरा और मेघालय में पार्टी के हालिया आक्रमण का उद्देश्य बंगाल टीएमसी नेताओं द्वारा किये गये भारी भ्रष्टाचार से जनता का ध्यान हटाना था जिसे राष्ट्रीय मीडिया में भी व्यापक रूप से कवर किया गया था। परन्तु इस तरह के नकारात्मक मीडिया कवरेज ने पार्टी की प्रतिष्ठा और प्रभाव को कम किया।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली टीएमसी वर्तमान में अस्तित्व के संघर्ष में लगी हुई है, यहां तक कि पार्टी के वरिष्ठ नेता अपने सार्वजनिक प्रदर्शनों में दिखावा करते हैं कि ‘स्थिति यथावत बनी हुई’ है। टीएमसी के पास सुधार करने की संगठनात्मक क्षमता है जैसे उसने 2019 के लोकसभा चुनावों में बड़ी हार के बाद की थी। अभिषेक बनर्जी के समर्थकों का कहना है कि पार्टी पाठ्यक्रम में सुधार करेगी और यह सुनिश्चित करेगी कि इस साल अप्रैल, मई में आने वाले पंचायत चुनावों में टीएमसी अपनी जीत के रास्ते पर वापस आ जायेगी। (संवाद)