मूलभूत सुविधाओं को तरस रहा ग्रामीण भारत

भा रत के विकसित व समृद्ध राज्यों से गुज़रने वाले चमचमाते राजमार्ग, उन पर बने व बन रहे लाई ओवर आदि को यदि देखें तो लगेगा देश वास्तव में बहुत तरकी कर रहा है। इन मार्गों पर बने एक से बढ़कर एक सुविधा व खान पान केंद्र भी निश्चित रूप से विकास का एहसास कराते हैं। ज़ाहिर है प्रायः इन्हीं मार्गों से होकर हमारे राजनेता व विदेशी पर्यटक यहां तक कि निवेशकों व कॉरपोरेट्स का भी गुज़रना होता है जो इस 'चमचमाते भारत' को देखकर बहुत प्रभावित होते होंगे। साा के लोग तो इस 'विकास' को देखकर अपनी ही पीठ थपथपाने से बाज़ नहीं आते। इसी तरह ऐसे ही राज्यों के शहरी इलाकों में उस स्वच्छता अभियान का भी खूब ढिंढोरा पीटा जाता है जिसपर सरकार अब तक लाखों करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है। घर-घर जाकर कूड़ा उठाने के ठेके स्थानीय नगर पालिकाओं, नगर निगमों व महापालिकाओं द्वारा दिये  गये हैं। कई जगह तो लाउड स्पीकर पर स्वच्छता अभियान संबंधी गीत कूड़ा उठाने वाली गाड़ियों पर बजते भी सुने गये हैं। प्रायः यह स्थिति महानगरों या शहरी क्षेत्रों की ही है। जबकि हमारे देश में लगभग हर खासो-आम यहां तक कि नेता व शासक वर्ग भी इस बात की दुहाई देता भी दिखाई देगा कि असली भारत तो हमारे गांवों में बसता है। यानी 'ग्रामीण भारत' को ही असली भारत कहा जाता है। यह सच भी है कि न केवल देश की बहुसंय आबादी देश के गांव व कस्बों में बसती है बल्कि 'ग्रामीण भारत' ही सभी धर्मों व समुदायों से जुड़े रीति-रिवाजों, परपराओं, साहित्य, संस्कृति व लोकसंस्कृति, भाषा, वेश-भूषा आदि तमाम बातों का संरक्षण भी करता आ रहा है।
सवाल यह कि 'भारतीयता' की रक्षा करने वाला ग्रामीण भारत जो कि अब तक शिक्षा व स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं में तो पिछड़ा था ही, उसी 'वास्तविक भारत' की सड़कों वहां की सफाई व्यवस्था, नाली व नालों खास कर वहां के कूड़ा निस्तारण के लिये भी सरकार या उतनी ही सक्रिय है जितनी वह देश के विकसित व समृद्ध राज्यों के चुनिंदा शहरी क्षेत्रों में दिखाई देती है? देश व राज्य की सरकारें बनाने हेतु अग्रणी भूमिका निभाते हुये तेज़ धूप, सर्दी या बारिश की परवाह किये बिना मतदान की लबी कतारों में खड़ा होने वाले बहुसंय ग्रामीण भारत वासी या शहरों जैसी सुविधाओं के अधिकारी नहीं हैं? या कभी किसी भी सरकार ने यह सोचने की कोशिश की कि आखिर ग्रामीण भारत के लोग ही असर अनेक बीमारियों के शिकार यों होते हैं? खुले में शौच मुत भारत बनाने का ढिंढोरा पीटने वाली सरकार के नुमाइंदों ने कभी ग्रामीण भारत की तरफ भी झाँक कर देखने की कोशिश की, कि हज़ारों करोड़ रुपये पानी में बहाने के बावजूद भारत के गांव 'खुले में शौच मुक्त' हुये हैं या नहीं।
बिहार जैसे कई राज्यों में 'घर-घर नल का जल' योजना शुरू की गयी है। वह भी एक तमाशा के सिवा और कुछ नहीं। बिहार में तो यही देखा गया है कि भूतल का वही जल जो आम तौर पर लोग हैण्ड पप से निकालकर इस्तेमाल करते थे, वही पानी मोटर के माध्यम से खींचकर प्लास्टिक की काम-चलाऊ टंकियों में भर कर प्लास्टिक जैसे पाइप के माध्यम से लोगों के घरों तल पहुँचाने की आधी-अधूरी कोशिश की गयी है। न पानी का कोई ट्रीटमेंट किया गया है न ही इसे लोरीनयुत कर पीने योग्य स्वच्छ बनाया जाता है। सरकार को केवल चुनाव जीतने के लिए मुत राशन योजना चलाने से ज्यादा ज़रूरी है, गावों में रहने वालों को रोगमुत करना, उन्हें स्वच्छ वातावरण प्रदान करना, स्वच्छ जलापूर्ति सुनिश्चित करना। जब तक 'स्वच्छता अभियान' देश के गांव-गांव तक नहीं पहुंचता तब तक यही मानना पड़ेगा कि ग्रामीण भारत घोर दुर्दशा का शिकार है।