क्या 2047 तक भारत सचमुच बन जायेगा विकसित देश ?

साल 2047 तक भारत विकासशील की श्रेणी से ऊपर उठकर विकसित देश बन जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुताबिक ऐसा प्रौद्योगिकी के प्रचूर प्रयोग से संभव होगा। तकनीक के बेहतर इस्तेमाल से 25 वर्षों के इस अमृतकाल में देश इस ऐतिहासिक उपलब्धि को हासिल कर लेगा। इसलिए आज़ादी के सौ वर्षीय जश्न में हम इसका भी उत्सव मना रहे होंगे। क्या वास्तव में यह संभव है? इसमें कोई दो राय नहीं कि देश औद्योगीकरण और तकनीकी विकास के क्षेत्र में खुद को अगली पांत में स्थापित करने की लिए भरपूर कोशिशें कर रहा है। भारत सरकार ने विगत कुछ वर्षों से अपनी नीतियों में इस क्षेत्र के दीर्घकालिक लक्ष्यों को पूरी तरह ध्यान में रखा है। साथ ही वह तकनीक, तकनीक की जनता तक पहुंच और उसके उचित इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए बड़े पैमाने पर निवेश भी कर रही है। इससे प्रतीत होता है कि उनके दावे निराधार या महज सरकारी प्रचार नहीं हैं। भले शोध विकास के क्षेत्र में व्यय को देश के सकल घरेलू उत्पाद के 2 प्रतिशत तक पहुंचाने के लक्ष्य से अभी भी हम काफी दूर हैं पर पिछले कुछ वर्षों में अनुसंधान एवं विकास पर भारत का सकल व्यय लगातार बढ़ रहा है। साल 2023-24 के बजट में टेक्नोलॉजी के साथ ह्यूमन टच का भी ़खास ख्याल रखा गया है। 
इस बात से भी कोई इन्कार नहीं कर सकता कि देश में वृहद पैमाने पर डिजिटल क्षेत्र का आधुनिक बुनियादी ढांचा तैयार हो रहा है। 5-जी तो इसका एक नमूना भर है। यह भी तथ्य है कि आज भारत दुनिया में प्रौद्योगिकी लेन-देन के लिए विश्व के आकर्षक निवेश स्थलों में तीसरे स्थान पर है। बहुत-सी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भारत में अपने अनुसंधान एवं विकास केंद्र स्थापित करने और बड़े निवेश की ओर देख रही हैं। यह सब इसलिए भी क्योंकि भारत आईटी उत्पादों का शीर्ष निर्यातक है, शीर्ष 5 आईटी कम्पनियां वैश्विक स्तर पर शानदार काम कर रही हैं। 
नैनो टेक्नोलॉजी से भारत के फार्मास्युटिकल उद्योग में क्रांतिकारी परिवर्तन की पूर्वपेक्षा है। देश संसार का तीसरा सबसे बड़ा फार्मा क्षेत्र है और इसके तकनीकी शोध के कुछ क्षेत्रों में उसे बहुत से विदेशी शोध अनुबंध मिल चुके हैं। देश के पास अफ्रीका, आसियान, ब्रिक्स, यूरोपीय संघ और पड़ोसी देशों के लिए समर्पित कार्यक्रमों सहित 45 से अधिक देशों के द्विपक्षीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी कार्यक्रम हैं। एक जापानी कम्पनी भारत में 10,000 इंजीनियरों और शोधकर्ताओं को नियुक्त करने जा रही है। अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में देश विश्व के शीर्ष पांच देशों में हैं और सार्क देशों सहित अन्य देशों के उपग्रह लांच करके राजस्व कमाने की स्थिति में है। परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में महत्वपूर्ण विकास के अलावा विदेशी एजेंसियों के अनुसार कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर चल रहे कार्य 2035 तक देश की वार्षिक विकास दर में लगभग डेढ़ फीसदी की बढ़ोत्तरी करा देंगे। विज्ञान और इंजीनियरिंग प्रकाशनों की संख्या में भारत अब विश्व में तीसरे स्थान पर है। भारत ने पेटेंट स्वीकृत कराने के मामले में 572  फीसदी की आश्चर्यजनक वृद्धि दर्ज की है। भारत दुनिया में निम्न-मध्य आय वाली अर्थ-व्यवस्थाओं में तीसरे स्थान पर है। मध्यमवर्ग का विस्तार और प्रति व्यक्ति आय बढ़ने से लोगों की खरीद क्षमता बढ़ेगी तो तकनीकी रूप से उन्नत उत्पादों के लिए मांग में तेज़ी आना तय है, इसके फलस्वरूप देश में तकनीक अनुसंधान एवं विकास के क्षेत्र में घरेलू निवेश भी बढ़ेगा।
सबब यह कि सभी संकेतक प्रधानमंत्री की आशाओं को बल देते हैं। कुछ आंकड़े और तथ्य यह भी बताते हैं कि देश अढ़ाई दशकों के भीतर विश्व की बड़ी विकसित अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों में शुमार हो जायेगा। इस सबके बावजूद क्या यह सफर वाकई आसान है? क्या सरकारी आंकड़े पूरा सच बयान कर रहे हैं, जिसके आधार पर हम उम्मीदों का यह महल खड़ा कर सकें? सच यह है कि इस राह में हमारे सामने दोहरी चुनौतियां हैं। यह देश के भीतर भी हैं और बाहर से भी। देश की सामाजिक स्थित, आर्थिक असमानता और असमान वितरण जैसे कारक इस मार्ग में  बड़ी बाधा हैं तो तकनीक के क्षेत्र में अपने पड़ोसी चीन से मिलने वाली चुनौतियों से मुकाबला करने के बारे में भी सोचना होगा। ये साझी चुनौतियां बेहद बड़ी हैं, इनसे पार पाये बिना विकसित देशों में शुमार होने के इस आकाश कुसुम को हासिल करना कठिन है।
विकसित राष्ट्र बनने के लिए आवश्यक है कि भारत भी चीन की तरह वैश्विक निर्माण केंद्र बने। विदेशी कम्पनियों के नहीं अपने बलबूते पर, अपनी तकनीक से तमाम ऐसे उत्पाद बनाये जो अपने विशिष्ट गुणवत्ता और दाम के चलते वैश्विक बाज़ार में अपना दमखम दिखाएं और उस पर कब्ज़ा कर सकें। क्या देश के पास ऐसे कुछ सौ उत्पाद या उनकी अतिविकसित उन्नत निर्माण तकनीक है? क्या देश यह कल्पना कर सकने की स्थिति में है कि अगले अढ़ाई दशकों में हथियारों और स्वास्थ्य क्षेत्र में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों का आयात आधा हो सकेगा। क्या 25 वर्ष के भीतर तमाम जीवनोपयोगी वस्तुओं और कल-कारखानों में लगने वाली अधिकांश मशीनें स्वदेशी होंगी? कागज़ पर अथवा बयान में यह कहना आसान है लेकिन देश का वास्तविक परिदृश्य तथा आंकड़े देखने व समझने के बाद यह बहुत मुश्किल लगता है। 
ऑस्ट्रेलियन स्ट्रेटेजिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट कहती है कि आधुनिक 44 तकनीक में से 37 में चीन विश्व में सबसे आगे है। भारत 5 तकनीक में दूसरे जबकि 15 में तीसरे स्थान पर है। आवश्यकता आधारभूत योजनाओं की है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता का ईकोसिस्टम बनाना है तो देश में गणित की शिक्षा का स्तर बढ़ाना होगा। तकनीक और विज्ञान समाज में सर्वसुलभ, सर्वग्राह, समरस हो, इसके लिये तार्किक समाज गढ़ने के लिये के प्रयास करने होंगे। देश विकसित हो, परन्तु  देशवासी नहीं, यह अधूरा तकनीकी विकास होगा। बाज़ार के साथ समाज की भी सकारात्मक उन्नति हो सरकार को अपनी नीतियों में इसका भी ध्यान रखना होगा।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर