चीन में ज़ुल्म के खिलाफ कब आवाज़ उठाएगा मुस्लिम समुदाय ?

बताया जा रहा है कि एक-दूसरे के कट्टर विरोधी रहे सऊदी अरब और ईरान ने अपनी सारी पुरानी अदावतों को भूलकर दोस्ती करने का फैसला किया है। हैरानी की बात यह है कि इन दोनों देशों को करीब लाने का श्रेय अब चीन को दिया जा रहा है। दरअसल सऊदी अरब में एक शिया मौलवी को 2016 में फांसी की सज़ा दी गई थी और इसी मुद्दे पर सऊदी अरब और ईरान के कूटनीतिक संबंध खत्म हो गए थे। तब से ये दोनों देश एक-दूसरे के शत्रु बने हुए थे। सऊदी अरब खुद को पूरी दुनिया के सुन्नी मुसलमानों का रहनुमा मानता है और ईरान स्वयं को शिया मुसलमानों का। ऐसे में इन दोनों के कूटनीतिक रिश्ते बहाल करने के फैसले से सारी दुनिया कुछ हैरान तो अवश्य है। सभी जानते हैं कि दोनों तेल उत्पादक देश हैं। यहां एक ज़रूरी चिंता को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है। क्या सऊदी अरब तथा ईरान  चीन से यह पूछने का साहस करेंगे कि उसके वहां मुसलमानों पर अत्याचार क्यों हो रहा है और वह कब रुकेगा? 
चीन ने अपने मुस्लिम बहुल शिनजियांग प्रांत में रहने वाले मुसलमानों पर पूरी तरह से शिंकजा कसा हुआ है। उन्हें वह सब खाना-पीना पड़ा रहा है, जो उनके इस्लाम धर्म में पूर्ण रूप से निषेध है। यह सब कुछ चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के इशारों पर हो रहा है। पहले तो ये खबरें भी आ रही थीं कि चीन अपने देश के मुसलमानों को रमजान के दौरान रोज़ा रखने की भी अनुमति नहीं देता। इस सबके बावजूद ईरान, सऊदी अरब तथा इस्लामिक समुदाय चीन में मुसलमानों पर हो रहे अत्याचारों पर चुप हैं। इन्होंने चीन में मुसलमानों पर हो रही ज़्यादतियों पर विरोध का एक भी शब्द दर्ज नहीं किया है। एक रिपोर्ट के अनुसार चीन के शिनजियांग प्रांत में बने शिविरों में दस लाख से अधिक चीनी मुसलमानों के साथ लगातार जुल्म हो रहे हैं। सब इसलिए हो रहा है ताकि चीनी मुसलमान इस्लाम को छोड़कर कम्युनिस्ट विचारधारा को अपना लें। वे इस्लाम से दूर हो जाएं, परन्तु समूचा मुसलमान समुदाय चीन के इस अत्याचार पर चुप है। 
यह निश्चय ही यह एक गंभीर विषय है कि चीनी दमन पर इस्लामिक समुदाय ने आंखों पर पट्टी और कानों में रूई क्यों डाल रखी है? चीन अपनी इस सारी कवायद पर भारी-भरकम खर्च कर रहा है। वह मानता है कि ये शिविऱ एक प्रकार से मानसिक अस्पताल ही हैं। इनमें वैचारिक रोग  का इलाज होता है। चीन का मत है कि यह शारीरिक रोग जैसी ही स्थिति है। शिनजियांग को क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा प्रांत माना जाता है। यह एक लाख 66 हज़ार वर्ग मील में फैला है। इसकी आबादी सवा दो करोड़ के आसपास है।
दरअसल शिनजियांग में चीनी सरकार और वहां के वीगर मुसलमानों में लम्बे समय से तनातानी चली आ रही है। वीगर मुसलमान भी भारत के कट्टर इस्लामपंथियों की तरह स्वयं को मध्य एशियाई देशों के करीब मानते हैं। ये सांस्कृतिक स्तर पर अपने को चीन के करीब नहीं मान पाते। शिनजियांग पर कम्युनिस्ट पार्टी ने 1949 में पूरी तरह से कब्जा जमा लिया था। चीनी मुसलमानों की चीन सरकार से लगातार यह शिकायत रही है कि वह उनके बहुल वाले क्षेत्रों में चीनी मूल के नागरिकों, जिन्हें हान चाइनीज भी कहते हैं, को बसाने का प्रयास कर रही है। जिसके चलते उनके समक्ष अपने ही क्षेत्र में अल्पसंख्यक होने का संकट पैदा हो गया है।
अब इसी मुद्दे पर पड़ोसी पाकिस्तानी की राय भी जान लीजिए। पाकिस्तान फिलस्तीन से लेकर रोहिंग्या मुसलमानों तक के पक्ष में बोलता है, पर वह चीन के मुसलमानों के मामले में मौन हो जाता है। पाकिस्तान में इमरान खान ने देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद कहा था कि उनका देश चीन के साथ मधुर संबंध बनाकर रखना चाहता है। उनकी पाकिस्तान तहरीक-ए-इन्साफ  पार्टी (पीटीआई) ने एक बार अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर कहा था, ‘हम चीन के साथ अपने संबंधों को मज़बूत करेंगे और उन्हें सुधारेंगे। हम चीन से गरीबी उन्मूलन सीखने के लिए अपने अधिकारियों की टीम भेजना चाहते हैं ताकि वे सीख सकें कि गरीबी को कैसे खत्म किया जा सकता है।’ अफसोस कि इमरान खान और उनकी पार्टी चीन में मुसलमानों पर हो रहे अत्याचारों पर चुप रहती है। अब पाकिस्तान में मिली जुली सरकार है और उसके विदेश मंत्री ज़रदारी के पुत्र बिलावल  भुट्टो हैं। चीन का ज़िक्र आते ही उसके मुंह में भी दही जम जाता है। चीन यह भी कहता रहा है कि उनके यहां चरमपंथी मुसलमानों को पाकिस्तान के आतंकी प्रशिक्षण शिविरों में ही ट्रेनिंग मिलती रही है। चीन का आरोप है कि शिनजियांग प्रांत में पाकिस्तान में प्रशिक्षित ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ईटीआईएम) के आतंकवादी हिंसा के लिए ज़िम्मेदार रहे हैं। यह सवाल तो अपनी जगह खड़ा है कि ईरान व सऊदी अरब चीन में मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ  विरोध दर्ज क्यों नहीं करते?