कृषि विभिन्नता के लिए बासमती तथा सब्ज़ियों की काश्त

 

धान पंजाब की खरीफ की मुख्य फसल है। इस की लगभग 31 लाख हैक्टेयर रकबे पर काश्त की जाती है, क्योंकि इसके लिए पानी की ज़रूरत दूसरी फसलों के मुकाबले अधिक है, यह फसल लगातार चर्चा का विषय बनी रही है। किसानों की लम्बे अरसे से पसंद बनी रही सबसे अधिक उत्पादन देने वाली पूसा-44 किस्म (जो पकने में लम्बा समय लेती है) तथा सरकार द्वारा इसकी काश्त कम करने के लिए ही नहीं, बंद करने पर ज़ोर लगाया जा रहा है। चाहे कुछ किसान इस किस्म के लाभदायक होने के कारण अभी भी इस किस्म की काश्त करने के लिए उत्सुक हैं। 
सरकारी हलकों द्वारा दलील दी जा रही है कि इस किस्म के लिए बहुत ज़्यादा मात्रा में भूजल के प्रयोग के कारण पानी का स्तर नीचे जा रहा है। धान की काश्त के कारण कई ज़िलों में भू-जल का स्तर औसतन एक मीटर प्रत्येक वर्ष नीचे जा रहा है। लगभग 14.5 लाख टन ट्यूबवैल प्रदेश में औसतन 8 घंटे प्रतिदिन 150 दिन चल कर धान की फसल की सिंचाई करते हैं। गत अढ़ाई-तीन दशकों से पंजाब सरकार ने धान की काश्त के अधीन रकबा कम करके विभिन्नता लाने के लिए पानी की समस्या को हल करने के पक्ष से विशेष प्रयास किये परन्तु सफलता प्राप्त नहीं हुई। धान की काश्त अधीन प्रत्येक वर्ष रकबे में वृद्धि होती गई, क्योंकि सरकार द्वारा धान के स्थान पर मक्की की काश्त पर ज़ोर दिया जा रहा है। किसानों का कहना है कि मक्की के लिए पानी की आवश्यकता भी धान से कम नहीं। मक्की की फसल को भी काफी सिंचाई की आवश्यकता होती है। 
किसान हमेशा उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रयास करते हैं। इसलिए अधिक उत्पादन देने वाली किस्में तथा उनके संशोधित बीजों की विशेष भूमिका है। किसान नई किस्मों के संशोधित बीजों की लगातार तलाश में रहते हैं। अब वह भू-जल का स्तर कम होने तथा इसके कारण पैदा हुई समस्याओं से जागरूक हैं। इसीलिए इस वर्ष वह धान की काश्त से मुंह मोड़ कर बासमती की बिजाई की ओर रूझान दिखा रहे हैं। चाहे पिछले साल मंडी में बासमती का मूल्य बढ़ कर लाभदायक होना भी उनका बासमती की काश्त में रूझान बढ़ाने के लिए ज़िम्मेदार है। आज भी बासमती की पूसा बासमती-1509, पूसा बासमती-1692 तथा पूसा बासमती-1718 का मूल्य मंडी में 4700-4800 रुपये क्ंिवटल तथा पूसा बासमती-1121 का 5400-5500 रुपये क्ंिवटल तक है। बासमती की काश्त अधीन इस वर्ष पिछले साल के 4.5-4.75 लाख हैक्टेयर रकबे से अधिक 6 लाख हैक्टेयर तक हो जाने की संभावना है। किसान आई.सी.ए.आर.-भारतीय कृषि अनुसंधान द्वारा विकसित बासमती की झुलस तथा भुरड़ रोग से मुक्त अधिक उत्पादन देने वाली नई विकसित किस्में पूसा बासमती-1847, पूसा बासमती-1885 तथा पूसा बासमती-1886 का बीज प्राप्त करने के लिए प्रयासरत हैं। वह इन किस्मों के बीज हासिल करने के लिए किसान मेलों तथा बीज वितरण प्रशिक्षण कैंपों में तेज़ी से पहुंच रहे हैं। आंतरिक गांवों में रह रहे किसानों का बहुमत पूसा बासमती-1509, पूसा बासमती-1121 तथा पूसा बासमती-1692 किस्म के बीज खरीद कर ही काश्त करेगा, क्योंकि उन्हें बीमारी रहित नई किस्मों के बीज कम ही उपलब्ध होंगे। 
आल इंडिया राईस एक्सपोर्टज़र् एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष तथा प्रसिद्ध निर्यातक विजय सेतिया कहते हैं कि इस वर्ष बासमती की कीमत मंडी में 3000 रुपये प्रति क्ंिवटल से नीचे आने की संभावना नहीं। अधिकतर किसान बढ़िया चावलों वाली बासमती की मुच्छल किस्म पूसा-1409 जिसका विकल्प नई किस्म पूसा बासमती-1886 है, उस किस्म की तलाश में भी हैं, क्योंकि उत्पादन के पक्ष से यह किस्म उत्तम है तथा घरेलू खपत के लिए बेचे जा रहे इस किस्म के चावल की मंडी में कीमत भी अधिक मिलती है। पंजाब सरकार ने भी अपनी फसली विभिन्नता नीति में बासमती की काश्त को विशेष स्थान दिया है। किसानों को सरकार ने आश्वासन दिया है कि यदि केन्द्र सरकार द्वारा बासमती का न्यूनतम समर्थन मूल्य न तय किया गया तो (जिसकी कोई संभावना नहीं) पंजाब सरकार मार्कफैड को मंडी में लाकर किसानों को कम से कम बासमती की कीमत देना सुनिश्चित करेगी। 
सब्जियों की काश्त से मुनाफा एक मुकम्मल फसल से भी ज्यादा लिया जा सकता है। इससे फसली घनता भी बढ़ेगी। किसान प्रोसैसिंग और गुणवत्ता से सब्जी आधारित उद्योग लगा सकेंगे। कुछ उत्पादक धनिया उगाकर दिल्ली में पांच तारा होटलों को सप्लाई करके लाखों रुपये कमा लेते हैं। विज्ञानिकों के अनुसार सब्जियों की सीधी बिजाई के मुकाबले जो पनीरी द्वारा सब्जियां बीजी जाती हैं, वे ज्यादा उत्पादन देती हैं और ज्यादा लाभदायक है। किसानों को सब्जियां अदल-बदल कर लगानी चाहिएं। इसी प्रकार कीटनाशकों का प्रयोग भी अदल-बदल कर करना चाहिए। मिट्टी में बोरन की कमी आ जाने के कारण इसको पूरा करने के लिए बोरोक्स व बायोमास ज़मीन में डालने की ज़रूरत है। यह सब्जियों की काश्त को लाभदायक बनाने के लिए सहायक होगा।